Aacharya Vidyasagar Maharaj: आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में दिगंबर मुनि परंपरा से समाधि ली। उन्होंने 3 दिन पहले ही समाधि प्रक्रिया को शुरू कर अन्न-जल का त्याग कर दिया और अखंड मौन व्रत ले लिया। माता-पिता ने भी उनसे ही दीक्षा लेकर समाधि की प्राप्ति की थी। 11 फरवरी 2024 को आचार्य विद्यासागर महाराज को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में उन्हें ब्रह्मांड के देवता के रूप में सम्मानित किया गया है।

22 वर्ष की उम्र में ली दीक्षा
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने 30 जून 1968 को अजमेर में 22 वर्ष की आयु में आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज से दीक्षा ली। 26 वर्ष की उम्र में ही 22 नवम्बर 1972 को ज्ञानसागर महाराज जी द्वारा आचार्य पद दिया गया था, आचार्य विद्यासागर के घर में केवल बड़े भाई ही गृहस्थ है। उनके अलावा सभी घर के लोग संन्यास ले चुके है। उनके गृहस्थ भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने भी आचार्य विद्यासागर जी से दीक्षा ग्रहण की। 

माता-पिता ने भी ली थी समाधि
आचार्य विद्यासागर जी महाराज की माता का नाम श्रीमंती और पिता का नाम मल्लपा था। उनके माता-पिता ने भी उनसे ही दीक्षा लेकर समाधि ली थी। आचार्य विद्यासागर महाराज 3 भाई और दो बहनें हैं। तीनों भाई में 2 भाई मुनि हैं। महाराज की बहने स्वर्णा और सुवर्णा ने भी उनसे ही ब्रह्मचर्य लिया था। 

कई भाषाओं का रहा ज्ञान
आचार्य विद्यासागर जी संस्कृत, हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते थे। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में कई रचनाएं की हैं। सैकड़ों की संख्या में शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है। उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है, जो विभिन्न संस्थानों में मास्टर डिग्री के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है।

कर्नाटक में हुआ था जन्म
आचार्य विद्यासागर जी महाराज का जन्म कर्नाटक के सदलगा गांव में 10 अक्टूबर 1946 को शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। वे अब तक 500 से ज्यादा दीक्षा दे चुके हैं। 11 फरवरी 2024 को आचार्य विद्यासागर जी महाराज को गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में उन्हें ब्रह्मांड के देवता के रूप में सम्मानित किया गया है।