Relationship Tips: हंसते-बोलते प्यारे रिश्तों के बीच किसी गलतफहमी की वजह से खामोशी आ जाए, यह सही नहीं है। ईगो, जिद या फिर संकोच में भी हम आपस में बातचीत ना करके मन में खटास बैठाए रहें और रिश्तों में दूरी बना लें, यह भी उचित नहीं। हमें अपने रिश्ते ऐसे नहीं बिखरने देने चाहिए, बातचीत करके दूरियां खत्म कर रिश्तों को सहेजना चाहिए, इसी में सबकी खुशियां हैं।
पति-पत्नी के बीच के रिश्ते हों या भाई-बहन के रिश्ते या फिर प्रेमी-प्रेमिका का रिश्ता, हर रिश्ता भरोसे और समझदारी पर टिका होता है। अगर किसी रिश्ते में गलतफहमी आ भी जाए तो उसे बातचीत करके सुलझाया जाना चाहिए। लेकिन कुछ लोग बातचीत करने के बजाय खामोश रहना पसंद करते हैं, जिसका परिणाम यह होता है कि धीरे-धीरे रिश्ता खत्म हो जाता है। चाहे कितना भी करीबी रिश्ता हो, अगर एक बार रिश्ते में गांठ पड़ जाती है तो रिश्ते को बिखरने में देर नहीं लगती। एक उदाहरण, नीता और सुनीता वर्षों से एक-दूसरे की अभिन्न सहेली थीं। एक-दूसरे के साथ हर दुख-सुख, हंसी-खुशी को साझा करती थीं। एक बार नीता ने सुनीता से कुछ आर्थिक मदद मांगी। सुनीता किसी कारण नीता की मदद नहीं कर पाई।
नीता को लगा कि उसकी सहेली उसकी मदद कर सकती थी, लेकिन जानबूझकर नहीं किया। यह बात नीता के मन में घर कर गई। हालांकि उसे इस संबंध में खुलकर सुनीता से कम से कम एक बार बात जरूर करनी चाहिए थी, लेकिन बात ना करने के कारण आखिरकार दोनों के रिश्तो के बीच खटास पड़ गई। दोनों ने आपस में बातचीत करना बंद कर दिया। निरंतर खामोश रहने से एक अच्छा-भला रिश्ता खत्म हो गया। इसीलिए जब बात अपनों की हो तो खुलकर बात कर लेनी चाहिए। किसी अपने को खोने से बेहतर है, उसके सामने अपना प्वांइट ऑफ व्यू रख दें। रिश्तों में गलतफहमियां ना बढ़ें, इसके लिए कुछ बातों का ध्यान रखकर रिश्ते सहेजे रखे जा सकते हैं।
ना खींचें लंबी खमोशी
कई बार हम झगड़ों और बहस से बचने के लिए रिश्तों में खामोशी धारण कर लेते हैं। इस तरह का व्यवहार रिश्तों को कमजोर करके उसे खत्म कर देता है, जबकि हमें करना यह चाहिए कि जिस किसी से गलतफहमी की वजह से खामोशी है, उससे सीधी, सरल भाषा में खुलकर बात करें। सामने वाले की शंकाओं को दूर करें और रिश्ते को खत्म होने से बचा लें।
दूर करें संशय
यदि आपको अपना रिश्ता प्रिय है तो एक बार अपने संशय दूर करने का प्रयास जरूर करें। हो सकता है, अगला आपके प्रयास की प्रतीक्षा कर रहा हो या आप भी मन ही मन उसके प्रयास की प्रतीक्षा कर रहे हों। यह भी हो सकता है कि बात करने से आप उसकी बातों से पूर्ण रूप से सहमत ना हों और रिश्ता पहले जैसा नॉर्मल ना हो। लेकिन कम से कम एक-दूसरे के प्रति संशय तो नहीं रहेगा, असली वस्तुस्थिति से आप दोनों अवगत हो जाएंगे। क्या पता बाद में ठंडे दिमाग से सोचने पर रिश्ते फिर से बन जाएं।
कभी तीसरे को माध्यम ना बनाएं
कई बार हम जिससे नाराज होते हैं, उससे अपनी बातें स्वयं ना कहकर अपने दोस्तों से कहलवाते हैं। ऐसे में अकसर ऐसा होता है कि बात बनने के बजाय और बिगड़ जाती है। इसीलिए अपनी बात अपने किसी दोस्त या रिश्तेदार के माध्यम से कहने के बजाय स्वयं उस व्यक्ति के सामने रखें, जिससे आपकी नाराजगी है। किसी दूसरे के माध्यम से बात कहने में और भी गलतफहमियां पैदा हो सकती हैं। हम स्वयं अपनी बात जितने सीधे और सरल, प्रभावी तरीके से रख सकते हैं, दूसरे नहीं रख सकते हैं।
सरल-सौम्य तरीके से कहें अपनी बातें
जब अपनी बातें कहें तो सीधे, सरल और सौम्य तरीके से कहें। ना कि बहुत ज्यादा घुमा-फिरा कर कहें। कभी-कभी ऐसा होता है कि जिससे हम मन में नाराज होते हैं, उसका थोड़ा-सा भी मजाक या उसकी घुमावदार बातें, ताने सी लगती हैं या हम गलत मतलब निकाल लेते हैं। इसीलिए जब तक रिश्ता नॉर्मल नहीं हो, तब तक ऐसे टोन और लहजे से बचें। कहने का मतलब है कि अपने रिश्तों को आसानी से खोने ना दें, इन्हें सहेज कर रखें। यह ना भूलें कि रिश्ते बहुत बड़ी नियामत होते हैं।
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रेखा शाह आरबी