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Carbon Fibre: यूरोपियन यूनियन का यह कदम सिर्फ यूरोपीय बाजार तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका असर पूरी दुनिया की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री पर देखने को मिलेगा। जो ऑटो सेक्टर की दिशा बदल सकता है।

Carbon Fibre: अब तक कार्बन फाइबर को ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री का ‘मैजिक मैटेरियल’ माना जाता था – हल्का, बेहद मजबूत और परफॉर्मेंस में शानदार। लेकिन अब यही मटेरियल यूरोप में बैन की कगार पर पहुंच गया है। यूरोपियन यूनियन (EU) ने कबाड़ हो चुके वाहनों को लेकर जो नया ड्राफ्ट तैयार किया है, उसमें कार्बन फाइबर को खतरनाक पदार्थ के तौर पर चिह्नित किया गया है। अगर यह प्रस्ताव मंजूर हो गया, तो 2029 तक यूरोपीय कार बाजार में इसका इस्तेमाल लगभग खत्म हो सकता है।

क्यों माना जा रहा है खतरनाक?
कार्बन फाइबर अपनी ताकत और हल्केपन के लिए मशहूर है। यह स्टील से मजबूत और एल्यूमिनियम से हल्का होता है, इसलिए इसका इस्तेमाल रेसिंग कारों, एयरक्राफ्ट्स और खासकर इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EVs) में खूब होता है। EVs में यह बैटरी के भारी वजन को संतुलित करने में मदद करता है, जिससे गाड़ी की रेंज और परफॉर्मेंस बेहतर होती है।

हालांकि अब तक कार्बन फाइबर को एक बेहतरीन मटेरियल माना जाता था, लेकिन अब इसके निपटारे (Disposal) को लेकर गंभीर चिंताएं सामने आ रही हैं। जब इसे फेंका या रिसाइकल किया जाता है, तो यह बेहद बारीक सूक्ष्म फाइबर कण हवा में फैलाता है। ये कण न केवल मशीनों की कार्यक्षमता को नुकसान पहुंचा सकते हैं, बल्कि इंसानों की त्वचा और सांस की नली पर भी बुरा असर डाल सकते हैं।

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स्वास्थ्य और पर्यावरण पर असर
EU का कहना है कि ये सूक्ष्म कण न सिर्फ वर्कर्स की सेहत के लिए खतरनाक हैं, बल्कि पर्यावरण पर भी इनका नकारात्मक असर पड़ता है। इसलिए EU ऑटो इंडस्ट्री में कार्बन फाइबर को "हानिकारक" घोषित करने वाली दुनिया की पहली इकाई बन सकती है।

इंडस्ट्री के लिए बड़ी चुनौती
अगर यह नियम लागू होता है, तो इससे उन कंपनियों पर सीधा असर पड़ेगा जो कार्बन फाइबर उत्पादन में अग्रणी हैं—जैसे कि Toray Industries, Teijin और Mitsubishi Chemical, जो ग्लोबल मार्केट का बड़ा हिस्सा नियंत्रित करती हैं। साथ ही, McLaren जैसी सुपरकार निर्माता कंपनियों को, जो अपनी गाड़ियों में कार्बन फाइबर का बड़े पैमाने पर उपयोग करती हैं, अपने डिजाइन और मैटेरियल स्ट्रैटेजी पर दोबारा काम करना होगा।

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ग्लोबल असर तय
EU का यह कदम सिर्फ यूरोपीय बाजार तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका असर पूरी दुनिया की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री पर देखने को मिलेगा। 2029 तक इस प्रस्ताव पर नजर रखना बेहद जरूरी है, क्योंकि यह ऑटो सेक्टर की दिशा बदल सकता है।

(मंजू कुमारी)
 

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