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Karva Chauth 2024: करवा चौथ का व्रत हिंदू धर्म में विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की कामना हेतु रखा जाता है। इस व्रत का नाम करवा चौथ इसलिए पड़ा क्योंकि इस दिन करवा की पूजा की जाती है। ‘करवा’ का अर्थ होता है मिट्टी का बर्तन और ‘चौथ’ का मतलब गणेशजी की प्रिय तिथि, जिस पर इस व्रत का आयोजन होता है। प्रेम, समर्पण और विश्वास के इस अनोखे महापर्व पर मिट्टी के बर्तन यानी करवे की पूजा का विशेष महत्त्व है, जिससे रात्रि में चंद्रदेव को जल अर्पण किया जाता है।

‘रामचरितमानस’ के लंका कांड के अनुसार इस व्रत का एक पक्ष यह भी है कि जो पति-पत्नी किसी कारणवश एक-दूसरे से बिछुड़ जाते हैं, चंद्रमा की किरणें उन्हें अधिक कष्ट पहुंचाती हैं, इसलिए करवा चौथ के दिन चंद्रदेव की पूजा कर महिलाएं यह कामना करती हैं कि किसी भी कारण से उन्हें अपने प्रियतम का वियोग ना सहना पड़े। महाभारत में भी एक प्रसंग है, जिसके अनुसार पांडवों पर आए संकट को दूर करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण के सुझाव पर द्रौपदी ने भी करवा चौथ का व्रत किया था। इसके बाद ही पांडव महाभारत युद्ध में विजयी रहे।

भक्ति भाव से पूजा के उपरांत व्रत रखने वाली महिलाएं छलनी में से चांद को निहारती हैं। करवा चौथ का व्रत सुबह सूर्योदय से शुरू होता है और शाम को चांद निकलने तक किया जाता है। इस पर्व में चंद्रमा काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि महिलाएं दिन भर निर्जला उपवास कर शाम को चंद्रमा निकलने के बाद ही अपना उपवास खोलती हैं। इस दिन चतुर्थी माता और गणेशजी की भी पूजा की जाती है। 

शास्त्रों में उल्लेख है कि सौभाग्य, पुत्र, धन-धान्य, पति की रक्षा एवं संकट टालने के लिए चंद्रमा की पूजा की जाती है। करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा का एक अन्य कारण यह भी है कि चंद्रमा औषधियों और मन के अधिपति देवता हैं। उसकी अमृत वर्षा करने वाली किरणें वनस्पतियों और मनुष्य के मन पर सर्वाधिक प्रभाव डालती हैं। दिन भर उपवास के बाद चतुर्थी के चंद्रमा को छलनी की ओट में से जब महिला उसे देखती है, तो उसके मन पर पति के प्रति अनन्य अनुराग का भाव उत्पन्न होता है, उसके मुख और शरीर पर एक विशेष कांति आ जाती है। इससे महिलाओं का रूप और स्वास्थ्य उत्तम और दांपत्य जीवन सुखद हो जाता है।
                          - अनीता जैन