Bombay High Court on Modesty: बॉम्बे हाईकोर्ट ने महिला उत्पीड़न से जुड़े एक मामले में अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि किसी महिला का पीछा करना, उसे अपशब्द बोलना और धक्का देना एक कष्ट देने वाली करतूत है। हालांकि इसे भारतीय अपराध संहिता (IPC) की धारा 354 के तहत किसी महिला का लज्जा भंग करने का मामला नहीं माना जा सकता। एक कॉलेज छात्रा ने एक मजदूर के खिलाफ इन आरोपों के साथ मामला दर्ज करवाया था। हाईकोर्ट ने निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए शख्स को बरी कर दिया।
क्या कहा था पीड़िता ने शिकायत में
पीड़िता ने अपनी शिकायत में कहा था आरोपी ने बाजार जाते समय उसका पीछा किया। उसे गालियां दी और साइकिल से धक्का मारा। इसके बाद पीड़िता उसे नजरअंदाज करते हुए आगे बढ़ती रही। जब आरोपी इसके बाद भी पीछा करता रहा तो पीड़िता ने उसे पीटा भी। मजिस्ट्रेट कोर्ट ने आरोपी युवक को महिला का शीलभंग करने के आरोप में दोषी करार देते हुए दो साल कैद की सजा सुनाई थी। इसके साथ ही उस पर दो हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया।
मामले में एक गवाह ने दिया था बयान
बॉम्बे हाईकोर्ट के जज अनिल पानसरे ने 36 वर्षीय मजदूर की ओर से दायर अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि मजदूर पर जो भी आरोप हैं वे IPC की धारा 354 के तहत शीलभंग करने की श्रेणी में नहीं आते। निचली अदालत ने इस मामले में फैसला सुनाने में सभी पहलुओं का ध्यान नहीं रखा। अभियोजन इस मामले में सबूतों को सामने रखने में विफल रहा। सिर्फ गवाह के बयान के आधार पर आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इस मामले में सिर्फ तीन गवाह थे। इनमें से सिर्फ एक गवाह ने पीड़िता के साथ दुर्व्यवहार होने की बात कही थी।
केवल धक्का देने के लिए नहीं बता सकते दोषी
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने कहा कि इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि अपराधी ने वाकई पीड़िता का लज्जा भंग किया या नहीं। इसमें मामले में पीड़िता को धक्का दिए जाने के बारे में विचार किया जाना चाहिए। पीड़िता की ओर से यह नहीं बताया गया है कि आरोपी ने उसे धक्का देते वक्त अनुचित ढंग से छुआ। मेरी समझ से केवल धक्का देने के लिए उसे IPC की धारा 354 के तहत लज्जा भंग का दोषी नहीं करार दिया जा सकता। हाईकोर्ट ने ऐसे मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों का भी संदर्भ दिया।