Fahmi Badaunvi death: उर्दू के शानदार शायरों में शुमार फहमी बदायूंनी का सोमवार(21 अक्टूबर) को 72 साल की उम्र में निधन हो गया। उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के बिसौली में जन्मे फहमी साहब ने अपने शेरों के जरिए उर्दू अदब में एक खास मुकाम हासिल किया। उनकी शायरी सरलता और गहराई का संगम थी, जो हर वर्ग के लोगों को अपनी ओर खींचती थी। उनके निधन पर उर्दू साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। फहमी बदायूंनी की कविताओं और शायरी में आम बोलचाल की भाषा में गहरी भावनाएं व्यक्त होती थीं।

इमरान प्रतापगढ़ी ने जताया शोक
फहमी बदायूंनी के निधन पर कांग्रेस नेता और शायर इमरान प्रतापगढ़ी ने भी शोक व्यक्त किया। उन्होंने एक्स पर लिखा, "अलविदा फहमी बदायूंनी साहब, आपका जाना उर्दू अदब का बड़ा नुकसान है।" फहमी बदायूंनी का जन्म 4 जनवरी 1952 को बदायूं जिले के बिसौली में हुआ था। उनकी जिंदगी संघर्षों से भरी रही, जिसमें उन्होंने लेखपाल की नौकरी करते हुए भी अपनी शायरी जारी रखी। लेकिन जल्द ही उन्होंने नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह से शायरी को समर्पित कर दिया।

नई पीढ़ी के शायरों के लिए जमीन तैयार करने वाले शायर
फहमी बदायूंनी को छोटे बहर में बड़े शेर कहने वाला शायर माना जाता था। उनकी शायरी ने नई नस्ल के शायरों के लिए एक मजबूत जमीन तैयार की। उनकी लेखनी में ऐसी सादगी थी जो पाठकों को गहराई से छू जाती थी। खासकर उनकी शायरी सोशल मीडिया पर भी काफी लोकप्रिय हुई, और उनकी सरल और सादगी भरी शायरी ने युवाओं को साहित्य से जोड़ा।

जीवन संघर्षों से भरा, लेकिन शायरी से कभी नहीं हटी नजर
फहमी बदायूंनी के जीवन में बहुत सी चुनौतियां आईं। परिवार की जिम्मेदारियों के चलते उन्हें कम उम्र में ही लेखपाल की नौकरी करनी पड़ी। लेकिन शायरी उनका सच्चा प्रेम थी। विज्ञान और गणित में भी अच्छी पकड़ रखने के बावजूद, फहमी साहब ने पूरी तरह से शायरी को अपना जीवन बना लिया। उनकी शायरी की गहराई और सादगी नई पीढ़ी के शायरों के लिए प्रेरणा बनी।

सोशल मीडिया पर वायरल होती रही शायरी
फहमी बदायूंनी की रचनाएँ सोशल मीडिया पर भी काफी वायरल हुईं। उनके शेर, जो छोटी-छोटी पंक्तियों में गहरी भावनाएँ व्यक्त करते थे, ने उन्हें युवाओं के बीच भी लोकप्रिय बना दिया। उनके शेरों में ऐसी सादगी थी जो हर किसी के दिल को छू जाती थी। खासकर उनके ये शेर हमेशा याद किए जाते रहेंगे: "पूछ लेते वो बस मिजाज मिरा, कितना आसान था इलाज मिरा।"

उर्दू साहित्य में हमेशा जिंदा रहेगा योगदान
फहमी बदायूंनी का योगदान उर्दू साहित्य में सदैव याद रखा जाएगा। उनकी शायरी ने उर्दू अदब को एक नई दिशा दी, और आने वाली पीढ़ियां उनकी गज़लों पर अपनी रचनाएं लिखेंगी। उनके निधन से उर्दू साहित्य जगत को जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई संभव नहीं है।

यहां पढें फहमी बदायूंनी के कुछ शेर और जानें शायर का मिजाज क्या है:
 

  • "पूछ लेते वो बस मिजाज मिरा, कितना आसान था इलाज मिरा"
    इस शेर में उन्होंने दिल की भावनाओं को बेहद सरल तरीके से व्यक्त किया है। इसमें दर्द और उम्मीद का मिश्रण साफ झलकता है।
  • "मैं ने उस की तरफ़ से ख़त लिक्खा, और अपने पते पे भेज दिया"
    यह शेर इंसानी जज़्बात और अकेलेपन की गहराई को बयां करता है। इसमें व्यक्ति के अपने ही अंदर की उलझनों को खूबसूरती से बयान किया गया है।
  • "परेशाँ है वो झूटा इश्क़ कर के, वफ़ा करने की नौबत आ गई है"
    यह शेर आज के दौर के रिश्तों और उनकी जटिलताओं पर एक व्यंगात्मक नजर डालता है।
  • "ख़ुशी से काँप रही थीं ये उँगलियाँ इतनी, डिलीट हो गया इक शख़्स सेव करने में"
    फहमी बदायूंनी का यह शेर डिजिटल दौर के जज़्बातों को खूबसूरती से दर्शाता है, जहां एक छोटी सी गलती बड़ी यादें मिटा सकती है।
  • "काश वो रास्ते में मिल जाए, मुझ को मुँह फेर कर गुज़रना है"
    इसमें अनदेखी और इग्नोर करने की भावना को सरल और प्रभावी तरीके से व्यक्त किया गया है।