History of Lakshadweep: लक्षद्वीप को लेकर मालदीव के साथ जैसे-जैसे विवाद गहराता जा रहा है वैसे-वैसे इसको लेकर कई जानकारियां भी सामने आ रही हैं। यह द्वीप अपने हजारों साल की यात्रा में गंगा जमुनी तहजीब का संगम साबित हुआ है। यहां की धरती पर हिंदू राजाओं (Hindu Rajah of Chirakkal) का शासन रहा तो मुस्लमान बादशाहों की बादशाहत भी। इतना ही नहीं 36 छोटे-छोटे द्वीपों से सजे इस द्विप समूह ने ब्रिटिश, अरब, पुर्तगालियों की गुलामी भी झेली। आइए जानते हैं इस पर किस हिंदू राजवंश ने किया शासन। इसका साम्राज्य कैसा रहा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस राजवंश का अस्तित्व आज भी केरल में मौजूद है।
सदियों पुरानी है चिरक्कल राजा की कहानी।
कोलाथिरी राजवंश के चिरक्कल राजा (Hindu Rajah of Chirakkal) की कहानी सदियों पुरानी है। केरल में इससे जुड़ी एक किदवंती भी है। ऐसा बताया जाता है कि यह राज वंश मुशक वंश से उत्पन्न हुआ। जिसकी स्थापना परशुराम ने की थी। इस राजवंश के पूर्वज रामकधा थे और उनकी रानी भद्रसेना थीं, जिनके दो बेटे थे, वदु और नंदा। रामकधा के शासनकाल के बाद बागडोर नंदा के पास चली गई।14वीं शताब्दी में, राज्य कोलाथिरी में विकसित हुआ। रामकधा की मां 'टोनी' (नाव) से एझिमाला पहुंचीं, जिसे मलयालम में 'कोलम' के नाम से जाना जाता है, संभवतः इसी से उन्हें 'कोलाथिरी' नाम मिला। अंततः, 18वीं शताब्दी में इसकी राजधानी चिरक्कल में स्थानांतरित हो गई, जिससे राजवंश को नई पहचान मिली। यहां के राजा को चिरक्कल राजा कहा जाने लगा।
क्यों बिखर गया चिरक्कल राजवंश?
Lakshadweep Hindu King : कोलाथिरी शासकों ने अपने राज्य का विस्तार कासरगोड में चंद्रगिरि नदी से लेकर कोझिकोड में कोराप्पुझा तक किया, इसी राजवंश ने लक्षद्वीप पर भी शासन किया। शाही वंश ने वलपट्टनम, पुथियांगडी और नारायणेश्वरम जैसे मंदिरों और किलों की स्थापना की। इस राजघराने ने एझिमाला बंदरगाह के जरिए चीन और अरबों के साथ व्यापार संबंध बनाए। यूरोपीय देशों के आने और इस राजवंश को चुनौती मिली। आखिरकार ब्रिटिश ने इस साम्राज्य पर अपना कब्जा कर लिया। ब्रिटिश के कब्जे में आने तक इसका अस्तित्व बचा रहा है। हालांकि अंततः आंतरिक कलह और सत्ता और संपत्ति पर विवादों के कारण यह राजवंश बिखर गया।
आज भी मौजूद हैं चिरक्कल राजवंश के वंशज
चिरक्कल राजा के वंशज अभी भी केरल में मौजूद हैं। बीते साल 24 मार्च को सीके रवीन्द्र वर्मा का 88 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह तिरुवल्ला पल्लियाकारा पैलेस वंश से जुड़े थंगम थंबूरत्ती और दिवंगत पीजी रवि वर्मा के सबसे बड़े पुत्र थे। उन्हें चिरक्कल राजा की उपाधि मिली थी। उनकी पत्नी शांताकुमारी थंपुरत्ती अभी भी जीवित हैं। इसके साथ ही उनके बेटियां गायत्री वर्मा, गंगा वर्मा और गोकुल इस वंश को आगे बढ़ा रहे हैं। इसके साथ ही सीके रवीन्द्र वर्मा के भाई-बहनों में सीके लीला राम वर्मा, सीके उषा और सीके जर्नादन राजा भी अभी जीवित हैं।