कितनी सच है मक्का-मदीना में भगवान शिव के वजूद की कहानी, जानें

कितनी सच है मक्का-मदीना में भगवान शिव के वजूद की कहानी, जानें
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रोमन इतिहासकार ''द्यौद्रस् सलस्'' लिखते है कि यहां इस देश में मंदिर है, जो अरबों का अत्यन्त पूजनीय है। इस बात से ''द्यौद्रस् सलस्'' ये बताना चाहते थे कि भगवान शिव का काबा से कोई ना कोई प्राचीन जुड़ावा जरूर है।

मक्का मदीना की बात करें तो मुस्लिम धर्म या इस्लाम धर्म में काबा एक बहुत पवित्र स्थान माना गया हैं। यहाँ पूरी दुनिया से लाखों मुस्लिम लोग आकर अपने खुदा की इबादत करते हैं।

अगर इसके इतिहास की बात करें तो काबा मुसलमानों से भी पहले की जगह है। खुद मुहम्मद साहब ने कहा था कि यह अल्लाह के द्वारा जन्नत से बनाया गया तीर्थ स्थान है। पूरी दुनिया के सभी मुसलमान चाहें वे कहीं भी हो नमाज़ के समय अपना मुँह काबा की ओर ही रखते हैं।

काबा में 365 मूर्तियां

माना जाता है कि काबा में 365 मूर्तियां थी यानि हर दिन के लिए अलग- अलग मुर्ति। वह 365 मूर्तियां यहां से हटा दी गयी, या कहीं नहीं ओर ही रख दी गई। लेकिन जो केंद्रीय पत्‍थर था मूर्तियों का, जो मंदिर को केंद्र था, वह नहीं हटाया गया।

शिव का काबा से प्राचीन जुड़ावा

प्रथम शताब्दी के आंरभ के रोमक इतिहासकार 'द्यौद्रस् सलस्' लिखते है कि यहां इस देश में मंदिर है, जो अरबों का अत्यन्त पूजनीय है। इस बात से 'द्यौद्रस् सलस्' ये बताना चाहते थे कि भगवान शिव का काबा से कोई ना कोई प्राचीन जुड़ावा जरूर है।

गैर इस्लामिक व्यक्तियों के काबा जानें पर प्रतिबंध

मक्का में जाने के लिए मुख्य नगर जेद्दाह है। यह नगर एक बंदरगाह है जो कि अंतरराष्ट्रीय हवाई मार्ग का मुख्य केन्द्र भी है। जेद्दाह से मक्का जाने वाले लोगों के लिए मार्ग पर ये निर्देश लिखे होते हैं कि यहां मुसलमानों के अतिरिक्त किसी भी और धरम का व्यक्ति का प्रवेश वर्जित है। अधिकांश सूचनाएं अरबी भाषा में लिखी होती हैं, जिसे अन्य देशों के लोग बहुत कम जानते हैं।
वहीं अब तक इन सूचनाओं में यह भी लिखा जाता था कि "काफिरों' का प्रवेश प्रतिबंधित है। लेकिन अब "काफिर' शब्द को हटाकर इसके स्थान पर "नान मुस्लिम' यानी गैर-मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित है, लिखा था। दरअसल "काफिर' शब्द का उपयोग नास्तिक के लिए किया जाता है।

काबा के सवाल पर डॉ जाकिर नाइक का जवाब

काबा पर ऐसे ही कई सावल जिसके सवाल का जवाब डॉ जाकिर नाइक ने अपने रिसर्च करने की कोशिश की है और उन्होंने कई किताबें भी लिखीं हैं। उनके हिसाब से - यह सच है कि कनूनी तौर पर मक्का और मदीना शरीफ़ के पवित्र नगरों में ग़ैर मुस्लिमों को प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। निम्नलिखित तथ्यों द्वारा प्रतिबन्ध के पीछे कारणों और औचित्य का स्पष्टीकरण किया गया है।
मुसलमानों के सबसे बड़े तीर्थ मक्का के बारे में कहते हैं कि वह मक्केश्वर महादेव का मंदिर था। वहां काले पत्थर का विशाल शिवलिंग था जो खंडित अवस्था में अब भी वहां है।
हज के दौरान इस काले पत्थर को मुसलमान उसे ही पूजते और चूमते हैं। इसके बारे में प्रसिद्ध इतिहासकार स्व पी.एन.ओक ने अपनी पुस्तक‘वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास’में इसका विस्तारपूर्वक वर्णन किया से है।
वहीं कई इतिहासकार का मानना है कि अरब में मुहम्मद पैगम्बर से पूर्व शिवलिंग को 'लात' कहा जाता था। मक्का के काबा में जिस काले पत्थर को चुमा जाता है, उसका भविष्य पुराण में उल्लेख मक्केश्वर के रूप में हुआ है।
इस्लाम के आने से पहले इजराइल और अन्य यहूदियों द्वारा इसकी पूजा किए जाने के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं। लेकिन अब ये कितना सत्य है और कितनी अफवाह इसका अभी कोई पर अभी कुछ साफ नहीं हो पाया हैं।

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