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ECs Appointments Row: केंद्र सरकार ने 14 मार्च को ज्ञानेश कुमार और सुखबीर संधू को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त करने में 'जल्दबाजी' के आरोप को खारिज किया है। इससे लेकर एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है।

ECs Appointments Row: केंद्र सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और अन्य चुनाव आयुक्त अधिनियम, 2023 पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं का विरोध किया। इसमें चुनाव आयुक्त का चयन करने वाले पैनल से सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को हटा दिया गया था। सरकार ने बुधवार को दाखिल किए अपने हलफनामे में आरोप लगाया कि "खोखले, असमर्थित और हानिकारक बयानों" के आधार पर राजनीतिक विवाद पैदा करने की कोशिश की गई है। 14 मार्च को दो नए चुनाव आयुक्तों के चयन को लेकर पैनल में शामिल रहे विपक्ष के नेता अधीर रंजन ने भी सवाल उठाए थे।

चुनावों का भार अकेले CEC पर छोड़ना ठीक नहीं: केंद्र
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में याचिकाकर्ताओं के इस आरोप को सिरे से खारिज किया गया है, जिसमें दावा किया जा रहा है कि नए चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार और सुखबीर संधू को नियुक्त करने में 14 मार्च को 'जल्दबाजी' की गई। ताकि शीर्ष अदालत द्वारा पारित किसी भी आदेश को रोका जा सके। साथ ही मोदी सरकार ने तर्क दिया है कि एक सीईसी के लिए इतने बड़े पैमाने पर लोकसभा चुनाव में अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करना मानवीय रूप से संभव नहीं है।

चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को किसने दी है चुनौती?
कांग्रेस नेता जया ठाकुर और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की ओर से चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़े अधिनियम के खिलाफ याचिका दायर की गई है। सरकार ने इन याचिकाओं के जवाब में हलफनामा दायर किया है। पिटीशन के दावों के मुताबिक, चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति कार्यपालिका के ऊपर छोड़ना लोकतंत्र की स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के संचालन के लिए खतरा होगा।

कोर्ट ने क्या निर्देश दिया था? सरकार ने क्या कहा?
कोर्ट के आदेश के मुताबिक, चुनाव आयोग में सीईसी और चुनाव आयुक्तों के पदों पर नियुक्ति को लेकर एक समिति निर्णय लेगी, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शामिल होंगे। ये सभी नियुक्तियां समिति की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जानी चाहिए।

पिटीशन मौलिक भ्रांति पर केंद्रित हैं: केंद्र सरकार 
दूसरी ओर, अपने हलफनामे में केंद्र ने 2023 एक्ट का बचाव किया है और इसे चुनाव आयुक्तों के चयन को लेकर ज्यादा लोकतांत्रिक, सहयोगात्मक और समावेशी तरीका बताया है। मोदी सरकार ने कहा कि याचिकाकर्ताओं का केस इस 'मौलिक भ्रांति' पर आधारित है कि देश में किसी संस्थान की स्वतंत्रता तभी कायम रहेगी, जब इसकी सिलेक्शन कमेटी स्पेशल फॉर्मूलेशन के साथ हो। साथ ही हलफनामे में चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को खत्म करने और अतिक्रमण करने के दावों को भी नकारा गया है।

अधीर रंजन ने कहा था- चयन प्रक्रिया में खामियां हैं
चयन समिति में शामिल कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा था कि मुझे सरकार ने पहले 212 अफसरों के नाम दिए थे, लेकिन मीटिंग से 10 मिनट पहले महज 6 नाम ही बचे। ऐसे में इनकी ईमानदारी और तजुर्बा जांचना मेरे लिए असंभव है। मैं इस प्रक्रिया का विरोध करता हूं। ये तो होना ही था, क्योंकि इनके (सरकार) पास बहुमत है। चौधरी ने कहा था कि मुझे पता है कि सीजेआई इस कमेटी में नहीं है, लेकिन उन्हें यहां रखना चाहिए। सरकार ने ऐसा कानून बनाया है कि सीजेआई हस्तक्षेप नहीं कर पाएं और केंद्र एक अनुकूल नाम चुन सकती है। यह मनमाना नहीं है, लेकिन इस प्रक्रिया में खामियां हैं। (पढ़ें पूरी खबर...)

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