Gautam Adani Bribery case:: भारतीय उद्योग जगत के बड़े प्लेयर और एशिया के अमीरों में शुमार गौतम अडाणी इन दिनों चर्चा में हैं। गौतम अडाणी, उनके भतीजे सागर अडाणी समेत 8 लोगों के खिलाफ अमेरिका में घूसखोरी और धोखाधड़ी के आरोप लगे हैं। अमेरिका के SEC (सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन) ने अडाणी समूह पर ये आरोप लगाए हैं। SEC ने कहा है कि अडाणी समूह ने अमेरिकी निवेशकों को गुमराह किया। इसके लिए फर्जी दस्तावेजों का सहारा लिया। यह मामला अब अमेरिकी अदालत में है। इस रिपोर्ट के बाद अडाणी ग्रुप के शेयर तेजी से नीचे गिर रहे हैं। आइए, अडाणी घूसकांड पर SEC के खुलासे के 11 अहम पॉइंट्स पर नजर डालते हैं।

1. घूसखोरी का नेटवर्क बनाने के लिए हुई पूरी प्लानिंग
न्यूयॉर्क की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में  24 अक्टूबर को दर्ज हुए अभियोग ने तहलका मचा दिया। इस 54 पेज के दस्तावेज में गौतम अडाणी समेत 8 लोगों को आरोपी बनाया गया है। आरोप है कि इन लोगों ने सरकारी अधिकारियों को रिश्वत ऑफर की। इन 8 आरोपियों ने पूरी प्लानिंग से घूसखोरी का नेटवर्क तैयार किया। 21 नवंबर को डॉक्यूमेंट़्स पब्लिक होने के बाद से राजनीतिक और कॉर्पोरेट जगत में भूचाल आ गया है। हालांकि, अडाणी ग्रुप ने सभी आरोपों को सिरे से खारिज किया है।

2. कौन हैं आरोपियों में शामिल?
अमेरिकी जस्टिस डिपार्टमेंट ने 8 लोगों को आरोपी बताया है। इनमें गौतम अडाणी और उनके भतीजे सागर अडाणी का नाम सामने आया है। आरोपियों में एक विदेशी नागरिक भी शामिल है। यह शख्स ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस का नागरिक है, लेकिन रहता सिंगापुर में है। इसके अलावा, आंध्र प्रदेश के एक सीनियर अफसर और दो दूसरे लोगों का नाम भी सामने आया है। अमेरिकी कोर्ट में पेश किए गए दस्तावेज में बताया गया है कि इन सभी ने मिलकर प्लानिंग की। भारत के सबसे बड़े सोलर प्रोजेक्ट से जुड़े लोगों को रिश्वत देने के लिए घूसखोरी का नेटवर्क तैयार किया।

3. कैसे शुरू हुई घूसखोरी की योजना?
अमेरिकी कोर्ट में पेश किए गए दस्तावेजों के मुताबिक, घूसखोरी की पूरी प्लानिंग SECI (सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया) के एक बड़े टेंडर से शुरू हुई। दिसंबर 2019 और जुलाई 2020 के बीच सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (SECI) ने साल 2019-20 में 12 गीगावॉट एनर्जी सप्लाई के लिए एक बड़ा टेंडर निकाला। इसमें अडाणी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड (AGEL) और एक विदेशी कंपनी को यह टेंडर मिला। लेकिन बाद में, बिजली की ज्यादा कीमतों के चलते SECI को खरीदारों की कमी का सामना करना पड़ा। लेकिन, टेंडर शर्तों के हिसाब से  SECI को बिजली खरीदने वाले राज्यों को खोजना जरूरी था। इसके बाद अडाणी और उनके साथियों ने बिजली खरीद को मंजूरी देने वाले अफसरों को रिश्वत देने की प्लानिंग बनानी शुरू कर दी।

4. ‘द बिग मैन’ और कोडनेम का खुलासा 
दस्तावेज में बताया गया कि जांच एजेंसियों से बचने के लिए अडाणी की टीम ने बातचीत के लिए कोडवर्ड का इस्तेमाल किया। गौतम अडाणी को ‘द बिग मैन’ और ‘न्यूमरो उनो’ कोड नेम दिया गया। वहीं, विनीत जैन के लिए ‘स्नेक’ और ‘न्यूमरो उनो माइनस वन’ कोडनेम तय किया गया था। यह सभी कोडवर्ड घूसखोरी के नेटवर्क को सीक्रेट रखने के लिए इस्तेमाल किए गए। इस तरीके से आरोपियों ने अपना नाम और पहचान छिपाकर इस पूरे घूसखोरी कांड को अंजाम देने की कोशिश की।

5. अडाणी ने खुद की अफसरों से मुलाकात
अभियोग पत्र में यह दावा किया गया है कि गौतम अडाणी खुद भी रिश्वतखोरी की प्लानिंग में शामिल थे। गौतम अडाणी ने 2021 में आंध्र प्रदेश की स्टेट इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों के बड़े अफसरों और आंध्र प्रदेश के तत्कालीन सीएम जगन मोहन रेड्डी से मुलाकात की। यह मुलाकातें 7 अगस्त, 12 सितंबर और 20 नवंबर को हुईं। इन बैठकों में गौतम अडाणी ने कथित तौर पर परियोजनाओं से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की। इसके बाद अफसरों को रिश्वत देने की पेशकश की। इन मुलाकातों का मकसद इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई से जुड़े कॉन्ट्रैक्ट को अपने पक्ष में करवाना और मोटा प्रॉफिट कमाना था। 

6. रिश्वत में बांटे जाने थे 2,029 करोड़ रुपए
अभियोग पत्र में आरोप लगाया गया कि भारतीय अफसरों को 2,029 करोड़ रुपये की रिश्वत देने की प्लानिंग की गई। इनमें से 1,750 करोड़ रुपये सिर्फ आंध्र प्रदेश की बिजली वितरण कंपनियों के अफसरों को ऑफर किए गए। इसके साथ ही दूसरे  राज्यों के अफसरों को भी घूस खिलाने का लालच दिया गया। आरोप है कि इस रिश्वत के बदले बिजली वितरण समझौतों को जल्द मंजूरी दिलाने और ज्यादा मुनाफा दिलाने वाले रेट पर बिजली बेचने के लिए बातचीत। इसके बाद जुलाई 2021 से फरवरी 2022 के बीच पांच राज्यों ने इस योजना के तहत बिजली खरीद को मंजूरी दी।

7. रिश्वत को छुपाने के लिए विदेशी खातों का इस्तेमाल
आरोपों के मुताबिक, अडाणी समूह ने रिश्वतखोरी के लिए विदेशों खातों का इस्तेमाल किया। इन खातों के जरिए सरकारी अफसरों को पैसे ट्रांसफर किए गए। इस पूरे घोटाले को छुपाने के लिए खासतौर पर, सिंगापुर और मॉरीशस की कंपनियों के खातों का इस्तेमाल किया गया। आरोप है कि इन कंपनियों को फर्जी कॉन्ट्रैक्ट्स के तहत भुगतान दिखाया गया, ताकि कानूनी एजेंसियां इसे समझ न सकें। इस पूरे प्रोसेस को बेहद सीक्रेट रखा गया। अडाणी ग्रुप के चंद चुनिंदा लोगों को इसकी जानकारी थी।

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8. ब्राइब नोट्स और PPT के जरिए रिश्वत देने की हुई प्लानिंग
अमेरिकी दस्तावेज़ में बताया गया कि रिश्वत की राशि और संबंधित अधिकारियों की जानकारी सागर अडाणी ने अपने फोन पर ‘ब्राइब नोट्स’ में दर्ज की थी। इसके अलावा, रिश्वत देने के तरीकों को समझाने के लिए एक प्रेजेंटेशन और एनालिसिस तैयार किया गया। इस पूरी योजना को लागू करने के लिए कई हाई लेवल की मीटिंग हुई। 2022 में नई दिल्ली में एक बैठक हुई, जिसमें रिश्वत देने के तरीकों पर चर्चा की गई। इस दौरान पावरपॉइंट प्रेजेंटेशन और एक्सेल शीट्स का इस्तेमाल किया गया। यह दिखाने की कोशिश की गई कि अमेरिकी कंपनी के हिस्से की रिश्वत भारतीय कंपनी की ओर से दी जा रही है।

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9. कैसे मिटाए गए सबूत?
दस्तावेज़ों में बताया गया कि आरोपी अधिकारियों ने इलेक्ट्रॉनिक संदेशों, ईमेल और दस्तावेजों को डिलीट कर दिया। अगस्त 2022 में इन दस्तावेज़ों को नष्ट करने के लिए विशेष योजना बनाई गई। इसके बावजूद अमेरिकी अधिकारियों ने सर्च वारंट और पूछताछ के जरिए कई सबूत जुटाए। जब अमेरिकी एजेंसियों ने 2022 में जांच शुरू की, तो अडाणी समूह ने अपने ही बोर्ड से एक इंटरनल ऑडिट कराने की भी योजना बनाई। आरोप है कि इस इंटरनल ऑडिट का मकसद मामले से जुड़े असली तथ्यों को छिपाना था।

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10. FBI ने कैसे की कार्रवाई?
17 मार्च 2023 को FBI ने सागर अडाणी से पूछताछ की और उनके इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जब्त किए। इसके बाद गौतम अडाणी ने संबंधित दस्तावेजों को खुद को ईमेल किया। इस पूछताछ के दौरान FCPA और अन्य नियमों का उल्लंघन करने के सबूत जुटाए गए। 2023 में एफबीआई ने सागर अडाणी से पूछताछ की और उनके डिवाइस जब्त कर लिए। इसके बाद सागर ने सारे डॉक्यूमेंट गौतम अडाणी को ईमेल कर दिए।

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11. अडाणी ग्रुप ने NSE और BSE को क्या बताया?
मार्च 2024 में, अडाणी समूह ने NSE और BSE को झूठी जानकारी दी कि उन्हें किसी अमेरिकी जांच के बारे में पता नहीं है। जबकि, एफबीआई ने पहले ही सागर अडाणी से पूछताछ की थी। 2020-24 के बीच अडाणी समूह ने अमेरिकी निवेशकों और वित्तीय संस्थानों से डॉलर में फंड जुटाया। इसके लिए उन्होंने सिक्योरिटीज बेचने और बॉन्ड जारी करने का सहारा लिया।