Relationship: कोई भी अच्छा रिश्ता तभी बन सकता है, जब रिश्ते में मुखरकता हो। खुशहाल जिंदगी की सबसे बड़ी जरूरत है। किसी भी रिश्ते को मजबूत और सुखद बनाने के लिए इसका कोई निश्चित फॉर्मूला नहीं है। काउंसलर और रिलेशनशिप कोच अलग-अलग तरीकों से रिश्ते निभाने की बात करते हैं। आम लोगों की धारणा है कि रिश्ते में कम बोलें, ज्यादा सुनें तो संबंध मधुर बना रहेगा।
मगर हकीकत इससे थोड़ी अलग है। साइकोलॉजी की रिसर्च और रिलेशनशिप कोच के मुताबिक रिश्ते में चुप्पी से ज्यादा जरूरी मुखरता है। रिश्ते को बचाए रखने के लिए समझौता करना और खुद को दबाना सही नहीं है। इससे रिश्ते को कोई फायदा नहीं होता। बल्कि यह अंदर ही अंदर कमजोर होने लगाता है, अलगाव की बीज पनपना शुरू हो जाते हैं।
जबकि देखा गया है की आपसी संबंधों में अपनी सोच और जरूरतों को लेकर मुखर रहने वाले पार्टनर्स के रिश्ते ज्यादा मजबूत और मधुर होते हैं। ‘फोर्ब्स’ की एक साइकोलॉजिकल रिपोर्ट की माने तो इस बात की तस्दीक करती है।
रिश्ते में चुप्पी की जगह मुखरता जरूरी क्यों है।
रिलेशनशिप कोच के अनुसार, मुखरता किसी भी रिश्ते की जान होती है। पुराने दौर में जब पति-पत्नी एक-दूसरे से ज्यादा बात नहीं करते थे। और अपनी बातें कहने से हिचकते थे। अब पुराना दौर नहीं रहा।
खासतौर से रोमांटिक और प्रोफेशनल रिश्ते में मुखरता सबसे ज्यादा जरूरी है। पार्टनर्स अगर मुखर नहीं हों तो वे एक-दूसरे को ठीक तरीके से समझ ही नहीं सकते। ऐसे में उनका रिश्ता कभी मजबूत बन ही नहीं पाएगा।
मुखरता फायदेमंद, फिर इससे किनारा क्यों करते पार्टनर्स
ज्यादा रिश्तों में लोग मुखरता की वजाय चुप्पी का सहारा लेते हैं। जबकी रिलेशनशिप कोच और साइकोलॉजी की कई रिसर्च में पाया गया है की रिश्ते में मुखरता के तमाम फायदे हैं। लेकिन एक तथ्य यह भी है कि उन्हें ऐसा लगता है कि वो कुछ कहेंगे तो पार्टनर को नाराज़ हो सकते हैं। या बुरा मान सकते हैं। ऐसे में उनका रिश्ता प्रभावित होगा। कई मौकों पर तो वो अपनी बात कहने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाते या सही मौके की तलाश में ही समय गुजार देते हैं। ऐसी स्थिति में मन ही मन घुटन होने लगती हैं। उनके मन में गुबार भरने लगता है। एक समय बाद उन्हें एहसास होने लगता है कि इस रिश्ते के लिए उन्होंने जरूरत से ज्यादा समझौता कर लिया है। और फिर वे अचानक फट पड़ते हैं। और रिश्ता बिखर जाता है।