स्ट्रेस है जानलेवा, बर्न आउट के मामलों में भारत टॉप पर

हाल ही में इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति का एक बयान सामने आया है। जिसमें उन्होंने कहा, कि किसी भी व्यक्ति को एक हफ्ते में 70 घंटे काम करना चाहिए। इस बयान में काम को लेकर घंटे, वर्कप्लेस, स्ट्रेस, कम सैलरी के मुद्दे को लेकर भी बात की।
माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स ने भी एक बयान दिया है, उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के आने के बाद हफ्ते में 3 दिन काम करना भी संभव है। भविष्य में AI के इस्तेमाल से लोगों के काम का बोझ कितना कम होगा या बढ़ेगा और बेरोजगारी कितनी बढ़ेगी, इस मुद्दे पर बात की। मेकिंजे हेल्थ इंस्टीट्यूट का एक सर्वे सामने आया है जिसमें भारत में काम करने और इससे जुड़े स्ट्रेस को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं।
30 देशों के सर्वे में पाया गया कि वर्क प्लेस पर बर्न आउट के मामले में भारत टॉप पर पहुंच गया है। जहां दुनिया भर में औसत 20% कर्मचारी बर्न आउट से परेशान हैं। वहीं हमारे देश में ये आंकड़ा बढ़कर करीब तीन गुना है। सर्वे में ये भी देखा गया कि छोटी कंपनियों में काम करने वाले युवा बर्नआउट का ज्यादा शिकार हो रहे हैं। ये सिर्फ मेंटल हेल्थ का मामला नहीं है। जिसकी वजह से काम और आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।
बर्नआउट और स्ट्रेस से कैसे बचा जा सकता है?
अमेरिका के एक साइकोलॉजिस्ट हर्बर्ट फ्रेउडेनबर्ग ने 1974 में पहली बार‘बर्नआउट’ शब्द का प्रयोग किया था। उन्होंने बताया था कि बर्नआउट ‘क्रॉनिक स्ट्रेस’ यानी लगातार रहने वाली तनाव से होता है। अगर काम का तनाव ठीक ना किया जाए और लगातार काम का प्रेशर बना रहा तो आगे चलकर ये आसानी से बर्नआउट का रूप ले सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, काम को लेकर हम दबाव महसूस करते हैं, स्ट्रेस जब लगातार बना रहता है, नियंत्रण के बाहर हो जाता है तो यह टेंशन है।
जब खाना-पीना में मन ना लगे, घबराहट, बेचैनी बढ़ने लगे, ये स्ट्रेस हाथ से निकल जाए, लगातार शरीर में थकान बनी रहे, किसी काम में मन न लगे और हर वक्त उदास रहें तो बर्नआउट हो सकता है। बर्नआउट के बढ़ते हुए मामले और गंभीरता को देखते हुए 2019 में WHO ने इसे एक बीमारी का दर्जा दिया।
-
Home
-
Menu
© Copyright 2025: Haribhoomi All Rights Reserved. Powered by BLINK CMS