Priyanka Gandhi Journey: प्रियंका गांधी ने गुरुवार (28 नवंबर) को वायनाड के सांसद के तौर पर शपथ ली। प्रियंका गांधी ने 52 साल की उम्र में संसद की सदस्यता ली है, लेकिन राजनीति में वो तब से एक्टिव हैं, जब वह मात्र 17 साल की थीं। प्रियंका वाड्रा गांधी परिवार की पहली ऐसी सदस्य हैं, जिन्होंने 18 साल से भी कम उम्र में चुनाव में प्रचार शुरू कर दिया था। प्रियंका गांधी राजनीति के इतर भी कई क्षेत्रों में रुचि रखती हैं। यहां जानिए प्रियंका की शिक्षा-दीक्षा से लेकर राजनीतिक सफर की वो बातें, जिनके बारे में ज्यादातर लोगों को पता नहीं होगा। 

देहरादून और दिल्ली से शुरुआती पढ़ाई
प्रियंका गांधी का जन्म 12 जनवरी 1972 को नई दिल्ली में हुआ। शुरुआती पढ़ाई-लिखाई देहरादून के वेल्हम गर्ल्स स्कूल में हुई। हालांकि, 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या होने के बाद प्रियंका को सुरक्षा कारणों से दिल्ली बुला लिया गया। इसके बाद प्रियंका ने दिल्ली के कॉन्वेंट ऑफ जीसस एंड मैरी स्कूल में आगे की शिक्षा पूरी। प्रियंका ने 1993 में दिल्ली विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान में ग्रेजुएशन की डिग्री ली। इसके बाद, 2010 में वह यूनिवर्सिटी ऑफ संडरलैंड, यूके से बौद्ध स्टडीज में पीजी डिप्लोमा किया।

प्रियंका का निजी जीवन
18 फरवरी 1997 में प्रियंका ने दिल्ली के व्यवसायी रॉबर्ट वाड्रा से शादी की। दोनों की दोस्ती 12 साल पुरानी थी।  दोनों की प्रेम कहानी की शुरुआत तब हुई जब प्रियंका गांधी और रॉबर्ट वाड्रा एक ही स्कूल में पढ़ते थे। रॉबर्ट अपनी बहन मिशेल वाड्रा के जरिए प्रियंका से मिल थे। उस समय प्रियंका गांधी की उम्र 13 साल थी। दोनों ने एक-दूसरे के साथ समय बिताना शुरू किया, और उनकी दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में बदल गई। राजीव गांधी की हत्या के बाद प्रियंका और रॉबर्ट की बातचीत बढ़ गई। रॉबर्ट ने प्रियंका और रॉबर्ट की शादी हिंदू रीति-रिवाजों से प्रियंका के परिवार के आवास 10 जनपथ पर हुई। शादी में उनके परिवार के करीबी सदस्य शामिल हुए थे। प्रियंका और रॉबर्ट के दो बच्चे मिराया वाड्रा और रेहान वाड्रा हैं। 
प्रियंका गांधी वाड्रा बौद्ध दर्शन की प्रबल अनुयायी हैं और विपश्यना का अभ्यास करने के लिए बौद्ध उपदेशक एस एन गोयनका को श्रेय देती हैं, जो ध्यान का एक ऐसा रूप है, जिसके बारे में कुछ लोगों का मानना ​​है कि इससे मन को शांति मिलती है।

राजनीति के अलावा और क्या करती हैं प्रियंका गांधी?
प्रियंका गांधी राजनीति के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता हैं।  प्रियंका गांधी एक कॉलमनिस्ट भी हैं और समसामयिक विषयों पर लेख लिखती रहती हैं। उनके ज्यादातर लेख सामाजिक मुद्दों पर आधारित होते हैं। कला और संस्कृति में भी प्रियंका गांधी रुचि रखती हैं। वह कई मौकों पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शामिल होती हैं। वह युवाओं को जागरूक करने के लिए शैक्षणिक संस्थानोंं में लेक्चर देती हैं, उनके व्याख्यान में सामाजिक मुद्दों की झलक बखूबी दिखाई देती है। 

17 साल की उम्र में पहली बार किया चुनाव प्रचार
प्रियंका ने 17 साल की उम्र में अपने पिता राजीव गांधी के लिए चुनाव प्रचार किया था। लेकिन, औपचारिक रूप से उनका पहला चुनावी प्रचार 1999 में हुआ। उस समय सोनिया गांधी अमेठी से चुनाव लड़ रहीं थी। यह प्रियंका का पहला राजनीतिक अनुभव था, जिसमें उन्होंने भाजपा के उम्मीदवार अरुण नेहरू के खिलाफ प्रचार किया था।2004 में अमेठी सीट से राहुल गांधी ने राजनीति में उतरने का फैसला किया तो भी प्रियंका गांधी ने चुनाव प्रचार किया था। इस दौरान सोनिया रायबरेली सीट से चुनाव लड़ रही थीं, प्रियंका गांधी ने मां और भाई दोनों के लिए प्रचार किया और दोनों को ही जीत दिलाई। 

priyanka gandhi with indira gandhi

17 साल की उम्र में किया था पिता के लिए प्रचार
हाल ही जब वायनाड में प्रियंका गांधी चुनाव प्रचार कर रही थीं, तो उन्होंने कहा, 'मैंने 17 साल की उम्र में अपने पिता के लिए पहली बार चुनाव प्रचार किया था। पिछले 35 साल से मैं अपनी मां, भाई और दूसरे लोगों के लिए प्रचार कर रही हूं। आज पहला मौका है, जब मैं अपने लिए वोट मांगने पहुंची हूं। मेरे लिए यह एहसास बिल्कुल ही जुदा है।' बता दें कि प्रियंका गांधी अपने बेबाक अंदाज के लिए जानी जाती हैं। वह किसी भी मुद्दे पर बेहिचक अपनी राय रखती हैं। यही वजह है कि चुनाव में कांग्रेस पार्टी प्रियंका को अब तक अपने स्टार प्रचाकर के तौर पर इस्तेमाल करती रही है।

2019 में प्रियंका ने सक्रिय राजनीति में रखा कदम
23 जनवरी 2019 को प्रियंका ने सक्रिय राजनीति में कदम रखा। उन्हें कांग्रेस महासचिव बनाया गया और पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभार दिया गया। 2020 में उन्हें पूरे उत्तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव बनाया गया। उन्होंने महिला सशक्तिकरण के लिए “लड़की हूं, लड़ सकती हूं” अभियान शुरू किया। इसके बाद से वह लगातार राजनीति में सक्रिय रहीं। ये वो समय था,जब देशभर में मोदी लहर की बात कही जा रही थी। इसके बावजूद प्रियंका गांधी ग्राउंड पर डटी रहीं। कई मौकों पर राहुल गांधी के साथ डट कर खड़ी नजर आईं।

पहली बार लड़ा चुनाव और जीतकर पहुंची लोकसभा 
पहली बार लड़ा चुनाव और जीतकर पहुंचीं लोकसभा अपने चार दशक के लंबे राजनीतिक करियर में प्रियंका गांधी ने पहली बार चुनाव लड़ा। राहुल गांधी के वायनाड सीट छोड़ने के बाद प्रियंका गांधी यहां से चुनाव मैदान में उतरीं। लोकसभा चुनाव लड़ा और 4,10,931 वोटों से जीत दर्ज की।

दादी और पिता की हत्या के बावजूद खुद को संभाला
प्रियंका गांधी ने नेहरू-गांधी परिवार की राजनीतिक परंपरा को आगे बढ़ाया। उनकी दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी का राजनीतिक जीवन उनकी प्रेरणा है। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या से लेकर 1991 में राजीव गांधी की मौत तक, प्रियंका ने कई बार कठिन परिस्थितियों का सामना किया। प्रियंका का अपनी दादी इंदिरा गांधी के साथ खास रिश्ता था। जेल में उनसे मिलने से लेकर इंदिरा के आखिरी दिन तक, प्रियंका हमेशा अपने दादी की करीब रहीं। इंदिरा ने एक बार प्रियंका को लेकर कहा था कि अगली सदी प्रियंका की होगी। 

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मां के भाषण लिखने में की मदद
प्रियंका ने मां सोनिया गांधी के शुरुआती भाषणों में मदद की। पहली बार जब सोनिया गांधी ने पति राजीव गांधी के लिए हिंदी में भाषण लिखा, तो इसमें प्रियंका ने ही मां की मदद। इसके बाद भी कई मौकों पर सोनिया गांधी को भाषण लिखने में मदद करती रहीं। प्रियंका 1995 से ही कांग्रेस पार्टी की मजबूती के लिए काम कर रही हैं। राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी जहां बेसुध पड़ी थीं, वहीं प्रियंका गांधी राष्ट्रपति से बात करने से लेकर अपने पिता के अंति संस्कार की व्यवस्थाओं को भी देख रही थीं। अपने परिवार के साथ मजबूती से खड़ी थीं। राजीव गांधी की मौत की खबर सबसे पहले प्रियंका को ही मिली थी।

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जब प्रियंका ने कर दिया अचानक प्रचार करने का ऐलान
साल 1996, कांग्रेस के कई नेता पार्टी छोड़ कर जा रहे थे। वहीं, दूसरी ओर बीजेपी देशभर में तेजी से उभर रही थी। सोनिया इस बात को लेकर चिंतित थीं कि पार्टी को टूटने से बचाना होगा। ऐसे में सोनिया गांधी को प्रियंका गांधी ने खुद चुनाव प्रचार में उतरने की सलाह दी, लेकिन राहुल गांधी इस पर सहमत नहीं हुए। लेकिन इसके दो साल बाद 1998 की सर्दियों में अचानक खुद चुनाव प्रचार करने का ऐलान कर दिया। प्रियंका गांधी ने अपनी पहली रैली तमिलनाडु में की। तमिलनाडु के उसी मैदान में जनसभा को संबोधित किया, जहां उनके पिता राजीव गांधी की हत्या हुई थी।