Kashmir Tourist Place: कश्मीर बौद्ध, शैव और सूफी आध्यात्मिक परंपराओं का गढ़ रहा है, जिनके संगम ने कश्मीरियत नामक धर्मनिरपेक्ष संस्कृति को जन्म दिया, जिसके केंद्र में शांति और भाईचारा है। इन सामाजिक और धार्मिक विशिष्टताओं के साथ ही कश्मीर अपने भौगोलिक-नैसर्गिक सौंदर्य के लिए भी दुनिया भर में विख्यात है। इसीलिए जब पिछले साल सेना ने उत्तर कश्मीर में नियंत्रण रेखा के करीब कुछ इलाकों को पर्यटकों के लिए खोले जाने की घोषणा की तो मैं भी जन्नत के इन छुपे हुए नगीनों को देखने के लिए पहुंच गया। पर्यटकों के लिए खोली गईं इन जगहों में प्रमुख हैं माशील, तंगधार, तीतवाल, तुलैल, उरी और गुरेज। मेरे लिए इन सभी जगहों को एक साथ देखना संभव नहीं था, इसलिए मैंने सबसे पहले गुरेज का चयन किया जो कि बारामुला से उत्तर पूर्व में लगभग 116 किमी. के फासले पर है, पाक अधिकृत कश्मीर के निकट।
देवदार से सजे पहाड़ों की मोहक यात्रा
देवदार की खुशबू से लबरेज पहाड़ों में से होता हुआ मैं गुरेज की तरफ बढ़ रहा था। देवदार के कुछ पेड़ों के तने अजीब अंदाज में मुड़े हुए थे ताकि वो कठिन और सीधी ढलान पर जमे रह सकें। सुनहरे रेखादार रॉक्स ने मुझे लद्दाख की याद दिला दी। बांदीपुरा से शुरू होकर सोपोर के बीच से होते हुए वुलर झील के किनारों को स्पर्श करते हुए पीर पंजाल रेंज की खुरदरी चोटियों पर चढ़ते हुए यह लगभग साढ़े तीन घंटे की यात्रा पूरी हुई। यहां सुरक्षा कड़ी है। हर पांच दस मिनट के बाद सेना का ट्रक हमारे पास से गुजरता हुआ दिखाई दिया। यहां सेना के अनेक कैंप हैं। त्रगबल में जो सेना का कैंप है, वह गुरेज में प्रवेश करने का पास जारी करता है। फिर मोड़ लेना पड़ता है और हरी-भरी पहाड़ियों में राजदान पास खुल जाता है। घुमंतू कबीले बकरवाल के कई समूह अपनी भेड़ और बकरियों के लिए चारागाह की तलाश में इन चोटियों को पार करते हैं। पतली पहाड़ी सड़क पर कभी-कभी उनकी वजह से ट्रैफिक जाम हो जाता है। हम यात्रा में आगे बढ़ ही रहे थे कि अचानक धुंध ने हमें घेर लिया। ऐसा महसूस हुआ जैसे बादल हम पर उतर रहे हैं। इन नजारों को संजोने के लिए हम तस्वीरें खींचने के लिए कुछ देर वहां रुके।
किशनगंगा नदी का दिलकश नजारा
गुरेज पहुंचने से पहले हमें तेज बहती किशनगंगा मिली, जो कि गांव के बाहर ही झेलम नदी की सहायक नदी है। यह गांव के ठीक बाहर है। यह विशिष्ट, आसमानी रंग की नदी है और इसी वजह से सीमा पार पाकिस्तान में इसे नीलम नाम दिया गया है। यह गजब का नजारा है और इसे देखने के बाद स्विट्जरलैंड, स्कैंडेनेविया की झीलें भी फीके पड़ जाते हैं। इतनी सुंदरता जब अपने ही देश में है तो कोई यूरोप क्यों जाए? खैर, हमने एक अन्य मोड़ लिया और गुरेज गांव में दाखिल हो गए, जहां चोटियां शाहाना अंदाज में ऊपर आसमान में जाती दिखाई दे रही थीं, उनके बीच की घाटी में ही गुरेज गांव है।
लाजवाब गुरेज गांव
गुरेज गांव का इतिहास लगभग 2,000 साल पुराना है। मैं सोच रहा था कि दुनिया भर घूमने के बावजूद मैं यहां पहले क्यों नहीं आया? यह मेरी बकट लिस्ट में क्यों नहीं था? गुरेज गांव कश्मीर, चीन और सेंट्रल एशिया के बीच जो सिल्क रूट था, उसका हिस्सा था। आज यह कश्मीर का परंपरागत गांव है, जहां लकड़ी के मकान बने हुए हैं। यहां सेना एक कैंटीन चलाती है, जिसमें बर्गर, चाउमिन, कॉफी आदि मिलते हैं। यहां के मूल गुरेजी भोजन (मक्खन में डूबे हुए उबले आलू) का स्वाद कभी भुलाया नहीं जा सकता है। हमने भी इसका मजा लिया। इस कैंटीन के अतिरिक्त गुरेज गांव में शहरीकरण का एक अन्य चिन्ह एक बोर्ड है, जिस पर लिखा है- ‘आई लव गुरेज’। गांव के बीच में एक बाजार है, जहां सब्जियां, नॉनवेज और जाड़ों में पहनने वाले कपड़े मिलते हैं। अभी यहां पर्यटक कम ही आते हैं, इसलिए यहां कोई होटल नहीं है, लेकिन होमस्टे और कैंपों की सुविधा पर्याप्त मात्रा में है। यहां ट्रैकर्स नियमित कैंप करते हैं।
मेरी इच्छा हुई कि शीशे की तरह साफ पानी की नदी के किनारे बैठकर ध्यान लगाऊं, लेकिन जल्दी से लंच करने और फोटोग्राफ लेने के लिए ही समय बचा था। हमें उसी दिन बारामुला लौटना था। दरअसल, अंधेरा होने पर पहाड़ों की सड़कों पर ड्राइव करना बहुत खतरनाक होता है। इसलिए ना चाहते हुए भी हम गुरेज से लौट गए। मुझे याद आया एक बार श्रीनगर के शालीमार बाग में टहलते हुए मैंने अपने साथी से कहा था कि दुनिया में इससे खूबसूरत जगह कहीं नहीं होगी। मेरी इस बात को एक स्थानीय नागरिक ने सुन लिया था और उसने वुलर झील से आगे की जगहों जैसे गुरेज गांव को देखने का सुझाव देते हुए कहा था कि असल प्राकृतिक सौंदर्य तो वहीं है। गुरेज की यात्रा करने के बाद वहां से लौटते हुए मुझे अहसास हुआ कि उस बंदे की बात बिल्कुल सही थी।
समीर चौधरी