EVM-VVPAT Issue: इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) के वोटों और वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) पर्चियों की 100 फीसदी क्रॉस चेकिंग की मांग पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ADR समेत अन्य याचिकाओं पर दलीलें सुन रही है। सुनवाई की शुरुआत में अदालत ने कहा कि यह एक चुनावी प्रक्रिया है। इसमें पवित्रता होनी चाहिए। किसी को भी यह आशंका नहीं होनी चाहिए कि जो कुछ अपेक्षित है वह नहीं किया जा रहा है। अदालत ने चुनाव आयोग से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए अपनाए गए कदमों के बारे में विस्तार से बताने को कहा।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील प्रशांत भूषण, गोपाल शंकरनारायण, निजाम पाशा और संजय हेगड़े पैरवी कर रहे हैं। वहीं, चुनाव आयोग की तरफ से एडवोकेट मनिंदर सिंह मौजूद हैं।
वीवीपैट पर्ची जमा करने की मिले परमीशन
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वकील निजाम पाशा ने कहा कि एक मतदाता को वोट देने के बाद वीवीपैट पर्ची लेने और उसे मतपेटी में जमा करने की परमीशन मिलनी चाहिए। इस पर जस्टिस खन्ना ने पूछा कि क्या ऐसी प्रक्रिया से मतदाता की गोपनीयता प्रभावित नहीं होगी, तो पाशा ने जवाब दिया कि मतदाता की गोपनीयता से कहीं अधिक उसके मत देने का अधिकार जरूरी है।
प्रशांत भूषण ने उठाया केरल का एक मुद्दा
वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि वीवीपैट मशीन की लाइट हर समय जलती रहनी चाहिए। अभी तक यह लगभग 7 सेकंड तक जलती रहती है। अगर वह लाइट हमेशा जलती रहे तो पूरा फंक्शन मतदाता देख सकता है। उन्होंने केरल के एक अखबर में छपी खबर का हवाला दिया। जिसमें बताया कि केरल के कासरगोड में एक मॉक पोल के दौरान चार ईवीएम में बीजेपी के लिए एक अतिरिक्त वोट रिकॉर्ड हो रहा था। अदालत ने वकील मनिंदर सिंह से इस पर स्पष्टीकरण देने को कहा।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने भी कहा कि मतगणना प्रक्रिया में अधिक विश्वसनीयता जोड़ने के लिए एक अलग ऑडिट होना चाहिए।
मतदाता को दिखती है पर्ची
मतदान प्रक्रिया के बारे में बताते हुए चुनाव आयोग ने कहा कि ईवीएम की नियंत्रण इकाई वीवीपैट इकाई को अपना पेपर स्लिप प्रिंट करने का आदेश देती है। यह पर्ची एक सीलबंद बक्से में गिरने से पहले सात सेकंड के लिए मतदाता को दिखाई देती है। इसमें कहा गया है कि मतदान से पहले इंजीनियरों की मौजूदगी में मशीनों की जांच की जाती है।
प्रिंटर में नहीं कोई सॉफ्टवेयर
जब अदालत ने पूछा कि क्या प्रिंटर में कोई सॉफ्टवेयर है तो चुनाव आयोग ने नहीं में जवाब दिया। बताया कि प्रत्येक PAT में 4 मेगाबाइट फ्लैश मेमोरी होती है, जिसमें सिंबल स्टोर रहते हैं। रिटर्निंग अधिकारी इलेक्ट्रॉनिक मतपत्र तैयार करता है, जिसे सिंबल लोडिंग यूनिट में लोड किया जाता है। यह सीरियल नंबर, उम्मीदवार का नाम और सिंबल सबकुछ बताता है। कुछ भी पहले से लोड नहीं किया जाता है। इसमें डेटा नहीं, ये इमेज फॉरमेट है।
रिटर्निंग अफसर की निगरानी में रहती हैं मशीनें
जब अदालत ने पूछा कि मतदान के लिए कितनी सिंबल लोडिंग यूनिट बनाई गई हैं, तो एक चुनाव निकाय अधिकारी ने जवाब दिया कि आम तौर पर एक निर्वाचन क्षेत्र में एक। यह मतदान के समापन तक रिटर्निंग अधिकारी की निगरानी में रहती है। अदालत ने तब पूछा कि क्या इस इकाई को यह सुनिश्चित करने के लिए सील कर दिया गया है कि कोई छेड़छाड़ न हो, चुनाव आयोग ने जवाब दिया कि ऐसी कोई प्रक्रिया वर्तमान में नहीं है।
चुनाव आयोग ने कोर्ट को बताया कि सभी वोटिंग मशीनें मॉक पोल प्रक्रिया से गुजरती हैं। मतदान के दिन प्रक्रिया फिर से दोहराई जाती है। वीवीपैट पर्चियों को निकाला जाता है, गिना जाता है और मिलान किया जाता है। सभी मशीनों में अलग-अलग प्रकार की पेपर सील होती हैं। जिस समय मशीन गिनती के लिए आती है, उस समय सील नंबर दिया जा सकता है।
जब अदालत ने पूछा कि कोई मतदाता यह कैसे जांच सकता है कि उसका वोट डाला गया है, तो अधिकारी ने जवाब दिया कि चुनाव निकाय इसके लिए प्रदर्शन करता है और जागरूकता कार्यक्रम चलाता है। चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि वोटिंग मशीनें निर्वाचन क्षेत्रों को आवंटित की जाती हैं। किसी भी नकली यूनिट को (उनसे) नहीं जोड़ा जा सकता है। वे केवल सहयोगी इकाइयों को ही पहचानेंगे।
चुनाव आयोग ने कोर्ट को बताया कि वोटिंग मशीनें फर्मवेयर पर चलती हैं और प्रोग्राम को बदला नहीं जा सकता। मशीनों को स्ट्रांगरूम में रखा जाता है जिन्हें राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में बंद कर दिया जाता है।
क्या है याचिकाकर्ताओं की मांग?
एक्टिविस्ट अरुण कुमार अग्रवाल ने अगस्त 2023 में एक याचिका लगाई थी। उन्होंने मांग की थी कि VVPAT पर्चियों की 100% वेरिफिकेशन हो। याचिका में कहा गया कि वोटर्स को VVPAT की पर्ची फिजिकली वेरिफाई करने का मौका दिया जाना चाहिए। वोटर्स को खुद बैलट बॉक्स में पर्ची डालने की सुविधा मिलनी चाहिए। इससे चुनाव में गड़बड़ी की आशंका खत्म हो जाएगी।