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Ratan Tata's death: उद्योगपति रतन टाटा 1991 से 28 दिसंबर 2012 तक टाटा संस के चेयरमैन रहे। वे कई अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित थे, जिनमें भारत का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान पद्म विभूषण भी शामिल है।

Ratan Tata's death: टाटा संस के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा का बुधवार को 86 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्हें देश और दुनिया के कई प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हुए थे, जिनमें भारत का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान पद्म विभूषण भी शामिल है। लेकिन उनकी पहचान केवल एक उद्योगपति के रूप में नहीं, बल्कि एक ऐसे इंसान के तौर पर भी होती थी, जो अपने मानवीय गुणों, कुत्तों के प्रति प्रेम और सादगी के लिए मशहूर थे। उन्होंने अपने जीवन में हमेशा कर्मों को शब्दों से ज्यादा अहमियत दी। उन्होंने 165 करोड़ रुपए की लागत से नवी मुंबई में 5 मंजिला डॉग हॉस्पिटल शुरू किया।

टाटा संस के मौजूदा चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन ने उनके निधन की पुष्टि करते हुए कहा, “यह हमारे लिए एक गहरे दुख का क्षण है, जब हम श्री रतन नेवल टाटा को विदा कर रहे हैं। वह एक अद्वितीय नेता थे, जिनका योगदान न केवल टाटा समूह बल्कि पूरे देश के विकास में रहा है।”

समूह की कई कंपनियों के एमेरिटस चेयरमैन थे रतन टाटा
रतन टाटा 1991 से 28 दिसंबर 2012 तक टाटा संस के चेयरमैन रहे। इसके बाद 29 दिसंबर 2012 से उन्हें टाटा संस, टाटा इंडस्ट्रीज, टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, और टाटा केमिकल्स का चेयरमैन एमेरिटस (सम्मानित चेयरमैन) का खिताब दिया गया। उन्हें नाइट ग्रैंड क्रॉस ऑफ द मोस्ट एक्सीलेंट ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश एम्पायर से भी सम्मानित किया गया था, और रॉकफेलर फाउंडेशन ने उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा था। इसके अलावा, उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय इंजीनियरिंग और शिक्षा संस्थानों से भी मानद उपाधियों से सम्मानित किया गया था।

रतन टाटा के जीवन का अहम हिस्सा थे 2 कुत्ते

  • रतन टाटा के दो कुत्ते, टिटो (जर्मन शेफर्) और टैंगो (गोल्डन रिट्रीवर), उनके जीवन का अहम हिस्सा थे। अपने पालतू कुत्तों की मौत का उल्लेख करते हुए टाटा ने कहा था, "मेरे कुत्तों के प्रति मेरा प्रेम हमेशा मजबूत रहेगा और मेरे जीवन के अंत तक रहेगा। जब मेरे पालतू जानवरों में से एक गुजर जाता है, तो गहरा दुःख होता है, लेकिन कुछ साल बाद मेरा घर इतना खाली हो जाता है कि मैं फिर से एक और कुत्ते को अपने जीवन का हिस्सा बना लेता हूं।"
  • टाटा समूह का बॉम्बे हाउस, जहां उनका मुख्यालय था, में आवारा कुत्तों के लिए भोजन, पानी, खिलौने और खेलने की तमाम सुविधाएं मिलती हैं। यह परंररा जमशेदजी टाटा के जमाने से चली आ रही है। रतन टाटा ने पीपल फॉर एनिमल्स, बॉम्बे एसपीसीए और एनिमल राहत जैसे पशु कल्याण संगठनों का भी सपोर्ट किया।

कुत्तों के लिए मुंबई में अस्पताल बनवाया

  • रतन टाटा अपनी उदारता और सौम्य स्वभाव के लिए हमेशा से जाने जाते थे। उनका कुत्तों के प्रति खास लगाव किसी से छिपा नहीं था। कुछ साल पहले उन्होंने कुत्तों के लिए एक अत्याधुनिक अस्पताल खोला था। अस्पताल के उद्घाटन के मौके पर कहा था, "मैं कुत्तों को अपने परिवार का हिस्सा मानता हूं।"
  • रतन टाटा ने बताया था कि उन्होंने जीवन में कई पालतू जानवरों को पाला है, और इसीलिए उन्हें जानवरों के अस्पताल की अहमियत का अच्छे से अहसास है। नवी मुंबई स्थित इस 5 मंजिला हॉस्पिटल में एक साथ 200 पालतू जानवरों का इलाज हो सकता है। इसे बनाने में 165 करोड़ रुपए की लागत आई है।
  • रतन टाटा का कुत्तों के प्रति प्यार इस बात से भी समझा जा सकता है कि एक बार वे पालतू कुत्ते को इलाज के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा तक ले गए, जहां कुत्ते का जॉइंट रिप्लेसमेंट किया गया।

दादी ने किया था रतन टाटा का पालन-पोषण 

  • 28 दिसंबर 1937 को नवल और सूनू टाटा के घर जन्मे रतन टाटा और उनके छोटे भाई जिमी का पालन-पोषण उनकी दादी नवाजबाई आर टाटा ने किया था। बचपन में रतन टाटा को रोल्स-रॉयस में स्कूल भेजा जाता था, लेकिन उनकी दादी ने उनके अंदर अनुशासन और सादगी के मूल्य डाले। टाटा ने एक इंटरव्यू में कहा था, "वह हमें बेहद प्यार करती थीं, लेकिन अनुशासन को लेकर काफी सख्त भी थीं।"
  • रतन टाटा ने अपनी शुरुआती पढ़ाई कैम्पियन स्कूल और फिर कैथेड्रल और जॉन कॉनन स्कूल में पूरी की। उन्होंने 1955 से 1962 तक अमेरिका के कॉर्नेल विश्वविद्यालय में आर्किटेक्चर और स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। कैलिफ़ोर्निया के जीवनशैली से प्रभावित होकर उन्होंने वहीं बसने का मन बना लिया था, लेकिन दादी की तबीयत बहुत खराब होने पर उन्हें भारत लौटना पड़ा।
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