Agriculture News: अरहर दाल के पौधे की उत्पत्ति में सर्वप्रथम आफ्रीका को माना जाता है। आज भी यहां के जंगलों में अरहर के पौधे पाये जाते हैं, जबकि अरहर की खेती भारत में तीन हजार वर्ष पूर्व से की जा रही है। देश में 70 प्रतिशत दलहन उत्पादन मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में किया जाता है। इसका इस्तेमाल भारतीय वेद शास्त्रों के अनुसार पूजा-विधि में भी किया जाता है। अरहर के दाल में कार्बोहाइड्रेट, विटामिन और भरपूर मात्रा में पोषक तत्व पाया जाता हैं। यह पाचन होने के कारण डॉक्टर रोगियों को भी सेवन की सलाह देते हैं। इसका सेवन कब्ज, गैस और सांस से ग्रसित रोगियों को करना चाहिए। दलहन में अरहर की दाल सस्ता स्त्रोत है, जिसे आम जानता स्वादानुसार खाने में प्रयोग करती है। अधिक पैदावार के लिए उन्नतशील कृषि और उन्नत प्रजातियों का विकास पर ध्यान देना होगा। देश में अरहर की कीमत लगभग दस हजार रूपये क्विंटल के आसपास है। स्वादानुसार अरहर दाल से विभिन्न प्रकार के पकवान बनाते है, ऐसे में किसान अरहर की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते है।

खेती-विधि
अरहर की खेती के लिए काली मिट्टी, दोमट मिट्टी, प्रचुर स्फुर मिट्टी पैदावार के लिए अच्छी मानी जाती है। अरहर की खेती के लिए दो- तीन बार गहरी जुताई करना चाहिए। उसके बाद खरपतवार की सफाई करें और मिट्टी समतली करण करवायें, ताकि खेत में पानी न भर सके। बीजारोपण के 15 से 20 दिन पूर्व गोबर का खाद या कम्पोजिट खाद डालना चाहिए। खेती के लिए दो वर्ष के भीतर का बीज बुआई करने के लिए उपयुक्त माना गया है, हो सके तो पिछले वर्ष का बीज बुआई करें। बीजारोपण के बाद हल्की सिंचाई करें। जिसके कारण मिट्टी में नमी बनी रहे। नमी के कारण पौधा अच्छे से अंकुरण लेगा। इसकी खेती को दो सीजन में किया जा सकता है। पहली बार ग्रीष्म ऋतु जून- जुलाई में की जाती है। जिसमें उष्णकटिबंधीय फसल के लिए 26 डिग्री से 30 डिग्री का तापमान होना चाहिए। वहीं शीत ऋतु में अरहर की खेती नवंबर-दिसंबर में की जाती है। इसके लिए 17 डिग्री से 22 डिग्री की आवश्यक होती है। यह फसल फरवरी महीने में तैयार हो जाती है। मिट्टी का पीएचमान 7 से 8.5 उत्तम माना जाता है।

अरहर दाल खाने के फायदे
अरहर एक अद्भुत गुण संपन्न फसल है। इसमें जिंक, पोटैशियम, फाइबर, सोडियम, लोहा, खनिज, कैल्शियम, मैग्नीशियम, वसा और जल में घुलनशील विटामिन प्रर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। जो गैस कब्ज, सांस रोगी, हृदय रोग, मांसपेशियों और तंत्रिकाओं, उच्चरक्तचाप से बचाव, मांसपेशियों में दर्द, यूरिन एसिड, एनीमिया, कब्ज, गले में खराश जैसी कई बीमारियों को दूर करने में सहायक है। इसका इस्तेमाल अन्य दलहनी फसलों की तुलना में अधिक किया जाता है। इसमें मांस की तुलना में प्रोटीन 21 से 26 प्रतिशत पाया जाता है।

अरहर के पौधे का इस्तेमाल
आज भी ग्रामीण अंचलों में किसान अरहर के तना की झाडू, टोकरी, झोपड़ी, टटिया बनाकर उपयोग करते हैं। इसकी हरी फलियां की सब्जी व पशुओं के लिए खली, चुनी और पत्ती भूसा-चारा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

मुनाफा
एक एकड़ में अरहर की खेती करने में करीब 6 किलो बीज की आवश्यकता होती है और उत्पादन करीब 6 से 7 क्विंटल किया जाता है। बाजार में अरहर लगभग 100 से 160 रूपये तक बेची जाती है। किसान अरहर की खेती कर लाखों का मुनाफा कमा रहे हैं।

इक्षांत उर्मलिया