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Karwa Chauth 2024: इस बार करवा चौथ रविवार (20 अक्टूबर) को है। विवाहित महिलाएं करवा चौथ का व्रत रखकर विधि-विधान से पूजन करेंगी। यहां जानिए- कथा, महत्व, व्रत नियम के साथ पूजन विधि और शुभ-मुहूर्त। 

Karwa Chauth 2024: करवा चौथ इस बार रविवार (20 अक्टूबर) को है। अखंड सौभाग्य की कामना के साथ विवाहित महिलाएं करवा चौथ का व्रत रखेंगी, विधि-विधान से पूजन करेंगी। इस व्रत-पूजन से जुड़ी पौराणिक कथा, महत्व, व्रत नियम के साथ पूजन विधि और शुभ-मुहूर्त (karwa chauth auspicious) क्या है? विस्तार से बता रहे हैं- लेखक: आरसी शर्मा। 

गौरतलब है कि कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को शादीशुदा महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत (उपवास) रखती हैं। इस पर्व को पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य की कामना से किए जाने वाले व्रतों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। करवा चौथ का त्योहार मुख्य रूप से उत्तर भारत में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं विधि-विधान से करवा माता की पूजा करती हैं और सामूहिक रूप से इकट्ठा होकर उनकी कथा सुनती हैं। यह व्रत काफी कठिन होता है, क्योंकि इसे निर्जला रखा जाता है। 

करवा चौथ की पौराणिक कथा 
करवा चौथ व्रत से करवा माता की पौराणिक कहानी जुड़ी है। कथा के अनुसार करवा माता एक पतिव्रता सती स्त्री थीं। उनके पति लोगों के कपड़े धोने का काम करते थे। एक बार वे नदी में कपड़े धो रहे थे कि तभी अचानक मगरमच्छ ने उन्हें पकड़ लिया, इस पर उन्होंने जोर-जोर से अपनी पत्नी को पुकारा। जब करवा माता नदी पर पहुंचीं, तो देखा कि उनके पति को मगरमच्छ ने पकड़ रखा है, तो उन्होंने अपने तपोबल से पति को मगरमच्छ की कैद से छुड़ाया और फिर अपनी सूती साड़ी के कुछ धागे निकालकर मगरमच्छ को बांध लिया और यमराज के पास पहुंचीं। यमराज के पूछे जाने पर उन्होंने सारी घटना बताई। इस पर यमराज उनके सतीत्व और पत्नी धर्म की निष्ठा से बेहद प्रभावित हुए। यमराज ने उनके पति को हमेशा स्वस्थ रहने और दीर्घायु होने का वरदान दिया। साथ ही यह भी कहा कि जो सुहागिनें कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा माता का व्रत रखेंगी, करवा माता की कथा सुनेंगी या पाठ करेंगी, विधि-विधान से पूजा करेंगी, उनके पति की उम्र बहुत लंबी होगी। उनका दांपत्य अखंड सौभाग्यशाली बना रहेगा। तब से ही विवाहित महिलाएं कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत रखती हैं। 

पंचांग के अनुसार करवा चौथ तिथि और चांद उदय का समय 
इस साल 20 अक्टूबर 2024 (रविवार) को करवा चौथ व्रत रखा जाएगा। पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी 19 अक्टूबर 2024 को शाम 6 बजकर 17 मिनट पर शुरू होगी और 20 अक्टूबर को दोपहर बाद 3 बजकर 47 मिनट पर समाप्त होगी। लेकिन उदया तिथि के कारण करवा चौथ का व्रत 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस साल चांद निकलने का समय शाम 5 बजकर 46 मिनट से आरंभ होगा और 7 बजकर 02 मिनट तक दिखेगा। 

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karwa chauth makeup: करवा चौथ में सोलह श्रंगार का महत्व 

करवा चौथ व्रत विधान 
करवा चौथ का व्रत रखने के लिए सुहागिनों को सुबह सूरज उगने के पहले जगना चाहिए और स्नान आदि कार्यों से निवृत्त होना चाहिए। इसके बाद पूजा करने के बाद अपने पति के प्रति सम्मान प्रकट करना चाहिए और उनसे आशीर्वाद लेना चाहिए। इसके बाद पौष्टिक सरगी का सेवन करना चाहिए। 

करवा चौथ में सोलह श्रंगार का महत्व 
करवा चौथ के अवसर पर सभी सुहागिनों को सोलह श्रंगार करना चाहिए। इस दिन सोलह श्रंगार करने का विशेष महत्व होता है। साथ ही इस दिन अपने हाथों पर मेहंदी जरूर रचानी चाहिए। अगर किसी वजह से करवा चौथ का व्रत नहीं रख पाएं, तब भी हाथों में मेहंदी रचानी चाहिए, क्योंकि वह अखंड सौभाग्य की प्रतीक होती है। करवा चौथ के दिन लाल, गुलाबी या हरे रंग के परिधान पहनने चाहिए। सफेद या काले कपड़े इस दिन नहीं पहनने चाहिए। 

करवा चौथ पूजन विधि
पूरे दिन निर्जला व्रत रखने के बाद शाम को चांद उगने पर पूजा करने के लिए थाली में धूप, दीप, फूल, रोली, मिठाई और पानी का लोटा रखना चाहिए। पूजा के दौरान सबसे पहले दीया जलाना चाहिए। इसके बाद चांद को अर्घ्य देना चाहिए। अर्घ्य देने के बाद उसे छन्नी से देखना चाहिए और इसके बाद अपने पति को उसी छन्नी से देखना चाहिए। पति के छन्नी से दर्शन करने के बाद उसके पैर छूने चाहिए, फिर पति पूजा की थाली में रखे लोटे से पत्नी को पानी पिलाकर व्रत का पारण करवाते हैं। इस दिन व्रत का पारण करने के बाद कभी भी तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए, सिर्फ सात्विक भोजन ही करना चाहिए।

करवा चौथ का पहला व्रत 
जो महिलाएं पहली बार यह करवा चौथ का व्रत करने जा रही हैं, उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि वे अपनी ससुराल में ही पहला करवा चौथ का व्रत और पूजन करें। इसके लिए उन्हें ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाना चाहिए, फिर स्नान आदि से निवृत्त होकर सास के हाथों से दी गई सरगी का सेवन करना चाहिए। लेकिन जो भी सेवन करें सूर्योदय के पहले ही कर लेना चाहिए और पहली सरगी अपने सास के हाथों से ही लेनी चाहिए। 

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