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एक्ट्रेस जान्हवी कपूर ने हाल ही में अपने हिंदु संस्कृति के करीबी रहने और धार्मिक होने पर खुलासा किया है। उन्होंने कहा है कि उनकी मां श्रीदेवी के गुजरने के बाद वह बहुत अंधविश्वासी हो गई हैं।

Sridevi-Janhvi Kapoor: फिल्ममेकर बोनी कपूर और दिवंगत अभिनेत्री श्रीदेवी की बड़ी बेटी जान्हवी कपूर अब बॉलीवुड में अपनी खास पहचान बना चुकी हैं। वह इन दिनों अपनी अपकमिंग फिल्म ‘मिस्टर एंड मिसेज माही’ को लेकर काफी चर्चाओं में हैं। ये फिल्म 31 मई को रिलीज होने वाली है जिसके लिए जान्हवी इन दिनों जोर-शोर से प्रमोशन करती देखी जा ही हैं। हाल ही में उन्होंने एक इंटरव्यू में अपनी दिवंगत मां श्रीदेवी से जुड़े कुछ अनसुने किस्से शेयर किए हैं।

क्यों धार्मिक हैं जान्हवी?
हर साल जान्हवी को अपने जन्मदिन पर तिरुपति बालाजी मंदिर के दर्शन करते देखा जाता है। सिर्फ जन्मदिन ही नहीं, वह अक्सर कई मौकों पर भगवान की भक्ति में लीन भी नजर आती हैं। ये बदलाव एक्ट्रेस के अंदर उनकी मां के निधन के बाद आया है। जान्हवी ने हाल ही में 'द लल्लनटॉप' को दिए इंटरव्यू में कहा- "मेरी मां कुछ ऐसी चीजो में विश्वास रखती थीं जो अजीब हैं, जैसे- किसी काम को किसी शुभ दिन पर करना, शुक्रवार के दिन बाल न काटना ताकी मां लक्ष्मी की कृपा दूर ना हो, शुक्रवार के दिन काले कपड़े ना पहनना, आदि। मैं इस तरह के अंधविश्वास पर कभी विश्वास नहीं करती थी।"

Janhvi Kapoor- Sridevi
 

एक्ट्रेस ने आगे कहा- "लेकिन मां के गुजरने के बाद से पता नहीं ऐसा क्या हुआ, मैं इन चीजों को मानने लगी। जब वह जीवित थीं तब हम पूजा पाठ करते थे क्योंकि मां ऐसा करती थीं। लेकिन उनके जाने के बाद मेरा नजरिया बदल गया है। मेरा पूजा-पाठ में मन लगने लगा। मैं हिंदुत्व और संस्कृति को लेकर ज्यादा जागरूक हुई।"

इसलिए जाती हैं तिरुपति
जान्हवी कपूर अक्सर तिरुपति बालाजी के दर्शन करने जाया करती हैं। इस पर बात करते हुए उन्होंने बताया कि श्रीदेवी का इससे खास कनेक्शन है। उन्होंने कहा- "मैं बचपन से सुनती आई हूं कि मां का बालाजी से एक अलग जुड़ाव है। वह मां उनका नाम नारायण नारायण नारायण जपती थीं। जब वो काम कर रही थीं, तब वह हर साल अपने जन्मदिन पर तिरुपति जाया करती थीं, लेकिन शादी के बाद उन्होंने मंदिर जाना बंद कर दिया था।

उनके जाने के बाद मैंने ठान लिया था कि उनके हर बर्थडे पर मैं तिरुपति बालाजी जाऊंगी। पहली बार जब मैं वहां गई तो बहुत भावुक हो गई थी। वहां बहुत सुकून था। उसके बाद मैंने तय कर लिया था कि हर बड़े काम से पहले मैं तिरुपति मंदिर की सीढ़ियां चढ़ूंगी।"

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