Health Care: इन दिनों अधिकांश लोगों को पेट में दर्द, गैस, अपच, अम्ल और पेट की गड़बड़ी की शिकायत हो रही है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि इसके कई कारण हो सकते हैं। जैसे ज्यादा स्ट्रेस, दर्द निवारक दवाओं का अधिक सेवन, पेट में हार्मफुल बैक्टीरिया, गलत खान-पान या तंबाकू, शराब आदि का सेवन। 

स्ट्रेस
ज्यादा स्ट्रेस आपको मानसिक रूप से परेशान तो करता ही है इससे आपके पेट में अल्सर की शिकायत भी हो सकती है। अनुभवी चिकित्सकों ने पाया है कि बहुत ज्यादा तनाव लेने वाले लोगों की आंतों की लाइनिंग में इन्फ्लेमेशन बढ़ जाता है। अमेरिका स्थित वर्जीनिया के गैस्ट्रो हेल्थ स्पेशलिस्ट डॉक्टर टोनिया एडम्स के अनुसार, यह सच है कि गंभीर रूप से बीमार, इंटेंसिव केयर यूनिट में भर्ती मरीजों के गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट की लाइनिंग में घाव और इन्फ्लेमेशन हो जाता है। इसी तरह न्यूयॉर्क की गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट डॉक्टर कैरोलीन न्यूबेरी कहती हैं कि पेप्टिक अल्सर तब बनता है, जब पेट में मौजूद एसिड छोटी आंत या पेट की सुरक्षा परत को भेदने लगता है। वहीं गैस्ट्रिक अल्सर तब होता है, जब स्टमक लाइनिंग में घाव हो जाते हैं।

नशा
कई बार स्ट्रेस की वजह से लोग ज्यादा सिगरेट, गुटका या शराब जैसे हानिकारक चीजों का सेवन करते हैं। वर्जीनिया गैस्ट्रो हेल्थ हॉस्पिटल के विशेषज्ञ डॉक्टर टोनिया एडम्स कहते हैं, ‘सिगरेट पीना और ज्यादा शराब पीना भी पेट को भारी नुकसान पहुंचाता है। जिनको पेट संबंधी बीमारियां पहले से मौजूद हैं, उनके लिए तो यह और भी घातक हो जाता है। इनकी वजह से भी पेट में इन्फ्लेमेशन और घाव या छाले हो सकते हैं।’

हार्मफुल बैक्टीरिया
पेट में अल्सर होने का एक अन्य कारण है, पेट में हार्मफुल बैक्टीरिया की मौजूदगी। 2020 में की गई स्टडी में शोधकर्ताओं ने अमेरिका में 1.3 मिलियन मरीजों के मेडिकल रिकॉर्ड्स का विश्लेषण किया। यह 2009 से 2018 के बीच एकत्रित एंडोस्कोपी रिपोर्ट्स थी। स्वास्थ्य विज्ञानियों ने पाया कि 17 फ़ीसदी मामलों में पेप्टिक अल्सर की वजह हेलीकोबैक्टर पाईलोरिया नामक बैक्टीरिया था। यह बैक्टीरिया किसी भी माध्यम से लोगों में पहुंचता है तो उनका इम्यून सिस्टम में इन्फ्लेमेटरी सेल्स रिलीज करने लगता है। जिससे गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट की लाइनिंग डैमेज होने लगती है।

कुछ दवाएं भी हैं जिम्मेदार
ह्यूस्टन मेथाडिस्ट हॉस्पिटल में गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट डॉक्टर नेहा माथुर का कहना है कि जो लोग नियमित रूप से स्टेरॉयड या नॉन स्टेरॉयड एंटी इन्फ्लेमेटरी दवाएं या आइबुप्रोफेन या एस्प्रिन जैसी दवाई लेते हैं, उन्हें भी अल्सर की शिकायत हो सकती है। ये दवाएं लंबे समय तक और ज्यादा डोज में लेना पाचन तंत्र के लिए हानिकारक हो सकता है।’ एक अहम अनुसंधान में शोधकर्ताओं ने पाया कि लंबे समय तक नॉन स्टेरॉयड एंटी इन्फ्लेमेटरी दवाई लेने वाले 68 फीसदी लोगों में पेट की लाइनिंग डैमेज होने का और 15 फीसदी में अल्सर होने की संभावना रहती है।

प्रमुख लक्षण
शोधकर्ताओं का मानना है कि दुनिया में 5 से 10 फीसदी लोगों के पेट में अल्सर हो जाता है। डॉक्टर नेहा माथुर कहती हैं कि पेप्टिक अल्सर से पीड़ित लोगों में अकसर विशेष लक्षण नहीं देखे जाते। मगर कुछ लोगों के पेट में दर्द, पेट की गड़बड़ी, सीने में जलन, जी मिचलाना ,ब्लोटिंग आदि की शिकायत हो सकती है। कई बार अल्सर से ब्लीडिंग भी हो सकती है, जिससे काला, गहरा मल या ताजा खून के साथ स्टूल पास हो सकता है। उनका कहना है कि यह मानना अनुचित नहीं हो सकता कि स्ट्रेस से पेट में अल्सर हो सकता है, क्योंकि स्ट्रेस कई प्रकार से उदर रोगों का सबब बनता है, जिनमें इरिटेबल वावेल सिंड्रोम, सीवियर एसिड रिफ्लक्स और इन्फ्लेमेटरी बॉवेल सिंड्रोम भी हैं।

इलाज
अल्सर का इलाज इसके कारणों पर निर्भर करता है। अगर बैक्टीरिया की वजह से अल्सर है तो डॉक्टर एंटीबायोटिक का कोर्स करने की सलाह देते हैं। इसका पता लगाने के लिए स्टूल टेस्ट, ब्रीद टेस्ट और एंडोस्कोपी की जाती है। अगर बैक्टीरिया की वजह से ऐसा नहीं है तो एंटासिड दवाएं, सादा भोजन और जीवनशैली में परिवर्तन की सलाह दी जाती है।