Republic day special: किसी भी राष्ट्र की बुनियाद उसकी पारिवारिक व्यवस्था होती है। हर क्षेत्र में देश को आगे ले जाने वाले नागरिक घर के आंगन में बड़े होते हैं। उनके विचार और व्यवहार को इसी परिवेश में वह दिशा मिलती है, जो देश की दशा बदल दे। इस मोर्चे पर घरेलू महिलाएं सैनिक-सी डटी नजर आती हैं। वहीं काम-काजी दुनिया में भी महिलाओं ने अपनी भूमिका को हर पहलू पर सिद्ध किया है। परवरिश के दायित्व निर्वहन और पारिवारिक रिश्तों-नातों को पोसते हुए प्रोफेशनल वर्ल्ड में बढ़ती भारतीय महिलाओं की धमक इस गणतांत्रिक देश की गौरव गाथा का हिस्सा है।
जिजीविषा, जद्दोजहद और जीत
एक ओर महिलाएं काम-काजी महिला के रूप में नई इबारत लिख रही हैं, तो दूसरी ओर घरेलू जिम्मेदारियां संभालते हुए देश की तरक्की की बुनियाद का पत्थर बन मन-जीवन को थामने का दायित्व भी निभा रही हैं। 75वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहे हमारे देश में आधी आबादी का यह सफर आसान नहीं रहा। भारतीय महिलाओं के भीतर बसी जिजीविषा ही है, कि उनके कदमों की गति बनी रही। कभी साक्षर भर होने की लड़ाई लड़ने वाली महिलाएं अब उच्च शिक्षा की डिग्रियां ले रही हैं। हर वर्ष परीक्षा परिणामों में अव्वल आती बेटियों के चेहरे बताते हैं कि जद्दोजहद के बाद जीत निश्चित है। सबसे अहम यह है कि उनकी इस जीत में देश की व्यवस्था भी विजेता बन रही है। शिक्षित सजग बेटियां सैन्य मोर्चे से लेकर अंतरिक्ष के अभियानों तक अहम हिस्सेदारी रखती हैं। गणतांत्रिक व्यवस्था वाले हमारे देश में संविधान ने तो महिलाओं और पुरुषों को समान नागरिक अधिकार दिए, लेकिन इन अधिकारों को जीने के लिए आधी आबादी को अनगिनत मोर्चों पर संघर्ष करना पड़ा है। महिलाओं ने पूरे मनोयोग से हर स्तर पर यह लड़ाई लड़ी। जिजीविषा के बल पर जद्दोजहद करते हुए स्वतंत्र अस्तित्व गढ़ने और गणतंत्र को सशक्त बनाने में प्रभावी भूमिका दर्ज कारवाई। विपरीत परिस्थितियों में भी सशक्त मन से उठाए सबल कदमों ने आधी आबादी की जीत सुनिश्चित की।
जागरुकता और जज्बातों का मेल
महिलाओं का सबल होना किसी भी सशक्त राष्ट्र की संजीवनी के समान होता है। बतौर नागरिक सशक्त व्यक्तित्व की धनी महिलाओं का मन संवेदनाओं से पूरित हो, इससे बेहतर क्या हो सकता है। भारतीय महिलाएं अपने मनोबल को कायम रखने और औरों के मर्म को समझने वाले व्यक्तित्व की धनी हैं। आज की महिलाएं जागरूक हैं तो जज्बातों को समझने वाली भी। मेहनती हैं तो अपनों की मान-मनुहार करने वाली भी हैं। सजग हैं तो सामाजिक भी। आधी आबादी की सबलता और मानवीय भावों की समझ का यह मेल समाज को पुख्ता आधार देता है। यही बुनियाद पूरी व्यवस्था को मजबूती से थामती है। आधी आबादी के समझ और संवेदनाओं भरे संघर्ष का ही परिणाम है कि सशक्त नागरिक की भूमिका को जी रहीं भारतीय महिलाएं सामाजिकता के रंग भी बचाए हुए हैं। जीवन के कितने ही रंगों को समेटे बदलाव और बेहतरी की मशाल थामे देश के विकास में भागीदार बन रही हैं। उनके इस हौसले के चलते ही बहुत कुछ बदला है। साथ ही बेहतरी के भावी बदलावों की आशाओं से भी हमारी झोली भरी है। जिस समाज में महिलाओं को अशक्त और आदर्श बनाकर दोयम दर्जे की नागरिक माना गया, वहां अनगिनत समस्याओं से लड़ते हुए स्वावलंबन की ओर अग्रसर होना नई आशाओं को बल देता है। भारतीय गणतंत्र की मुकम्मल कामयाबी में आधी आबादी की भूमिका रेखांकित करने योग्य है।
समर्पण और सुदृढ़ सोच
भारतीय महिलाएं सधी सोच समर्पण के भाव संग समाज में नवसृजन-नवनिर्माण कर रही हैं। उनका चेतना संपन्न व्यक्तित्व नए मार्ग चुन नई मंजिलें तय कर रहा है। महिला मन के मजबूत इरादों से साल-दर-साल उपलब्धियां बढ़ ही रही हैं। महिला वोटर्स की सजगता और भागीदारी देखकर हर बार सुखद आश्चर्य होता है। पंचायती राजव्यवस्था के माध्यम से लोकतांत्रिक संस्थाओं से भी आधी आबादी का जुड़ाव बढ़ा है। साल 2023 में नारी शक्ति वंदन विधेयक यानी वुमन रिजर्वेशन बिल संसद द्वारा पारित किया गया। इस विधेयक में पार्लियामेंट और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान है। लंबा समय लेने के बावजूद इन बदलावों का धरातल पर उतरने का कारण महिलाओं की दृढ़ता ही है। भारतीय संविधान को बहुत सी आशाओं के साथ देश में लागू किया गया था। इन उम्मीदों में स्त्रियों के लिए समानता और सबलता का पक्ष सबसे अहम था। मौजूदा दौर में स्वतंत्र गणराज्य में देश की आधी आबादी का जीवन हर पहलू पर बदलाव का साक्षी बना है। देश की आजादी के आंदोलन से लेकर मौजूदा समय में राजनीतिक आर्थिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और सामाजिक-पारिवारिक मोर्चों पर उल्लेखनीय योगदान देने वाली महिलाएं आज स्वयंसिद्धा हैं।
डॉ. मोनिका शर्मा