Diwali 2024: दीपावली यानी साफ-सफाई, नवीन सजावट, दीप जलाने, उल्लास, खुशियां बांटने, तोहफे देने का पर्व। मिठाइयां खाने और खिलाने का सुअवसर। एक-दूसरे को बधाई, दुआएं देने का समय। पुरानी बातों, पुराने खातों को समाप्त कर, नए युग की शुरुआत का समय। इस दिन लोग दीप जलाकर अपने घरों, दुकानों और दफ्तरों को रोशन करते हैं। हम सभी का विश्वास है कि श्रीलक्ष्मी अंधकार में नहीं आतीं। अब प्रश्न है कि क्या घर-दफ्तर के कोनों को साफ करने, अंधियारा मिटाने से ही श्रीलक्ष्मी की कृपा बरसती है या बाह्य के साथ आंतरिक सफाई अर्थात मन की सफाई भी महत्वपूर्ण है? 

समझें अंधकार का वास्तविक अर्थ
असल में हम अंधकार के आध्यात्मिक रहस्य से अनभिज्ञ हैं। अंधकार से अभिप्राय रात्रि का अंधकार नहीं, बल्कि यह शब्द अज्ञानता का वाचक है। कहने का भाव यह है कि जब तक घर-घर में लोगों का आत्मा रूपी दीप नहीं जलता है, उनकी बुद्धि में ज्ञान रूपी प्रकाश नहीं फैलता, मन का विकार और मैल नहीं समाप्त होता, तब तक श्रीलक्ष्मी पधार नहीं सकती हैं। व्यक्ति हो, वस्तु, स्थान या वायुमंडल, सबको शुद्धता ही प्रिय लगती है। ऐसे में जब हम सभी मानसिक शुद्धता पर ध्यान देते हैं, तो स्वयं को और सर्व को प्रिय लगते हैं।

इसलिए मन होता है मैला
देखा जाए तो हम रोज ही सफाई करते हैं। फिर वो घर की सफाई हो या शरीर की। हालांकि दिवाली की सफाई का स्तर कुछ और होता है। बाकी दिन जहां ऊपर-ऊपर से सफाई की जाती है, वहीं इस त्योहार पर कोने-कोने को साफ करते हैं। लेकिन ये भूल जाते हैं कि मन की गहरी सफाई भी उतनी ही आवश्यक है, क्योंकि वर्षों में हम बहुत-सी बातों-घटनाओं को मन में पकड़ कर रखे होते हैं। वे एक गांठ का रूप ले लेती हैं, भूलती नहीं।

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रिश्ते निभाने के लिए बेशक हम लोगों के साथ बहुत प्यार से बातें करते हैं, उनसे अच्छा व्यवहार करते हैं। लेकिन असल में हमें लोगों के संस्कार, उनका काम करने का तरीका, जीने का अंदाज पसंद नहीं आता। मुख से कुछ गलत शब्द निकलने पर फौरन क्षमा मांग लेते हैं कि कहना नहीं चाहते थे, पर गलती से निकल गया। जबकि सच यह है कि कोई बात मुख से तभी निकलती है, जब वह मन में हो। हमारे शब्द एवं व्यवहार तो सही होते हैं, लेकिन हम सोचते कुछ और हैं और बोलते कुछ और हैं। इससे मन मैला होता जाता है। उसमें धूल जमती जाती है।

जाग्रत करें मन की पवित्रता-दिव्यता
जब तक मन की अच्छी तरह सफाई नहीं होगी, श्रीलक्ष्मी का हम आह्वान नहीं कर पाएंगे। श्रीलक्ष्मी का आह्वान मतलब अपने अंदर, मन की पवित्रता एवं दिव्यता को जाग्रत करना। अगर वहां मैल होगी, तो दिव्यता कैसे आएगी? पुरानी बातों, संस्कारों को पकड़ कर रखने से पवित्रता नहीं आ सकती। इसलिए मन के कोने-कोने की जांच करें। कहीं कोई जाला लगा हुआ हो, किसी कोने में मैल हो, तो उन्हें साफ करें।

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बचपन की कोई बात, 20 साल पुरानी घटना जब किसी ने कुछ कहा या कुछ किया था, उसे मन से हटाएं। पुराने हर दाग को मिटाएं। क्योंकि आत्मा पर लगा हर दाग हमारे वर्तमान को प्रभावित करता है। इतना ही नहीं, जब आत्मा शरीर छोड़ती है, तो हमारे सभी दाग उसके साथ जाते हैं। ऐसे में सच्ची दिवाली मनाने के लिए हमें आत्मा (मन) के हर दाग को मिटाना होगा। इस दिन लोग वैसे भी अपने हिसाब-किताब के पुराने बहीखाते बंद करते हैं। फिर आप बीती बातों पर पूर्ण विराम लगाकर क्यों नहीं संस्कारों का नया बहीखाता खोल सकते हैं? अब जब दिवाली नजदीक है, तो प्यार से ना सिर्फ घर के कोने-कोने की सफाई करें, बल्कि मन के भी कोनों को साफ करें।

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जलाएं आत्मा की ज्योति
दिवाली पर सिर्फ बाह्य शुद्धता एवं दीप जलाने की बजाय अपनी आत्मा की ज्योति भी जगाएं अर्थात मानसिक शुद्धता पर ध्यान दें। अगले कुछ दिन रोज सुबह स्वयं से बात करें कि हे मन, क्या विचार कर रहे हो? मन कहेगा अमुक चीज मेरे साथ ही क्यों हुई? उसने मेरा अपमान क्यों किया? मैं इतनी बड़ी गलती कैसे कर सकता हूं? खुद से ऐसी नकारात्मक बातें करना बंद करें। इससे आत्मा कमजोर होती है। मन को सकारात्मक विचार दें। मेडिटेशन में जब हम परमात्मा को याद करते हुए उन्हें अपने मन में जमी धूल के बारे में बताते हैं, तो हल्केपन का अनुभव होता है। मन साफ हो जाता है। संकल्प शुद्ध हो जाते हैं, फिर क्यों ना पुराने कर्मों एवं संस्कारों का लेखा-जोखा समाप्त करके दिवाली पर शुभ कर्म करने की दृढ़ प्रतिज्ञा करें। नए संस्कारों का खाता खोलें। मन को शक्तिशाली बनाएं और सही मायने में दिवाली मनाएं।