Kapalbhati Benefits: भारतीय योग में शरीर को निरोग रखने के लिए कई तरह के आसन और प्राणायाम दिए गए हैं। कपालभाति भी एक ऐसा प्राणायाम है, जिसका सही तरीके से अभ्यास शरीर को कई बड़े फायदे दिला सकता है। कपालभाति का नियमित अभ्यास तनाव घटाने में मदद करता है। इसके साथ ही इससे शरीर की इम्यूनिटी भी बूस्ट होती है। 

आसन और प्राणायाम शरीर को बड़े लाभ दिला सकते हैं, बशर्ते उन्हें सही तरीके से किया जाए। इसके लिए किसी योग्य प्रशिक्षक से सीखना जरूरी है। आइए जानते हैं कपालभाति करने के लाभ और अभ्यास का सही तरीका। 

कपालभाति करने के लाभ

पाचन में सुधार करता है: कपालभाति प्राणायाम का नियमित अभ्यास पाचन अंगों की मालिश करता है और पाचन में सुधार करता है। इससे पाचन संबंधी समस्याएं दूर होने लगती हैं। 

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वजन कम करने में मदद करता है: जो लोग मोटापे से परेशान हैं उन्हें कपालभाति का नियमित अभ्यास करना चाहिए। कपालभाति प्राणायम से मेटाबॉलिज्म बेहतर होता है और वजन कम करने में मदद मिलती है।

तनाव कम करता है: कपालभाति प्राणायाम का अभ्यास मन को शांत करता है और तनाव कम करता है। कपालभाति का कुछ दिनों तक अभ्यास करने से इसके लाभ नजर आने लगते हैं। 

एकाग्रता में सुधार करता है: आप अगर अपना फोकस किसी काम में नहीं रख पाते हैं तो कपालभाति प्राणायाम शुरू करें। कपालभाति एकाग्रता और स्मृति में सुधार करता है।

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है: जो लोग कमजोर इम्यून सिस्टम से जूझ रहे हैं उनके लिए कपालभाति प्राणायाम करना बड़ा लाभकारी हो सकता है। कपालभाति करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोतरी होती है।

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कपालभाति प्राणायाम कैसे करें?

पूरक (श्वास अंदर लेना): धीमी और गहरी सांस नाक के माध्यम से अंदर लें। पेट को थोड़ा बाहर की ओर फुलाते हुए, अपने डायाफ्राम का उपयोग करके सांस लें।

रेचक (श्वास छोड़ना): तेज और झटके से सांस नाक से बाहर छोड़ें। पेट को अंदर की ओर खींचते हुए, अपनी पेट की मांसपेशियों का उपयोग करके सांसछोड़ें। यह क्रिया आपके पेट को अंदर और बाहर धकेलेगी, जिससे एक "कपाल" या खोपड़ी जैसी गति पैदा होगी।

अंतराल: श्वास छोड़ने के बाद, थोड़ा सा विराम लें। यह अंतराल श्वास छोड़ने की अवधि के बराबर या उससे थोड़ा कम होना चाहिए।

चक्र: इस प्रक्रिया को 10-20 बार दोहराएं। धीरे-धीरे अभ्यास के साथ, आप दोहराव की संख्या बढ़ा सकते हैं।

ध्यान देने वाली बातें
श्वास हमेशा नाक से होनी चाहिए, मुंह से नहीं। श्वास छोड़ने की गति तेज और झटकेदार होनी चाहिए, जबकि श्वास लेने की गति धीमी और नियंत्रित होनी चाहिए। अपनी श्वास पर ध्यान केंद्रित करें और अपनी मांसपेशियों के तनाव पर ध्यान दें। शुरुआत में धीरे-धीरे अभ्यास करें और धीरे-धीरे गति और दोहराव की संख्या बढ़ाएं।

(Disclaimer: इस आर्टिकल में दी गई सामग्री सिर्फ जानकारी के लिए है। हरिभूमि इनकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी सलाह या सुझाव को अमल में लेने से पहले किसी विशेषज्ञ, डॉक्टर से परामर्श जरूर लें।)