Acharya Vidyasagar Samadhi: जैन समुदाय के शीर्ष संत आचार्य विद्यासागर जी महाराज शनिवार रात छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ के चंद्रगिरि तीर्थ में चिर समाधि में लीन हो गए। उनके शरीर त्यागने से जैन समुदाय दुखी है। पीएम मोदी समेत कई नेताओं ने शोक संवेदना प्रकट की है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में राजकीय शोक घोषित किया गया है।
बड़े भाई को छोड़कर पूरा परिवार संन्यासी
आचार्य विद्यासागर का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक के बेलगांव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। बचपन का नाम विद्याधर था। संन्यास के बाद वे आचार्य विद्यासागर कहलाए। उनके पिता मलप्पा और मां श्रीमंती थीं। दोनों ने भी संन्यास ले लिया था। मलप्पा बाद मुनि मल्लिसागर बने, जबकि श्रीमंती आर्यिका समयमति बनीं। आचार्य ज्ञानसागर ने विद्यासागरजी को 30 जून 1968 में अजमेर में 22 साल की आयु में दीक्षा दी थी। विद्यासागर के बड़े भाई को छोड़कर सभी घर के लोग संन्यास ले चुके हैं।
मन में सवाल उठता है कि आचार्य कैसे बनते हैं? दीक्षा के बाद कितना कठित तप करना पड़ता है? कितने बंधन हैं? रहन-सहन कैसा होता है? तो आइए जानते हैं...
जानिए किन चीजों को त्यागना पड़ता है?
कोई बैंक खाता नहीं। कोई ट्रस्ट नहीं, कोई जेब नहीं। कोई मोह माया नहीं। अरबों रुपए जिनके ऊपर न्योछावर होते हैं, उन गुरुदेव आचार्य विद्यासागर ने कभी धन को स्पर्श नहीं किया।
- आजीवन चीनी, नमक, चटाई, हरी सब्जी, फल, अंग्रेजी औषधि का त्याग।
- सूखे मेवे, तेल, दही, सभी भौतिक सुख साधनों का त्याग।
- अंजुली भर जल, 24 घंटे में एक बार सीमित भोजन।
- एक करवट में शयन करना है। चादर, गद्दे, तकिए का इस्तेमाल नहीं कर सकते।
- हर मौसम में लकड़ी के तखत पर सोना है।
- यात्रा पैदल करनी होती है। जूते चप्पल नहीं पहनना होता है।
- भीक्षा मांगकर भोजन का इंतजाम करना होता है।
- सूर्यास्त के बाद अन्न का एक दाना भी ग्रहण नहीं कर सकते हैं।
जैन शब्द का अर्थ क्या है?
जैन शब्द जिन से बना है। जि का मतलब जीतना और जिन का अर्थ जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया है और वाणी को जीत लिया और काया को जीत लिया है वह जैन है। सत्य, अहिंसा, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, इन 5 सिद्धांतों पर धर्म चलता है।
कैसे होती है दीक्षा?
जैन समुदाय में दीक्षा एक उत्सव है। यह बिलकुल वैसा होता है जैसे शादी समारोह। सभी मिलकर सांसारिक जीवन और मोह माया से त्याग की विदाई देते हैं। पुरुष वस्त्र त्याग देते हैं। लड़कियों को सिर्फ हाथ की बुनी हुई धोती पहनने की इजाजत होती है।
सबसे कठिन केश लुंचन
दीक्षा की प्रक्रिया में सबसे कठिन केश लुंचन है। दीक्षा लेने वाला शख्स अपने सभी श्रृंगार, कपड़े उतार देता है। इसके बाद अपने सिर के बालों को नोंचकर अलग किया जाता है। यह प्रक्रिया सबसे कष्टदायी होती है। दीक्षा के बाद सभी मुनि और साध्वी साल में दो बार केश लुंचन करती हैं।