Bangladeshi Hindu persecution: बांग्लादेश में हिंदू समुदाय का जीवन हमेशा से चुनौतियों से भरा रहा है। विभाजन के समय, लाखों हिंदुओं को अपने घरों से पलायन करना पड़ा। उन्होंने पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, असम और मेघालय जैसे राज्यों में शरण ली। ये लोग नए जीवन की शुरुआत करने के बावजूद, शरणार्थी होने की पहचान के साथ जी रहे हैं। आज भी, बांग्लादेश में बढ़ते सांप्रदायिक तनाव और असुरक्षा ने इन समुदायों को अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए आवाज उठाने पर मजबूर किया है।

1971 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद बेघर हुए हिंदू
1971 के बांग्लादेशी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, हिंदुओं को भयानक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। 1971 में बांग्लादेश से भारत आए सुषिल गांगोपाध्याय ने उस समय के दर्दनाक अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि कैसे पाकिस्तानी सेना और रजाकारों ने उनके गांव पर हमला किया, घर जलाए गए और कई लोगों की हत्या कर दी गई। उनके लिए, यह अनुभव कभी न भूलने वाला है। आज भी बांग्लादेश में हो रही हिंसा उनके पुराने घावों को ताजा कर देती है।

उत्पीड़न के डर से भागने की कई कहानियां
अनिमा दास, बताती है कि उस समय  मैं गर्भवती थीं। मुझे आज भी अपने गांव में हुई हिंसा की भयावह बातें याद हैं। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने अपने छोटे बेटे और गर्भवती बेटी के साथ बांग्लादेश से भागकर भारत में शरण ली। उनके परिवार के सदस्यों को हत्या और लूट का सामना करना पड़ा। उनका दर्द आज भी जीवित है। उनके जैसे कई हिंदू आज भी अपने गांवों से बेदखल होकर भारत में सुरक्षित महसूस कर रहे हैं, लेकिन उनके दिलों में वह भयावह यादें आज भी बसी हुई हैं।

सीमावर्ती इलाकों में रह रहे कई बांग्लादेशी हिंदू
बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले कई हिंदू, धार्मिक उत्पीड़न से बचने के लिए भारत आए। इन लोगों ने अपने पुरखों की जमीन, घर और यादों को पीछे छोड़ दिया। हालांकि, उन्होंने भारत में शरण लेकर राहत महसूस की, लेकिन उनके दिलों में अपने घरों को खोने का दर्द आज भी बना हुआ है। इन लोगों का मानना है कि बांग्लादेश में रहने वाले हिंदुओं को जल्द से जल्द भारत आकर अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।

1956 में भी बांग्लादेश छोड़कर आए कई हिंदू
1956 में बांग्लादेश से भारत आए परेश दास ने भी अपने अनुभवों को साझा किया। उन्होंने बताया कि कैसे उनके दादा की हत्या उनके सामने की गई और उन्हें अपने गांव से भागना पड़ा। आज भी, बांग्लादेश में उनके रिश्तेदार खतरे में हैं। हाल ही में, उनके चाचा की जमीन विवाद के कारण हत्या कर दी गई। परेश दास का कहना है कि उनके रिश्तेदारों को अब अपनी जमीन की बजाय अपनी जिंदगी को प्राथमिकता देनी चाहिए और भारत में सुरक्षित शरण लेनी चाहिए।

भारतीय सरकार से हस्तक्षेप की मांग
रश्मॉय बिस्वास, जो अब कोलकाता के पास न्यू टाउन में रहते हैं, ने बताया कि 1971 के बाद भी हिंदुओं को बांग्लादेश में उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। उन्होंने भारत सरकार से मांग की कि वह बांग्लादेशी हिंदुओं की सुरक्षा के लिए हस्तक्षेप करे। रश्मॉय ने कहा कि उनके परिवार ने बांग्लादेश में कई रातें भूखे रहकर और डर के साए में बिताईं। वह अब भारत में सुरक्षित हैं, लेकिन उनके कई रिश्तेदार अभी भी बांग्लादेश में असुरक्षा के माहौल में जी रहे हैं।

1971 के बाद भी नहीं थमा उत्पीड़न
बांग्लादेश से आए हिंदुओं का कहना है कि बांग्लादेश में हिंदुओं का उत्पीड़न 1971 के बाद भी जारी रहा। पाकिस्तानी सेना और जमात-ए-इस्लामी के बलों ने हिंदू समुदाय को निशाना बनाते हुए उनके घरों पर हमले किए। रश्मॉय बिस्वास ने बताया कि उनके परिवार ने कई बार जान बचाने के लिए अपने घरों को छोड़कर जंगलों में शरण ली। भारतीय सरकार से उन्हें उम्मीद है कि वह बांग्लादेशी हिंदुओं की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाएगी, ताकि वह अपने देश में बिना डर के रह सकें।