भोपाल (मधुरिमा राजपाल )। पृथ्वी की उत्पत्ति को लेकर जनजातियों में कई मिथक हैं, जिनमें जीव-जंतुओं की बड़ी भूमिका है। जनजातियों में मान्यता है कि इस सृष्टि में पहले जल ही जल था। जल प्रलय के बाद भगवान शिव के आदेश पर केकड़ा ने पृथ्वी की खोज की थी। इसके बाद कौआ ने सर्प और मकड़ी जैसे जीवों को खोजा था और यहीं से सृष्टि की उत्पत्ति हुई, जनजातीयों में व्याप्त इन्हीं मिथकों को सभ्य समाज को बताने के लिए मप्र पुरातत्व, अभिलेखागार और संग्रहालय द्वारा राज्य के संग्रहालय और स्मारकों में संवारने के क्रम में मध्य प्रदेश जनजातीय संग्रहालय के मुख्य द्वार पर केकड़ा, कौआ, मकड़ी और सर्प (नाग) की आकृतियों को प्रदर्शित किया गया, जो सृष्टि में पृथ्वी की खोज और जीवों की उत्पत्ति का जनजातीय आख्यान है।
बस्तर के शिल्पी बना रहे आकृतियां
लकड़ी और लोहे से बनी ये चारों आकृतियां आगामी 15 दिन में प्रवेश द्वार के पास लगा दी जाएंगी।केकड़ा,मकड़ी और कौआ की आकृति बन चुकी है, जबकि नाग की आकृति का निर्माण संग्रहालय में परिसर में ही किया जा रहा है। यह अकृति बस्तर के शिल्पी सुभाष पोयाम तैयार कर रहे हैं। इसके माध्यम से दर्शक क्रमबद्ध तरीके से धरती के बाद जीवों और उसके बाद मनुष्य की उत्पति के बारे में जानने के बाद संग्रहालय के भीतर जनजातीय कला और संस्कृति के बारे में जान सकेंगे।
मिथक है कि मनुष्य का विकास सर्प से हुआ
मप्र जनजातीय संग्रहालय के क्यूरेट अशोक मिश्रा ने बताया कि मिथक है कि मनुष्य का विकास सर्प से हुआ है।इसीलिए सर्प की बड़ी और केकड़ा,मकड़ी और कौआ की छोटी प्रतिकृति लगाई जा रही है।