Hindi Cult Films With NRI Concept: सिनेमा न केवल कला का एक माध्यम है, बल्कि दुनियाभर में रह रहे प्रवासी भारतीयों और भारतवंशियों को देश से जोड़कर रखने की मजबूत डोर का काम भी बखूबी करता है। दुनिया के ज्यादातर देशों में बड़ी संख्या में भारतीय लोग रहते हैं। विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक साल 2022 में पूरी दुनिया में करीब 2.9 करोड़ प्रवासी भारतीय और 30 लाख से ज्यादा भारतवंशी रहते थे।

भारत से बाहर रह रहे इन अप्रवासी भारतीयों को देश की भावनाओं से जोड़े रखने में सिनेमा एक मजबूत कड़ी की भूमिका निभाता है। ये फिल्में भारत के बाहर बसे भारतीयों और भारतवंशियों को कई तरीकों से समेटती हैं। ये प्रवासियों को अपनी फिल्मी कथाओं या पटकथाओं का अहम किरदार बनाती हैं और न सिर्फ घटी हुई घटनाओं को फिक्शन का रूप देती हैं बल्कि काल्पनिक फिक्शन के जरिए भी प्रवासी भारतीयों की भारतीय संस्कृति को पालने, पोसने और मजबूत बनाए रखने में उनकी भूमिका सुनिश्चित करती है।

शुरुआत से जारी है ट्रेंड
भारतीय फिल्में ये काम अपने शुरुआती दौर से ही कर रही हैं। देश में साल 1913 में पहली फिल्म बनी थी। तभी से बॉलीवुड ने राष्ट्रीयता को और खासकर भारत से बाहर राष्ट्रीयता को परिभाषित करने में अपनी भूमिका निभाई है। आजादी के बाद के सालों में भारतीय सिनेमा ने, खासकर बॉलीवुड फिल्मों ने प्रवासी भारतीयों को हमेशा किसी न किसी रूप में अपनी पटकथाओं का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया है।

 

राज कपूर ने निभाई अहम भूमिका
फिल्म निर्माता, निर्देशक और अभिनेता राजकपूर को विदेशों में भारत के पहले सांस्कृतिक राजदूत के तौर पर जाना जाता है। उनकी फिल्में न केवल देश के आम लोगों की कहानियों को खूबसूरती से बयां करती थीं बल्कि ये विभिन्न संस्कृतियों के बीच की दूरियों को पाटने में भी मदद करती थीं। उनकी फिल्मों ने आजादी के तुरंत बाद से ही भारत की संस्कृति का परचम देश की राजनीतिक और भौगोलिक सीमाओं से परे जाकर लहराया।

आगे भी जारी रहा यह सिलसिला
राजकपूर के अलावा भी कई निर्माता, निर्देशकों और अभिनेताओं ने ऐसी फिल्में बनाईं, जिनमें विदेशों में रहने वाले भारतीयों की मानसिकता और संस्कार को दिखाया गया है। साल 1970 में आई बॉलीवुड फिल्म ‘पूरब और पश्चिम’ की कहानी में एनआरआई की महत्वपूर्ण उपस्थिति थी। कई सालों बाद 1995 में आई ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ में एक बार फिर से भारत के बाहर रहने वाले प्रवासी भारतीयों को भारत के मूल्यों और सांस्कृतिक संवेदनाओं से ओत-प्रोत दिखाया गया।

 

साल 1999 में डेमियन ओ’ डोनेल के द्वारा निर्देशित फिल्म ‘ईस्ट इज ईस्ट’ में ओमपुरी ने एक ऐसे एनआरआई परिवार के महत्वपूर्ण सदस्य की भूमिका निभाई थी, जो मिश्रित जातीयता को भारतीय लोकतंत्र के गुण के रूप में जोड़ती है। ‘मानसून वेडिंग’ मीरा नायर निर्देशित उन कुछ खास फिल्मों में से एक है, जिसने भारत की शादी कल्चर को दुनिया की ललक और जिज्ञासा का विषय बनाया है। निश्चित रूप से ये उन चुनिंदा फिल्मों में शामिल हैं, जिन्होंने भारतीय संस्कृति का परचम बहुत मजबूती से लहराया है।

आज के समय में भी बन रहीं ऐसी फिल्में
कई और बॉलीवुड फिल्मों में भारतीयता के दर्शन और इसके सांस्कृतिक गौरव की कहानी बरास्ते एनआरआई आती है। उदाहरण के तौर पर अक्षय कुमार और अनुष्का शर्मा की ‘पटियाला हाउस’, अक्षय कुमार और कैटरीना कैफ की ‘नमस्ते लंदन’ जैसी फिल्मों को इसी कैटेगिरी में रखा जा सकता है।

झुंपा लाहिड़ी के उपन्यास ‘द नेमसेक’ पर इसी नाम से बनी फिल्म में भी एनआरआई किरदार द्वारा भारत की संस्कृति को मजबूती और विस्तार देते देख सकते हैं। साल 2004 में आई ‘स्वदेश’, इससे पूर्व साल 2002 में आई ‘बॉलीवुड हॉलीवुड’ और इसी साल की एक अन्य फिल्म ‘मित्र: माई फ्रेंड’, ये सब ऐसी फिल्में हैं, जिन्होंने पूरी दुनिया में बड़े पर्दे के माध्यम से भारतीय संस्कृति का परचम लहराया। आने वाले दिनों में भी ऐसी कई फिल्मों की उम्मीद की जा सकती है।

 

इन फिल्मों का होता है अच्छा बिजनेस
एक सचाई यह भी है कि बॉलीवुड ने ही नहीं बल्कि देश की रीजनल फिल्म इंडस्ट्रीज ने भी प्रवासी भारतीयों को अपनी फिल्मों के लिए महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय विषय के रूप में चुना है। इसके पीछे का एक बड़ा उद्देश्य कॉमर्शियल भी होता है। फिल्मों के लिए अगर प्रवासी भारतीय महत्वपूर्ण विषय और संदर्भ हैं, तो इसलिए भी क्योंकि ये प्रवासी भारतीय, ऐसी फिल्मों को काफी पसंद करते हैं। भारतीय फिल्में अपने देश में जितना कमाती हैं, उसमें से 12 से 15 फीसदी से ज्यादा विदेशों में प्रवासी भारतीयों और भारतीय मूल के दर्शकों के कारण कमाती हैं।