Live in Relationship: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक मामले पर सुनवाई के दौरान लिव-इन रिलेशनशिप को भारतीय संस्कृति में 'कलंक' माना है। अदालत ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप भारतीय सिद्धांतों के उलट एक "आयातित" दर्शन या फिलॉसफी है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चे की कस्टडी के लिए मेल पार्टनर की अपील को खारिज कर दिया।
हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप पर क्या कहा?
- जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस संजय एस अग्रवाल की बेंच ने कहा- ऐसे रिश्तों को शादी से ज्यादा प्रायोरिटी दी जाती है, क्योंकि यह संबंध बिगड़ने पर लिविंग पार्टनर्स को सुविधाजनक ढंग से अलग होने का मौका देता है। वैवाहिक व्यवस्था में किसी लोगों को जो सुरक्षा, सामाजिक स्वीकृति, प्रगति और स्थिरता मिलती है, वह लिव-इन रिलेशनशिप द्वारा कभी प्रदान नहीं की जा सकती है।
- समाज को करीब से देखने पर पता चलता है कि शादी की व्यवस्था अब पहले की तरह लोगों को कंट्रोल नहीं करती है। पश्चिमी संस्कृति (वेस्टर्न कल्चर) के प्रभाव के कारण वैवाहिक कर्तव्यों के प्रति बदलाव आया और इस उदासीनता ने संभवतः लिव-इन कॉन्सेप्ट को जन्म दिया।
क्या है मामला?
बता दें कि दंतेवाड़ा के याचिकाकर्ता अब्दुल हमीद सिद्दीकी ने कविता गुप्ता के साथ लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए अपने बच्चे की कस्टडी की मांग की थी। दोनों 3 साल तक रिलेशनशिप में रहे और 2021 में बिना धर्म परिवर्तन के शादी कर ली थी। 2023 में दंतेवाड़ा की फैमिली कोर्ट ने सिद्दीकी की अर्जी खारिज कर दी थी, जिसके बाद उसने हाईकोर्ट का रुख किया। पिटीशन में सिद्दीकी ने कहा कि अगस्त 2023 में कविता बच्चे के साथ अपने माता-पिता के घर चली गई, अब वह बच्चे को अपने पास रखना चाहता है।
फीमेल पार्टनर का दावा- दूसरी शादी वैध नहीं
- याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि दोनों पक्षों ने स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 के तहत शादी की थी। चूंकि सिद्दीकी मुस्लिम लॉ को मानता है, इसलिए उसे दूसरी शादी करने की इजाजत है और कविता से उसकी शादी कानून वैध है। ऐसे में सिद्दीकी शादी के बाद जन्मे बच्चे का नेचुरल गार्जियन होगा और उसे कस्टडी का हक मिलना चाहिए।
- दूसरी ओर, कविता ने दावा किया है कि इस मामले के तथ्यों पर गौर करें तो सिद्दीकी को इस दूसरी शादी की अनुमति नहीं थी, क्योंकि उसकी पहली पत्नी जीवित थी। कविता के वकील ने तर्क दिया कि सिद्दीकी ऐसे रिश्ते से पैदा हुए बच्चे के लिए कानूनी अभिभावक होने का दावा नहीं कर सकता है।
- इस पर हाईकोर्ट बेंच ने कहा- किसी मुस्लिम शख्स के पर्सनल लॉ के तहत एक से ज्यादा शादियों के प्रावधानों को किसी भी अदालत के सामने तब तक लागू नहीं किया जा सकता, जब तक कि इसे साबित न किया जाए।