Diabetes Health Problem: ब्लड में शुगर लेवल का बढ़ना यानी डायबिटीज एक ऐसा रोग है, जिसमें लापरवाही बरतने से कुछ अन्य गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। इनसे बचाव के लिए डायबिटीज पेशेंट्स को अपना शुगर लेवल मेंटेन करने के साथ किसी भी तरह की शारीरिक असामान्यता पर नजर रखनी चाहिए। इस बारे में आपके लिए बहुत ही यूजफुल इंफॉर्मेशंस हम दे रहे हैं। 

हार्ट डिजीज
किसी इंसान को पहले से डायबिटीज हो तो उसे हृदय रोगों की आशंका बढ़ जाती है। खून में शुगर लेवल बढ़ने के कारण धीरे-धीरे हृदय की ब्लड वेसेल्स सिकुड़ने लगती हैं। फिर रक्त प्रवाह में रुकावट पैदा होती है, शरीर के सभी हिस्सों तक ऑक्सीजनयुक्त रक्त पहुंचाने के लिए हृदय को सामान्य से ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। नतीजा, ब्लडप्रेशर बढ़ जाता है और हृदय पर बहुत ज्यादा दबाव पड़ने लगता है, जो कई बार हार्ट अटैक का कारण बन जाता है।

बचाव-उपचार: इस समस्या से बचाव के लिए संतुलित खान-पान और नियमित व्यायाम से बढ़ते वजन को नियंत्रित रखें। घी, तेल, चीनी, मैदा, एल्कोहाल, सिगरेट और डिब्बा बंद जंक फूड्स से दूरी बनाकर रखें, क्योंकि उनमें मौजूद प्रिजर्वेटिव्स सेहत के लिए बहुत नुकसानदेह होते हैं। जब डायबिटीज के कारण दिल की बीमारियों की आशंका बढ़ने लगती है तो कोलेस्ट्रॉल लेवल को नियंत्रित करने और खून को पतला करने वाली दवाएं दी जाती हैं, ताकि रक्तप्रवाह में कोई रुकावट ना हो।

डायबिटिक रेटिनोपैथी
जब शुगर लेवल बहुत ज्यादा बढ़ जाए तो इसकी वजह से आंखों की दृष्टि भी प्रभावित होती है। ऐसी स्थिति में आंखों की रेटिना को पोषण प्रदान करने वाली अतिसूक्ष्म रक्त वाहिकाएं नष्ट होने लगती हैं, जिससे आंखों की दृष्टि धुंधली पड़ने लगती है।

बचाव-उपचार: इस समस्या से बचाव के लिए आंखों में कोई तकलीफ ना हो तो भी डायबिटीज पेशेंट्स साल में एक बार आई चेकअप जरूर करवाएं। जांच के दौरान अपने आई स्पेशलिस्ट को डायबिटीज के बारे में जरूर बताएं, ताकि सही समय पर समस्या की पहचान करके इसका उपचार शुरू किया जा सके। 

डायबिटिक नेफ्रोपैथी
जब शुगर लेवल के साथ ब्लडप्रेशर भी बढ़ जाता है, तो ऐसी स्थित में किडनी की अति सूक्ष्म रक्तवाहिकाओं को बहुत नुकसान पहुंचता है। इससे किडनी की कार्यक्षमता घटने लगती है। जब किडनी ब्लड को अच्छी तरह फिल्टर नहीं कर पाती तो ऐसी स्थिति में यूरिन से अधिक मात्रा में प्रोटीन डिस्चार्ज होने लगता है, जिससे शरीर में इस पोषक तत्व की कमी हो जाती है। परिणामस्वरूप वाटर रिटेंशन यानी शरीर में पानी जमा होने और सूजन की समस्या परेशान करने लगती है।

बचाव-उपचार: इससे बचाव के लिए चीनी और नमक का सेवन अत्यंत सीमित मात्रा में करना चाहिए। उपचार के दौरान वाटर रिटेंशन दूर करने वाली दवाएं दी जाती हैं। जब तक यूरिन से प्रोटीन का डिस्चार्ज होता है, तब तक दवाओं की मदद से किडनी को नुकसान से बचाया जा सकता है, लेकिन जब ब्लड में यूरिया और क्रिएटिनिन की मात्रा बढ़ने लगती है, तो यह स्थिति मरीज के लिए बहुत नुकसानदेह साबित होती है। इससे बचाव के लिए डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ सकती है। अगर डायबिटीज के साथ हाई ब्लडप्रेशर की समस्या हो तो बीपी को नियंत्रित करने के लिए भी नियमित रूप से दवाएं दी जाती हैं।

डायबिटिक न्यूरोपैथी
डायबिटीज के अधिकतर मरीजों को इस समस्या का सामना करना पड़ता है। खासकर जिन पेशेंट का ब्लड शुगर लंबे समय तक अनियंत्रित रहता है, उनके हाथ-पैरों की नसों में दर्द, झनझनाहट और खिंचाव जैसे लक्षण नजर आते हैं। कई बार पैरों में सुइयां चुभोने या चीटिंयां रेंगने जैसा एहसास होता है।

बचाव-उपचार: इस समस्या से बचाव के लिए सबसे पहले संयमित खान-पान, एक्सरसाइज और वॉक के माध्यम से बढ़ते शुगर लेवल को कंट्रोल किया जाना चाहिए। ऑफिस में लंबे समय तक सीट पर बैठने का काम है तो पैरों को सपोर्ट देने के लिए अपनी सीट के नीचे छोटा सा स्टूल रखें। रात को सोते समय पैरों के नीचे ऊंचा तकिया रखें, ताकि रक्त प्रवाह सही ढंग से हो। गुनगुने पानी से भरे टब में सेंधा नमक मिलाकर उसमें पैरों को डुबोकर रखें, इससे भी पैरों को आराम मिलेगा। उपचार के दौरान डॉक्टर नसों आराम पहुंचाने के लिए कुछ पेनकिलर्स देते हैं।

डायबिटिक फुट
डायबिटीज होने पर पैरों में रक्त प्रवाह सही ढंग से नहीं हो पाता, जिससे मामूली चोट लगने या एड़ियां फटने पर संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है। अगर सही समय पर उपचार ना किया जाए तो पैरों में गैंगरीन हो सकता है।

बचाव-उपचार: बचाव में पैरों की सफाई का विशेष ध्यान रखें। ध्यान रहे एड़ियां ना फटें, जूते के साथ हमेशा साफ मोजे पहनें। पैरों को चोट से बचाकर रखें। पैरों में चोट लगने पर या पैरों में किसी तरह का जख्म होने पर तत्काल डॉक्टर से संपर्क करके इलाज करवाएं।

हाइपोग्लाइसीमिया
किसी व्यक्ति का शुगर लेवल अचानक 70 एमजी से नीचे चला जाए तो ऐसी शारीरिक दशा को हाइपोग्लाइसीमिया कहा जाता है। आमतौर पर अधिक मात्रा में डायबिटीज की दवा लेने, इंसुलिन की डोज बढ़ाने और लंबे समय तक खाली पेट रहने के कारण ऐसी समस्या होती है। चक्कर आना, पसीना आना, कमजोरी महसूस होना, हाथ पैर कांपना, दिल की धड़कन तेज होना और बेहोशी इसके प्रमुख लक्षण हैं।

बचाव-उपचार: डायबिटीज की समस्या हो तो हमेशा अपने साथ ग्लूकोमीटर रखें। अगर कोई भी असामान्य लक्षण दिखाई दे तो, तत्काल कोई मीठी चीज खाएं। ज्यादा देर तक खाली पेट ना रहें। 

डायबिटीज कीटोएसिडोसिस
जब शरीर में इंसुलिन की कमी के कारण शुगर लेवल बढ़कर 400 से 500 एमजी हो जाए, तो ऐसी शारीरिक दशा को डायबिटीज कीटोएसिडोसिस कहते हैं। गला सूखना, अत्यधिक प्यास लगना, बार-बार यूरिन डिस्चार्ज होना आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं।

बचाव-उपचार: नियमित रूप से डायबिटीज की दवा लें। अगर इंसुलिन लेते हैं, तो नियमित इंसुलिन लेना ना भूलें। गंभीर स्थिति होने पर हॉस्पिटल में भर्ती कराएं।

कमजोर इम्यून सिस्टम
डायबिटीज के कारण शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। जिससे व्यक्ति को सर्दी, जुकाम, खांसी, संक्रमण और बुखार जैसी समस्याएं अकसर परेशान करती हैं।

बचाव-उपचार: इस समस्या से बचाव के लिए अपने नियमित आहार में विटमिन सी युक्त खट्टे फलों जैसे- संतरा, मौसंबी, नीबू, आंवला और हरी सब्जियों का पर्याप्त मात्रा में सेवन करें। अगर कोई भी संक्रमण हो तो डॉक्टर से दवा लें।

नोट:- इस लेख में दी गई सारी जानकारी डॉ. धीरज कपूर, सीनियर एंडोक्राइनोलॉजिस्ट,ऑर्टिमिस हॉस्पिटल, गुरुग्राम से बातचीत पर आधारित है।