हरतालिका तीज का व्रत देवी पार्वती की भक्ति और भगवान शिव से उनके दिव्य मिलन की पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है। हरतालिका तीज का व्रत श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है और इसे मुख्य रूप से उत्तर भारत, खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश में मनाया जाता है।

व्रत का महत्व

हरतालिका तीज के व्रत विशेष रूप से सुहागिन महिलाओं की तरफ से अपने पति की लंबी उम्र, सुखी वैवाहिक जीवन के लिए किया जाता है। साथ ही, अविवाहित महिलाएं इस व्रत को भगवान शिव की तरह आदर्श पति की मिले, इसलिए रखती हैं। इस व्रत की विशेषता यह है कि, इसे निर्जल और निराहार रखा जाता है। महिलाएं दिनभर उपवास करती हैं, पूजा-पाठ करती हैं और रात के वक्त जागरण भी करती हैं।  

व्रत कथा

हरतालिका तीज की पौराणिक कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या इतनी कठिन थी कि, उन्होंने कई वर्षों तक अन्न-जल का त्याग कर केवल शिव की आराधना की। देवी पार्वती के इस समर्पण को देखकर उनकी सखियां भी उन्हें प्रोत्साहित करती रहीं। 

कथा के मुताबिक, पार्वती के पिता राजा हिमालय ने उनका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया, जो उनकी इच्छाओं के विपरीत था। जब पार्वती को यह पता चला, तो उन्होंने अपनी एक सखी के साथ जंगल में भागकर शिव की घोर तपस्या की। पार्वती की सखियां उन्हें जंगल में लेकर गईं और वहां पर तपस्या करने में सहायता की। इसके बाद से ही यह सखियां ‘हरतालिका’ नाम से जानी गईं थी। 

पार्वती की तपस्या से भगवान शिव इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने प्रकट होकर उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया। इस प्रकार, देवी पार्वती की भगवान शिव के प्रति उनकी अनन्य भक्ति और समर्पण ने उन्हें वह दिव्य कृपा दिलाई, जिसकी उन्होंने इच्छा की थी।

आध्यात्मिक महत्व क्या है 

हरतालिका तीज न केवल एक त्योहार है, बल्कि यह समर्पण, त्याग, और धैर्य का प्रतीक भी है। यह व्रत हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति और संकल्प से सभी इच्छाएं पूरी हो सकती है। देवी पार्वती की भक्ति और भगवान शिव का संदेश हमें बताता है कि, सच्चे मन से जो भी मांगा जाए, वो एक दिन जरूर पूरा होता है। इस प्रकार, हरतालिका तीज केवल एक व्रत नहीं है, बल्कि यह प्रेम, भक्ति, और विश्वास की पवित्र गाथा है, जो आज भी महिलाओं को प्रेरित करती है।