Hanuman Ji Ki Gada : ईश्वर के भक्तों में सबसे बड़े भक्त 'हनुमान जी' ही हैं। हनुमान जी को सभी ईश भक्तों और देवताओं में सबसे अधिक शक्तिशाली माना जाता है। उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त है अर्ताथ वह हर युग में अमर है। धार्मिक शास्त्रों में वर्णित है कि कलयुग में भी हनुमान जी विचरण कर रहे है, वे भगवान विष्णु के अवतार कल्कि के धरती पर अवतरित होने का इंतजार कर रहे हैं। हर युग में हनुमान जी भगवान विष्णु के अवतार के साथ रहे है।
हनुमान जी की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, हर युग में हनुमान के बिना भगवान ने खुद को अधूरा बताया है। बताया जाता है कि, हनुमान जी कलयुग में गंधमाधन पर्वत पर निवास करते हैं। सतयुग में सूर्य देव को फल समझकर निगल लेने की वजह से उनका इंद्र देव से युद्ध हुआ था। इस युद्ध में इंद्र के वज्र से बजरंग बली के हनु पर चोट लगी और हमेशा के लिए निशान रह गया। इसी के बाद से उन्हें 'हनुमान' नाम प्राप्त हुआ।
भगवान कुबेर ने हनुमान जी को दी थी गदा
पवनपुत्र हनुमान जी न सिर्फ शारीरिक तौर पर बलशाली और मानसिक तौर पर बुद्धिशाली है बल्कि उनकी गदा भी काफी ताकतवर है। हनुमान जी की गदा की कहानी भी अद्भुत है। उन्हें यह गदा भगवान कुबेर ने प्रदान की थी। आपने तस्वीरों में मंदिरों में, जरूर देखा होगा कि हनुमान जी अपनी गदा को बाएं हाथ में धारण करते है। यही वजह है कि हनुमान जी की गदा को 'वामहस्तगदायुक्तम्' भी कहा जाता है। उनकी यह गदा विशालकाय और अत्यधिक भारी है।
वाल्मीकि रामायण में नहीं गदा का उल्लेख
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कुबेर द्वारा हनुमान जी भेंट स्वरुप दी गई गदा स्वर्ण से निर्मित थी। गदा देते वक्त कुबेर जी ने बजरंग बली को वरदान दिया था कि, वे कभी किसी युद्ध में परास्त नहीं हो सकते। हालांकि, वाल्मीकि रामायण में गदा की किसी तरह की शक्ति का उल्लेख नहीं मिलता है। रामायण के मुताबिक बजरंगबली के मुष्टि, रात और पुंछ में अपार शक्ति थी, जिसकी वजह से हनुमान जी ने साधारण गदा को भी असाधारण तरीके से इस्तेमाल किया है।
खुदाई में मिली हनुमान जी की असली गदा?
भारत के एक इंटरनेशनल रिसर्च सेंटर के मुताबिक उसे श्रीलंका में खुदाई के दौरान एक गदा प्राप्त हुई थी, जोकि पूरी तरह सोने से निर्मित थी। यह गदा आकार में विशाल और करीब 1000 किलोग्राम वजन की थी। इसके अलावा खुदाई में रामायण से जुड़े अन्य अवशेष भी प्राप्त हुए, जिसमें नर कंकाल भी शामिल थे। खुदाई में अशोक वाटिका और रावण महल का भी चिन्ह प्राप हुआ, जिसे श्रीलंका की सरकार ने राष्ट्रीयता भी प्रदान की है।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं व जानकारियों पर आधारित है। Hari Bhoomi इसकी पुष्टि नहीं करता है।)