World Mental Health Day: मानसिक स्वास्थ्य आज सबसे बड़ी समस्या बन गई है। खासकर, वर्कप्लेस में काम का दवाब और हाई एक्सपेक्टेशन की वजह से मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। ऐसे में कार्य के दौरान मानसिक स्वास्थ्य को ठीक रखना बेहद अहम है।
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर गुरुवार, 10 अक्टूबर को हरिभूमि ने राजधानी के योगाचार्य और साइकेट्रिक्स से विशेष बातचीत की। इस दौरान उनसे जानने का प्रयास किया गया कि कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य को कैसे ठीक रखा जाए। विशेषज्ञों ने बताया कि योग-प्राणायाम और आपसी संबंधों को मजबूत कर वर्क प्लेस पर मानसिक स्वास्थ्य ठीक रख सकते हैं।
योग-प्राणायाम से संयमित होगा मेंटल हेल्थ: रेखा शर्मा
- योगाचार्य रेखा शर्मा ने कहा, आजकल लोग स्ट्रेस में काम करते हैं, जिससे उनका बीपी-शुगर सहित कई गंभीर बीमारियां घेर लेती हैं। वर्कप्लेस में जिसने अपनी मेंटल हेल्थ कंट्रोल कर ली, उसने जग जीत लिया। क्योंकि सर्वाधिक तनाव दफ्तर में काम के दौरान ही होता है।
- रेखा ने कहा, योग निद्रा से आप अपने मानसिक स्वास्थ्य को उम्दा बना सकते हैं। डीप ब्रीदिंग के जरिए श्वसन प्रक्रिया को नियंत्रित करके भी मेंटल हेल्थ को संयमित किया जा सकता है। बालासन, ताड़ासन, भुजंगासन, वृक्षासन, पर्वतासन जैसे आसनों के जरिए नर्वस सिस्टम को ठीक कर सकते हैं। वहीं भ्रामरी प्राणायाम भी आपको कूल और कॉमनेस देता है।
पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ अलग रखें: डॉ. विनय
मनोवैज्ञानिक डॉ. विनय मिश्रा ने कहा, ऑफिस में काम के दौरान होने वाला स्ट्रेस हमारे दिलो-दिमाग पर असर डालता है। स्ट्रेस मैनेजमेंट के लिए सार्थक कदम उठाने चाहिए। काम के दौरान ब्रेक लेते रहें। कलीग्स से अच्छे संबंध रखें। पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ को अलग रखें। क्योंकि पर्सनल रिलेशनशिप आपकी मेंटल हेल्थ को स्ट्रांग बनाने में मददगार होता है। इसे इग्नोर करने से भविष्य में घातक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
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मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती हैं आर्थिक चुनौतियां: डॉ. राम प्रसाद
तिजिया बाई हेल्थ एजुकेशन सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ. राम प्रसाद कुशवाहा ने बताया, आर्थिक समस्या भी हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती है। समय की अधिकता, कार्य का बोझ, योग्यता और दक्षता के हिसाब से जरूरतें पूरी न होना भी मानसिक तनाव पैदा करता है, इसलिए कर्मचारी कल्याण से संबंधित कार्यक्रम करें। इन्टर पर्सनल रिलेशनशिप, फेस टू फेस कम्युनिकेशन, इंसेंटिव अप्रेजल प्रक्रिया और सोशल कनेक्टिविटी पर जोर देना चाहिए। कॉग्निटिव बिहेवियर थेरैपी, रिक्रिएशन, ग्रुप थेरैपी भी मददगार साबित हो सकती हैं।