कौन थे भगवान दत्तात्रेय के भक्त सहस्रबाहु अर्जुन, उनकी जयंती पर जानें उनके बारे में सबकुछ

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को सहस्रबाहु अर्जुन की जयंती मनाई जाती है। इस साल 14 नवंबर 2018, बुधवार को उनकी जयंती मनाई जा रही है। विद्वानों का ऐसा मानना है कि वो भगवान विष्णु के 24वें अवतार माने गए हैं। भागवत महापुराण में भी भगवान विष्णु व लक्ष्मी द्वारा सहस्रबाहु महाराज की उत्पत्ति की जन्मकथा का वर्णन है।;

Update: 2018-11-14 04:50 GMT
कौन थे भगवान दत्तात्रेय के भक्त सहस्रबाहु अर्जुन, उनकी जयंती पर जानें उनके बारे में सबकुछ
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(Sahastrabahu Jayanti 2018) सहस्रबाहु जयंती 2018

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को सहस्रबाहु अर्जुन की जयंती मनाई जाती हैं। इस साल 14 नवंबर, बुधवार को उनकी जयंती मनाई जा रही हैं। विद्वानों का ऐसा मानना है कि वो भगवान विष्णु के 24वें अवतार माने गए हैं। भागवत महापुराण में भी भगवान विष्णु व लक्ष्मी द्वारा सहस्रबाहु महाराज की उत्पत्ति की जन्मकथा का वर्णन है।

सहस्रबाहु ने भगवान की कठोर तपस्या करके 10 वरदान प्राप्त किए और चक्रवर्ती सम्राट की उपाधि प्राप्त की। चन्द्र वंश के महाराजा कृतवीर्य के पुत्र होने के कारण सहस्रबाहु अर्जुन कार्तवीर्य-अर्जुन कहा जाता है। वो भगवान विष्णु के अवतार दत्तात्रेय के भक्त थे। उनकी माता का नाम पद्मिनी था।

सहस्रार्जुन जयंती क्षत्रिय धर्म की रक्षा और सामाजिक उत्थान के लिए मनाई जाती है। पौराणिक ग्रंथों एवं पुराणों के अनुसार कार्तवीर्य अर्जुन के हैहयाधिपति, सहस्रार्जुन, दषग्रीविजयी, सुदशेन, सप्तद्रवीपाधि, कृतवीर्यनंदन, चक्रावतार, राजेश्वर आदि कई नामों का वर्णन मिलता है।

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सहस्त्रबाहु ने हराया था रावण को

एक बार रावण सहस्त्रबाहु अर्जुन को हराने की इच्छा से उनके नगर गया। नर्मदा नदी के किनारे रावण ने भगवान शिव का पूजन करने का विचार किया। जहां रावण पूजा कर रहा था, वहां से थोड़ी दूर सहस्त्रबाहु अर्जुन अपनी पत्नियों के संग जलक्रीड़ा में मग्न था। सहस्त्रबाहु ने खेल में अपनी हजार भुजाओं से नर्मदा का प्रवाह रोक दिया। 

रावण ये देख क्रोधित हो गया। उसने सहस्त्रबाहु अर्जुन को युद्ध के लिए ललकार के तुरन्त युद्ध लडने को कहा। नर्मदा के तट पर रावण और सहस्त्रबाहु में भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध के अंत में सहस्त्रबाहु अर्जुन ने रावण को बंदी बना लिया। रावण के पितामह (दादा) पुलस्त्य मुनि को जब पता चला तो, वे सहस्त्रबाहु से रावण को छोडने के लिए निवेदन किया। फिर सहस्त्रबाहु ने रावण को छोड़ उससे मित्रता की।

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सहस्त्रबाहु ने की कामधेनु चोरी की कोशिश

सहस्त्रबाहु सेना के साथ जंगल से गुजर रहा था। उस जंगल में ऋषि जमदग्नि का आश्रम था। सहस्त्रबाहु ऋषि जमदग्नि के आश्रम में आराम करने के लिए रूका। ऋषि जमदग्नि के आश्रम में कामधेनु गाय थी, जो सभी इच्छाएं पूरी करती थी। उनकी कृपा से ऋषि जमदग्नि ने सहस्त्रबाहु और सैनिकों का राजसी स्वागत किया।

कामधेनु का चमत्कार देखकर सहस्त्रबाहु बलपूर्वक उन्हें अपने साथ ले जाने लगा। उस समय आश्रम में ऋषि जमदग्नि के पुत्र भगवान परशुराम नहीं थे। परशुराम जब आश्रम में आए, तो उन्हें घटना का पता चला। यह सुनकर परशुराम क्रोधित हो उठे। वे  अपना परशु साथ लेकर माहिष्मती की ओर चल पड़े।

सहस्त्रबाहु अभी माहिष्मती के मार्ग में ही था, कि परशुराम उसके पास जा पहुंचे। सहस्त्रबाहु ने जब देखा कि परशुराम उनसे युद्ध करने आ रहे हैं तो, उसने उनका सामना करने के लिए अपनी सेना खड़ी कर दीं।

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भगवान परशुराम ने किया था सहस्त्रबाहु का वध

परशुराम ने अकेले ही सहस्त्रबाहु की सेना का सफाया कर दिया। अंत में सहस्त्रबाहु परशुराम से युद्ध करने के लिए आया। परशुराम ने उसकी हजार भुजाओं को अपने परसे से काट दिया और सहस्त्रबाहु अर्जुन का वध कर दिया। प्रतिशोध लेने के लिए सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने बाद में ऋषि जमदग्नि का वध कर दिया। अपने निर्दोष पिता की हत्या से क्रोधित हो परशुराम ने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहिन कर दिया था।

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