Abhay Mudra: हाल ही में संसद भवन में राहुल गांधी ने अभय मुद्रा का जिक्र किया। आइए जानते हैं कि अभय मुद्रा क्या है और इसके क्या फायदे हैं। अभय मुद्रा, हिंदू और बौद्ध धर्म में एक महत्वपूर्ण हस्त मुद्रा है, जो सुरक्षा, शांति और भय निवारण का प्रतीक है। इस मुद्रा में दाहिना हाथ कंधे की ऊंचाई पर उठाया जाता है, हथेली बाहर की ओर होती है और अंगुलियां सीधी होती हैं।
अभय मुद्रा का महत्व
अभय मुद्रा का महत्व बहुत गहरा है। यह मुद्रा सुरक्षा और शांति का प्रतीक है। इसका अभ्यास न केवल बाहरी बल्कि आंतरिक सुरक्षा भी प्रदान करता है। (Emotional Stability) को बढ़ावा देती है और नकारात्मक भावनाओं को प्रबंधित करने में मदद करती है। यह मुद्रा हमारे जीवन में निडरता और आंतरिक शक्ति को विकसित करने में सहायक होती है।
अभय मुद्रा का उपयोग कैसे करें?
अभय मुद्रा का अभ्यास करना सरल है। दाहिने हाथ को कंधे की ऊंचाई तक उठाएं, हथेली को बाहर की ओर रखें और अंगुलियों को सीधा रखें। बायां हाथ शरीर के किनारे लटका हुआ हो। (Yoga and Meditation) के दौरान इस मुद्रा का नियमित अभ्यास मन और शरीर को संतुलित रखता है। गहरी और धीमी सांसों पर ध्यान केंद्रित करें।
अभय मुद्रा की पौराणिक कहानी
अभय मुद्रा की उत्पत्ति एक प्राचीन बौद्ध कहानी पर आधारित है, जिसमें भगवान बुद्ध ने उग्र हाथी के आक्रमण को अपने हाथ से रोक दिया था। यह मुद्रा भगवान शिव की भी एक प्रमुख मुद्रा है, जिसे रुद्र मुद्रा कहा जाता है। इस मुद्रा का उपयोग भगवान बुद्ध ने जल विवाद को सुलझाने के लिए भी किया था।
अभय मुद्रा के लाभ
अभय मुद्रा के नियमित अभ्यास से निडरता, सुरक्षा और आंतरिक शक्ति की भावना विकसित होती है। यह मुद्रा भावनात्मक स्थिरता को बढ़ावा देती है और नकारात्मक भावनाओं को प्रबंधित करने में मदद करती है। (Divine Protection) के लिए इस मुद्रा का नियमित अभ्यास हमारे मन और शरीर को संतुलित रखता है और भय को दूर करता है।
अब जानिए अभय मुद्रा के बारे में कुछ रोचक बातें
- अभय मुद्रा की उत्पत्ति: यह मुद्रा बौद्ध धर्म में सबसे पहले देखी गई थी, जब भगवान बुद्ध ने अपने भतीजे और शिष्य देवदत्त के छोड़े हुए उग्र हाथी को शांत करने के लिए इस मुद्रा का उपयोग किया था।
- सभी धर्मों में महत्व: यह मुद्रा न केवल बौद्ध धर्म में बल्कि हिंदू धर्म और जैन धर्म में भी महत्वपूर्ण मानी जाती है।
- प्राचीन कलाकृतियों में अभय मुद्रा: प्राचीन भारतीय मंदिरों और मूर्तियों में भगवान बुद्ध और भगवान शिव को अक्सर अभय मुद्रा में देखा जा सकता है, जो उनके दिव्य सुरक्षा और निडरता का प्रतीक है।
- शारीरिक और मानसिक लाभ: अभय मुद्रा का नियमित अभ्यास शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के लाभ प्रदान करता है। यह मुद्रा तनाव और चिंता को कम करती है और आत्मविश्वास को बढ़ाती है।
- योग और ध्यान में उपयोग: योग और ध्यान अभ्यास के दौरान अभय मुद्रा का उपयोग जीवन ऊर्जा के प्रवाह को नियंत्रित करने और मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए किया जाता है।