Yogasana Benefits: बारिश के मौसम में कई तरह के इंफेक्शन की आशंका बढ़ जाती है, क्योंकि बारिश के कारण वातावरण में हल्की ठंडक के साथ उमस भी रहती है। ऐसे मौसम में वायरस और बैक्टीरिया खूब फलते-फूलते हैं। इसलिए इन दिनों में अपनी सेहत को लेकर अतिरिक्त रूप से सजग रहने की जरूरत होती है। अगर इस दौरान हर दिन नियमित रूप से कुछ आसन किए जाएं जैसे अर्ध-मत्स्येद्रासन (हाफ फिश पोज), हलासन, पवनमुक्तासन और सुप्त व्रजासन तो ये हमें स्वस्थ रखने में मददगार होते हैं। वैसे तो ये सभी आसन महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इनमें सबसे आसान और सबसे कारगर अर्ध-मत्स्येद्रासन है। इसलिए अगर मानसून के मौसम में नियमित रूप से अर्ध-मत्स्येद्रासन किया जाए, तो हम कई तरह की शारीरिक परेशानियों जैसे मांसपेशियों की जकड़न और बार-बार होने वाले वायरल इंफेक्शन से बचे रह सकते हैं।
क्यों महत्वपूर्ण है अर्ध-मत्स्येद्रासन
महान योगी मत्स्येद्रनाथ के नाम पर बना अर्ध-मत्स्येद्रासन, मानसून के मौसम में हमारे शरीर को कई तरह के फायदे पहुंचाता है। चूंकि यह हमारे ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर बनाता है, जिस कारण मानसून के मौसम में जहां मांसपेशियां जकड़ जाती हैं, वहीं नियमित रूप से यह आसन करने से इस मौसम में भी मांसपेशियों में अकड़न या जकड़न नहीं आती। इस मौसम में पाचन एक समस्या होती है, नियमित रूप से अर्ध-मत्स्येद्रासन करके हम इस समस्या से मुक्त हो सकते हैं। नियमित रूप से इस आसन को करने से हमारी रीढ़ की हड्डी मजबूत और लचीली बनती है। इससे पीठ के निचले हिस्से की मांसपेशियां दर्दरहित आराम में रहती है। इस सबके अलावा मानसून में नियमित रूप से अर्ध-मत्स्येद्रासन करने पर हम इस मौसम में होने वाले विशेष तनाव से बचे रहते हैं।
अर्ध-मत्स्येन्द्रासन आसन करने का तरीका
अर्ध-मत्स्येन्द्रासन करने के लिए योगा मैट पर अपने दो पैरों को सामने की ओर फैलाकर बैठ जाएं। ध्यान रखें, इस दौरान दोनों पैर साथ हों और रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधी हो। इसके बाद बाएं पैर को मोड़ें और इस पैर की एड़ी को दाहिने कूल्हे के पास ले जाएं। अब दाहिने पैर को बाएं घुटने के ऊपर से सामने की तरफ रखें। कमर, कंधों और गर्दन को दाहिनी तरफ से मोड़ते हुए इसी तरफ के कंधे के ऊपर से देखें। इस अवस्था को आसानी से जितनी देर बनाए रखना संभव हो बनाए रखें, फिर लंबी और गहरी सांस लें। सांस छोड़ते ही पहले दाहिने हाथ को ढीला छोड़ें, फिर कमर, छाती और गर्दन को क्रमशः ढीला छोड़ें। इस मुद्रा में भी 20 से 30 सेकेंड तक रहें और फिर इसी प्रक्रिया को विपरीत दिशा से दोहराएं।
आसन करते समय बरतें सावधानी
अर्ध-मत्स्येद्रासन करते समय कुछ बातों को ध्यान रखना जरूरी होता है। मसलन, शरीर को अंतिम मुद्रा में मोड़ते समय सुनिश्चित करें कि आप सांस बाहर की तरफ छोड़ रहे हैं। ऐसा करने से आपको झुकने में आसानी रहेगी। इस बात का भी ध्यान रखें कि इस मुद्रा को खोलते समय धीरे-धीरे लेकिन गहरी सांस लें। चूंकि अर्ध-मत्स्येद्रासन करते समय रीढ़ की हड्डी काफी मुड़ती है, इसलिए बड़ी सजगता और सावधानी से आसन करें, सिर्फ एक तरफ ना करें, दूसरी तरफ भी करें। अगर सिर्फ एक तरफ करेंगे तो इससे रीढ़ की हड्डी को परेशानी होगी। जब दोनों तरफ से करेंगे तो रीढ़ की हड्डी ज्यादा संतुलित और स्वस्थ रहेगी।
इन बातों का रखें ध्यान
कोशिश करें कि अर्ध-मत्स्येद्रासन सुबह के समय करें और सुबह भी बहुत जल्दी, जब तक सूरज ना निकला हो। लेकिन यह कोई सख्त नियम नहीं है। अगर बहुत सुबह आपके लिए संभव नहीं है तो दिन में कभी भी आसन कर सकते हैं। लेकिन सुबह के समय ही करें तो ज्यादा फायदा होगा। इसकी वजह ये है कि जब भी अर्ध-मत्स्येद्रासन किया जाता है, यह सुनिश्चित करना होता है कि हमारा पेट पूरी तरह से खाली हो। भोजन कम से कम चार से छह घंटे पहले किया हुआ हो यानी, पेट में अगर भोजन हो तो वह पूरी तरह से पचा हुआ हो। नियमों का पालन करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि तभी हमें इसके पूर्ण फायदे मिलेंगे।
नोट:- अगर हृदय, पेट, हड्डी या मस्तिष्क में से किसी की भी आपकी सर्जरी हुई हो तो अर्ध-मत्स्येद्रासन करने से परहेज करें। यदि पेप्टिक अल्सर और हार्निया से पीड़ित हों तो भूलकर भी यह आसन ना करें। रीढ़ की हड्डी में कभी चोट लगी हो तो अर्ध-मत्स्येद्रासन करने से बचें। बहुत हल्का स्लिप डिस्क हो तो इस आसन से कुछ फायदा हो सकता है, लेकिन गंभीर हो तो भूलकर ना करें।