Lung Cancer: जब स्मोकिंग, एयर पॉल्यूशन, रेडिएशन, कुछ भारी धातुओं के संपर्क में आने या फैमिली हिस्ट्री के कारण किसी व्यक्ति के लंग्स टिश्यूज में सेल्स अनियंत्रित रूप से बढ़ने और उनकी संख्या में वृद्धि होने लगती है, तो यह स्थिति वास्तव में फेफड़ों के कैंसर या लंग कैंसर की होती है। लंग कैंसर दुनिया का सबसे कॉमन कैंसर है। आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में कैंसर से पीड़ित हर तीसरा व्यक्ति लंग कैंसर से ही पीड़ित है।
समय पर पता लगना है जरूरी
वैसे तो सभी तरह के कैंसर बहुत खतरनाक होते हैं, लेकिन लंग कैंसर इसलिए भी ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि इसका पता आमतौर पर तब चलता है, जब यह काफी बड़े पैमाने पर फैल चुका होता है। दूसरे शब्दों में काबू से बाहर हो चुका होता है। शायद यही वजह है कि लंग कैंसर पीड़ितों के जीवित रहने की दर महज 22 फीसदी होती है। अगर समय रहते बीमारी का पता चल जाए तो 50 फीसदी से ज्यादा बचने के चांस होते हैं और नहीं भी बचा तो बीमार के जीवित रहने का समय काफी ज्यादा होता है। अगर शुरुआती स्टेज में लंग कैंसर का पता चल जाए, तो धूम्रपान छोड़ने पर मरीज के 20 फीसदी जीवित रहने की उम्मीद बढ़ जाती है। इसलिए सबसे जरूरी है कि समय रहते लंग कैंसर का पता चल जाए, जिसके लिए जरूरी है कि हम शरीर के कुछ लक्षणों पर नजर रखें। अगर लंग कैंसर का पता पहले या दूसरे चरण के शुरुआत में लग जाए तो भी बचने की संभावना 20 फीसदी तक हो जाती है और जीवित रहने की उम्र में भी आमतौर पर 10 साल का इजाफा हो जाता है। इससे पता चलता है कि लंग कैंसर का समय पर पता चलना कितना जरूरी है।
लक्षणों पर रखें नजर
अगर किसी को लंबे समय से लगातार खांसी आए और बीच-बीच में खून के कुछ धब्बे नजर आएं तो यह लंग कैंसर का लक्षण हो सकता है। अगर सांस लेने में नियमित तौर पर तकलीफ हो रही हो, सीने में दर्द या बेचैनी महसूस हो रही हो। बात करने में सांस उखड़ने लगे, आवाज में घरघराहट पैदा हो जाए, बात करते करते आवाज बैठने लगे, भूख ना लगे और बिना किसी वजह के वजन गिरता जाए तो भी यह लंग्स कैंसर का लक्षण हो सकता है। कंधों में लगातार दर्द, चेहरे, गर्दन, हाथ या ऊपरी छाती में सूजन, एक आंख में छोटी पुतली, झुकी हुई पलक और चेहरे के उस तरफ बहुत कम या बिल्कुल पसीना ना आना, अंगुलियों और नाखूनों के आकार में परिवर्तन और लगातार पीठ दर्द। ये लक्षण भी फेफड़ों के कैंसर से जुड़े हुए हो सकते हैं।
लंग्स कैसर के कारण
लंग्स कैंसर होने के कई कारण हो सकते हैं। लेकिन सबसे बड़ा कारण सिगरेट, बीड़ी, हुक्का, सिगार या पाइप जैसे तंबाकू उत्पादनों का सेवन या ऐसे लोगों के बीच में रहना, जो लगातार आपके इर्द-गिर्द धूम्रपान करते हों। एस्बेस्टेस जैसे विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आना, वायु प्रदूषण में रहना, कुछ भारी धातुओं के संपर्क में आना या फेफड़े की किसी गंभीर बीमारी का होना भी फेफड़ों के कैंसर का प्रमुख कारण हो सकता है। लेकिन सबसे ज्यादा 80 से 85 फीसदी तक फेफड़ों के कैंसर का कारण धूम्रपान होता है। विशेषज्ञों की मानें तो लंग कैंसर के कारण जो मौतें होती हैं, उसमें 80 फीसदी ऐसे लोगों की मौतें होती हैं, जिन्हें धूम्रपान के कारण यह कैंसर हुआ होता है। अगर यह पता चल जाए कि धूम्रपान करने वाले व्यक्ति में कैंसर के लक्षण दिखने लगे हैं और वह धूम्रपान करना छोड़ दे तो कैंसर की आशंका 20 फीसदी से ज्यादा कम हो जाती है। दरअसल, तंबाकू के धुएं और चबाकर खाई जाने वाली तंबाकू में जो निकोटीन नाम का जहरीला तत्व होता है, उसके कारण सबसे ज्यादा लंग कैंसर होता है।
बचाव के तरीके
लंग कैंसर से बचने का एक तरीका यह है कि कभी भी धूम्रपान ना किया जाए और ना उन लोगों के साथ देर तक रहा जाए, जो धूम्रपान करते हैं। अगर आप पहले से ही धूम्रपान कर रहे हैं तो किसी भी कीमत पर धूम्रपान छोड़ने की कोशिश करें। भले इसके लिए काउंसिलिंग से लेकर मेडिकल हेल्प तक क्यों ना लेना पड़े। हाल के सालों में लंग कैंसर के लिए भारत में जो वजहें सामने आई हैं, उनमें पान मसाला, गुटखा, पैक सुपारी और शराब का सेवन भी हैं। इनसे बचें और अपनी रोजमर्रा की डाइट में ज्यादा से ज्यादा फल, हरी सब्जियां और दालों को शामिल करें। हालांकि सभी तरह के फलों और सब्जियों में इन दिनों कीटनाशकों के होने की आशंका बहुत ज्यादा बढ़ गई है। इस वजह से बाजार से सब्जियां और फल लाने के बाद उन्हें कई घंटों तक पानी में भिगोकर रखें या अच्छी तरीके से उन्हें साफ करने के बाद ही सेवन करें। कीटनाशक भी कैंसर की वजह हो सकते हैं।
लोगों में अवेयरनेस है जरूरी
साल 2020 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया था कि इस बीमारी से पूरी दुनिया में हर साल करीब 18 लाख लोगों की मौत हो जाती है। दुनिया भर में लंग कैंसर के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए वर्ल्ड कैंसर डे मनाया जाता है, जिसका मकसद ही यह होता है कि लोगों को बताया जाए कि यह कैंसर कितना खतरनाक है और इससे बचकर कैसे रहा जा सकता है? हालांकि लगातार जन जागरूकता अभियान के चलते हाल के सालों में फेफड़ों के कैंसर के मरीजों की संख्या में आंशिक रूप से कमी आई है। लेकिन यह कमी अभी इतनी नहीं है कि राहत की सांस ली जा सके। यही वजह है कि दुनियाभर की तमाम कैंसर संबंधी संस्थाएं, लोगों को इस भयानक बीमारी से दूर रहने के लिए आगाह करती रहती हैं।