Gandhi Jayanti 2024: महात्मा गांधी एक ऐसे युग पुरुष थे, जिन्होंने ना केवल राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन का नेतृत्व किया बल्कि अपने विचारों और कार्यों से समाज को एक नई दिशा भी दी। गांधीजी ने महिलाओं को समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाने के लिए अनेकानेक प्रयास किए। उन्होंने अपने आंदोलनों में ही नहीं, अपने आश्रम में भी महिलाओं की भूमिका को महत्व दिया। गांधीजी का मानना था कि जब तक महिलाएं समाज में समान रूप से भागीदार नहीं होंगी, तब तक समाज का पूर्ण विकास संभव नहीं है।
महात्मा गांधी के महिलाओं से जुड़े विचार आज भी प्रासंगिक हैं। उनका यह विश्वास था कि जब तक महिलाएं आर्थिक, सामाजिक और मानसिक रूप से स्वतंत्र नहीं होंगी, तब तक वे समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त नहीं कर सकेंगी। गांधीजी ने महिला सशक्तिकरण के लिए केवल कानून और नीतियां बनाने में यकीन नहीं रखा, इसे समाज के हर हिस्से में लागू करने के भी प्रयास किए। आज भी महिलाओं के प्रति असमानता, हिंसा और भेदभाव जैसी समस्याओं का सामना करते समय गांधीजी के विचार हमें प्रेरणा देते हैं।
पत्नी कस्तूरबा को दिया बराबरी का दर्जा
महात्मा गांधी का अपनी पत्नी कस्तूरबा गांधी के साथ संबंध केवल पति-पत्नी के सामान्य रिश्ते तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें परस्पर सम्मान और सहयोग की भावना भी थी। कस्तूरबा गांधी ने ना केवल अपने पति के जीवन में, उनके आंदोलनों और सामाजिक कार्यों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हर जगह महात्मा गांधी के साथ कस्तूरबा की उपस्थिति रहती थी। गांधीजी ने कभी भी अपनी पत्नी को केवल घरेलू दायरे तक सीमित नहीं रखा, उन्हें समाज और राष्ट्र-निर्माण में समान भागीदार के रूप में देखा। गांधीजी ने स्वयं स्वीकार किया है कि उनके व्यक्तित्व को पूर्णता कस्तूरबा से ही मिली।
जनांदोलनों में महिलाओं की अहम भूमिका
महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भागीदारी को विशेष महत्व दिया। उनके अनुसार देश की स्वतंत्रता तब तक पूर्ण नहीं हो सकती, जब तक महिलाएं इस संघर्ष में अपनी भूमिका नहीं निभाएंगी। गांधीजी का मानना था कि महिलाओं को सामाजिक और राजनीतिक जीवन में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए ताकि वे अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक हो सकें। गांधीजी ने 1920 के असहयोग आंदोलन के दौरान महिलाओं को जन आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया।
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इस आंदोलन में महिलाओं ने विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया और खादी का प्रचार किया। गांधीजी ने घर-घर जाकर लोगों को स्वदेशी वस्त्रों के महत्व को समझाया। महिलाओं ने ना केवल विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार में भाग लिया, बल्कि कई बार जेल भी गईं। सरोजिनी नायडू जैसी महिलाएं इस आंदोलन का नेतृत्व कर रही थीं, जो गांधीजी के नेतृत्व में आगे बढ़ीं और महिलाओं को संगठित किया।
इसी तरह 1930 का नमक सत्याग्रह, महिलाओं के साहस और संघर्षशीलता का प्रतीक बन गया। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आंदोलन में कई घरेलू महिलाओं ने भी अपनी भागीदारी दर्ज कराई। उन्होंने ना केवल ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष किया, जेल भी गईं। गांधीजी का महिलाओं के प्रति यह दृष्टिकोण था कि वे किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं, उनको राष्ट्रीय आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी निभानी चाहिए।
आश्रम व्यवस्था में महिलाओं की भूमिका
महात्मा गांधी ने अपने आश्रम जीवन में महिलाओं को समान स्थान दिया। उनके आश्रमों में महिलाएं केवल घरेलू कार्यों तक सीमित नहीं रहती थीं। वे खेती, कताई और बुनाई जैसे रचनात्मक कार्यों में संलग्न रहती थीं ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें। उन्होंने आश्रमों में महिलाओं को शिक्षित करने और उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने पर जोर दिया। गांधीजी ने महिलाओं को स्वच्छता, स्वास्थ्य और आत्मरक्षा के महत्व को भी समझाया और आश्रमों को महिलाओं के सशक्तिकरण का केंद्र बना दिया।
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स्त्री स्वावलंबन के हिमायती
महात्मा गांधी का यह दृढ़ विश्वास था कि महिलाओं का सशक्तिकरण तभी संभव है, जब वे आत्मनिर्भर होंगी। गांधीजी ने खादी और स्वदेशी आंदोलन के माध्यम से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया। उन्होंने महिलाओं से आग्रह किया कि वे खादी के वस्त्र बनाएं और इसका प्रचार-प्रसार करें। इसके साथ ही उन्होंने महिलाओं को घरेलू उद्योगों से जुड़ने के लिए प्रेरित किया ताकि वे ना केवल अपने परिवार के लिए आर्थिक संबल बनें, अपना आत्मविश्वास भी बढ़ाएं। गांधीजी का यह मानना था कि महिलाओं को अपनी आय के स्रोत खुद विकसित करने चाहिए ताकि वे किसी पर निर्भर ना रहें।
स्त्री सुरक्षा का व्यापक दृष्टिकोण
महात्मा गांधी ने स्त्रियों की सुरक्षा को अत्यंत महत्त्वपूर्ण मुद्दा माना। उनका मानना था कि समाज में महिलाओं को सुरक्षित माहौल मिलना चाहिए ताकि वे अपने कार्यों और कर्तव्यों का स्वतंत्र रूप से निर्वाह कर सकें। गांधीजी का यह भी मानना था कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए सबसे पहले पुरुषों के विचारों और दृष्टिकोण को बदलना जरूरी है। गांधीजी ने पुरुषों को महिलाओं के प्रति सम्मानपूर्ण दृष्टिकोण रखने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि अगर समाज में महिलाओं को उचित सम्मान और सुरक्षा नहीं मिलेगी तो समाज का विकास अधूरा रहेगा। गांधीजी का यह भी मानना था कि स्त्रियों की सुरक्षा केवल कानून के द्वारा सुनिश्चित नहीं की जा सकती, इसके लिए समाज में नैतिकता और संवेदनशीलता का होना जरूरी है। गांधीजी का यह विश्वास था कि महिलाओं को आत्मरक्षा के तरीकों को अपनाना चाहिए और शोषण-अन्याय का पुरजोर विरोध करना चाहिए।
सामाजिक बुराइयों का विरोध
महात्मा गांधी ने भारतीय समाज में फैली कई सामाजिक बुराइयों का कड़ा विरोध किया, जो विशेष रूप से महिलाओं के लिए हानिकारक थीं। उन्होंने इन बुराइयों को समाप्त करने के लिए कई आंदोलनों का नेतृत्व किया। गांधीजी का मानना था कि जब तक इन सामाजिक बुराइयों का उन्मूलन नहीं होगा, तब तक महिलाओं का सशक्तिकरण संभव नहीं है। गांधीजी बाल विवाह के प्रबल विरोधी थे। उनका कहना था कि यह प्रथा ना केवल महिलाओं के मानसिक और शारीरिक विकास में बाधक है, बल्कि यह उनके अधिकारों का भी हनन करती है।
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बाल विवाह के कारण महिलाओं को अपनी शिक्षा और जीवन के महत्त्वपूर्ण अवसरों से वंचित कर दिया जाता है। इसी तरह गांधीजी ने दहेज प्रथा के खिलाफ भी आवाज उठाई। उन्होंने इसे महिलाओं के आत्मसम्मान पर चोट और उनके परिवारों पर आर्थिक बोझ के रूप में देखा। गांधीजी का मानना था कि दहेज प्रथा एक सामाजिक बुराई है, जो महिलाओं को वस्तु के रूप में प्रस्तुत करती है।
आज और भी प्रासंगिक हैं गांधी के विचार
गांधीजी का यह मानना था कि महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सबसे पहले समाज की मानसिकता में बदलाव लाना जरूरी है। महिलाओं को केवल घरेलू कार्यों और परिवार तक सीमित रखने की सोच को बदलना होगा। इसके लिए जरूरी है कि हम महिलाओं को हर क्षेत्र में आगे बढ़ने का अवसर दें, चाहे वह शिक्षा हो, राजनीति हो, व्यवसाय हो या कोई अन्य क्षेत्र। आज जब महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी योग्यता साबित कर रही हैं, गांधीजी के विचार और भी प्रासंगिक हो जाते हैं।