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RBI Facts:भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) गवर्नरों का यह कदम न केवल उनकी व्यक्तिगत सोच को दर्शाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि वे किस प्रकार भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिर करने और मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध थे।

RBI Facts: भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) के गवर्नर, जो भारतीय मुद्रा के सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली चेहरे होते हैं, उनके बारे में एक दिलचस्प तथ्य है जिसे बहुत कम लोग जानते हैं। आप यह जानकर चौंक सकते हैं कि कुछ रिजर्व बैंक गवर्नरों ने कभी भारतीय नोटों पर हस्‍ताक्षर नहीं किए। यह मामला एक रोचक परंपरा और उन गवर्नरों के फैसलों से जुड़ा हुआ है, जिनका असर भारतीय अर्थव्यवस्था और मुद्रा नीति पर पड़ा।

रिजर्व बैंक गवर्नर और नोटों पर हस्‍ताक्षर
हम सभी जानते हैं कि भारतीय नोटों पर गवर्नर का हस्‍ताक्षर होता है, जो एक परंपरा है। यह हस्‍ताक्षर भारतीय मुद्रा की वैधता और आधिकारिकता का प्रतीक होते हैं। हालांकि, कुछ गवर्नरों के कार्यकाल में, उन्होंने इस परंपरा को नहीं अपनाया। एक समय था जब रिजर्व बैंक के गवर्नरों का यह मानना था कि नोट पर हस्ताक्षर करना सिर्फ एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक गहरे अर्थ से जुड़ा होता है। यह उन गवर्नरों का निजी विचार था कि उनके नाम का इस्तेमाल केवल तब किया जाए जब भारतीय अर्थव्यवस्था में स्थिरता हो।

जिन गवर्नरों ने नहीं किए हस्‍ताक्षर
भारतीय रिजर्व बैंक के कुछ गवर्नरों के कार्यकाल के दौरान नोटों पर हस्‍ताक्षर नहीं किए गए। इनमें प्रमुख नाम हैं,Sir Osborne Smith, C.D. Deshmukh और L. K. Jha। इन गवर्नरों के समय में यह परंपरा अनदेखी की गई और इस फैसले के पीछे कई कारण थे।

Sir Osborne Smith: 1 अप्रैल 1935 को भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना हुई थी और इसके पहले गवर्नर का नाम था सर ओसबोर्न स्मिथ। सर ओसबोर्न स्मिथ का कार्यकाल भारतीय बैंकिंग के इतिहास में महत्वपूर्ण माना जाता है, लेकिन उनका नाम एक कारण से और भी खास है- वह पहले गवर्नर थ, जिन्होंने कभी भी किसी भी नोट पर हस्ताक्षर नहीं किए। स्मिथ का कार्यकाल भले ही छोटा था, लेकिन उनका एक बड़ा निर्णय था कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान किसी भी भारतीय नोट पर हस्ताक्षर नहीं किए। उनके और सरकार के बीच चल रही तनातनी और उनके कार्यकाल में आए विवादों के कारण यह निर्णय लिया गया। इसके पीछे उनका यह मानना था कि जब तक बैंक और सरकार के बीच मतभेदों का समाधान नहीं हो जाता, तब तक वे इस परंपरा में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। 

C.D. Deshmukh (1957-1962) ने भारतीय मुद्रा पर हस्ताक्षर नहीं किए। उन्‍होंने इस फैसले को भारतीय मुद्रा की साख और उसकी विश्वसनीयता से जोड़कर देखा। उनके विचार में, जब तक भारतीय अर्थव्यवस्था स्थिर नहीं हो जाती, तब तक इस परंपरा को बदलने की आवश्यकता थी।

L.K. Jha (1967-1970) भी उन गवर्नरों में थे, जिन्होंने नोटों पर हस्ताक्षर नहीं किए। उनका मानना था कि जब तक देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से सुधर नहीं पाती, तब तक ऐसा कोई प्रतीकात्मक कदम नहीं उठाना चाहिए, जो देश की वित्तीय स्थिति को दर्शाता हो।

कारण और उद्देश्य
इन गवर्नरों के फैसले के पीछे मुख्य उद्देश्य था भारतीय मुद्रा की स्थिरता और उसकी विश्वसनीयता को बनाए रखना। उनका मानना था कि एक स्थिर और मजबूत अर्थव्यवस्था के बाद ही रिजर्व बैंक के गवर्नर का हस्ताक्षर भारतीय नोटों पर होना चाहिए। यह उनका निजी दृष्टिकोण था, जो समय के साथ बदल गया। इन गवर्नरों ने यह सुनिश्चित किया कि उनके कार्यकाल के दौरान जो भी निर्णय लिए जाएं, वह भारतीय मुद्रा की शक्ति और देश की वित्तीय स्थिति को और अधिक मजबूती प्रदान करें। यह विचार तब के हालात को ध्यान में रखते हुए था, जब भारत आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा था।

 प्रस्तुति:ओवियान सिंह शाही 

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