Kanwad Yatra 2024: हिंदू धर्म में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्त्व है। सावन का महीना शुरू होते ही भोलेनाथ के भक्त कांवड़ लेकर शिव धाम चल देते है। कांवड़ यात्रा को लेकर हमेशा ही भक्तों में उत्साह बना रहता है। प्रतिवर्ष लाखों कांवड़ियां हरिद्वार से गंगाजल लेकर अपने क्षेत्र के शिवालयों में आकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। धर्म शास्त्रों में कांवड़ यात्रा के दौरान कुछ अहम नियमों का पालन करना जरुरी माना गया है। चलिए जानते है उनके बारे में - 

कांवड़ यात्रा के नियम
(Kanwad Yatra Ke Niyam) 

  • - कांवड़ यात्रा के दौरान जाने से लेकर आने तक भक्तों को पूरी यात्रा पैदल ही करनी चाहिए। 
  • - कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ को भूलकर भी जमीन पर नहीं रखना चाहिए। इससे यात्रा अधूरी हो जाती है। 
  • - कांवड़ यात्रा करने वाले भक्तों को यात्रा के दौरान सिर्फ सात्विक भोजन का ही सेवन करना चाहिए। 
  • - कांवड़ यात्रा के दौरान भक्तों को किसी भी तरह की नशीली वस्तु, मांस-मदिरा या तामसिक भोजन नहीं लेना चाहिए। 
  • - कांवड़ यात्रा के दौरान भक्तों को किसी वाहन का प्रयोग नहीं करना चाहिए। ऐसा करने पर यात्रा अधूरी मानी जाती है। 
  • - कांवड़ में गंगा या किसी पवित्र नदी का ही जल रखना शुभ होता है। कुएं या तालाब का जल कांवड़ में नहीं रखें। 
  • - कांवड़ को हमेशा नहाने के बाद ही स्पर्श करना चाहिए। लेकिन ध्यान रखें कांवड़ यात्रा में आपसे और चमड़े से स्पर्श न हो। 
  • - कांवड़ यात्रा के दौरान कावड़ियों को हमेशा जत्थे के साथ ही रहना चाहिए। अलग-थलग होकर यात्रा शुभ नहीं होती है। 
  • - कांवड़ यात्रा के दौरान कावड़ियों को कांवड़ को भूमि या किसी चबूतरे पर नहीं रखना चाहिए। इसे स्टैंड या डाली पर लटककर रखें। 
  • - कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ को गलती से जमीन पर रख दिया तो, फिर से उसमें पवित्र जल भरना पड़ता है। 
  • - कांवड़ यात्रा के दौरान पूरे रास्ते बम बम भोले या जय जय शिव शंकर का उच्चारण करते हुए यात्रा शुभ होती है। 
  • - कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ को खुद के ऊपर से या फिर किसी और के ऊपर से लेकर न जाएं। यह अशभ होता है। 

कब शुरू होगी कांवड़ यात्रा 2024 
(Kab Shuru Hogi Kanwad Yatra 2024) 

इस वर्ष कांवड़ यात्रा की शुरुआत 22 जुलाई 2024 सोमवार से होगी। इसका समापन 2 अगस्त 2024 शुक्रवार को होगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम ने कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर धाम से गंगाजल लेकर यूपी के बागपत स्तिथ ‘पुरा महादेव’ का गंगाजल से अभिषेक किया था। उसी समय से कांवड़ यात्रा की परंपरा चली आ रही है। कहते है इस यात्रा को सच्ची आस्था से पूर्ण करने पर भक्तों पर भोलेनाथ की कृपा होती है। 

डिस्क्लेमर: यह जानकारी सामान्य मान्यताओं पर आधारित है। Hari Bhoomi इसकी पुष्टि नहीं करता है।