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India's First Female Elephant Keeper: पार्वती बरुआ के पिता भी हाथियों को प्रशिक्षण देने में कुशल थे। उन्होंने पिता से यह कला सीखी। बड़ी बहन को भी पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।

India's First Female Elephant Keeper: असम के राजपरिवार से आने वालीं पार्वती बरुआ (70 वर्ष) को देश की पहली महिला 'महावत' (Female Elephant Keeper) होने का गौरव प्राप्त है। भारत सरकार ने इस साल गणतंत्र दिवस पर उन्हें पद्मश्री (Padma Shri) पुरस्कार से नवाजा है। राष्ट्रपति दोपदी मुर्मू की ओर से देश की 110 गुमनाम हस्तियों के नामों का ऐलान पद्मश्री अवॉर्ड के लिए चुना गया है। यह देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। पावर्ती की बड़ी बहन को भी पद्मश्री पुरस्कार मिल चुका है। 

पार्वती बरुआ पूर्वी असम के धुबरी स्थित गौरीपुर के राजपरिवार की वंशज हैं। 40 दशक तक हाथियों के कल्याण के लिए कार्य कर चुकी हैं। लोग उन्हें 'हाथियों की रानी' के नाम से भी बुलाते हैं। शुक्रवार को न्यूज एजेंसी ANI को दिए इंटरव्यू में उन्होंने अपने बचपन और संघर्षों से जुड़ी कई यादें साझा कीं। 

'परिवार में था एक एलिफेंट महल, बचपन हाथियों के संग गुजरा'
पद्मश्री पार्वती बरुआ कहती हैं- ''मैं बचपन से ही हाथियों के आसपास रही हूं। मेरे परिवार में हाथियों के लिए एक महल हुआ करता था। इस एलिफेंट महल में कई हाथी रहते थे। मुझे इस सम्मान के लिए लायक समझने के लिए सरकार की आभारी हूं। मैंने अपनी जिंदगी के सबसे खूबसूरत लम्हे हाथियों के बीच बिताए हैं। मैंने उनकी बेहतरी के लिए जीवन समर्पित कर दिया। मैं तो बस अपना काम करती गई और भगवान ने अब मुझे इसका आशीर्वाद दिया। मैं अपना कार्य जारी रखूंगी और हाथियों के संरक्षण को लेकर लड़ाई लड़ती रहूंगी।''

'काम खतरनाक... किताब पढ़कर कोई नहीं बन सकता महावत'
उन्होंने  कहा- ''राजपरिवार के ताल्लुक रखने के बाद भी मुझे हाथियों के बीच रहने और उन्हें ट्रेंड करने का कोई गुरेज नहीं। मैं अब तक 600 से ज्यादा जंगली हाथियों को प्रशिक्षण दे चुकी हूं। कई महावतों को भी प्रशिक्षित किया है। देशभर में सेमिनार और सत्र आयोजित कर चुकी हूं। महावत बनने की कला कोई किताबों से पढ़कर नहीं सीखता है। यह सिर्फ किसी जानकार को काम करते देखकर ही सीखी जा सकती है। एक उन्मादी हाथी को पकड़ना और उसे शांत कराना कोई आसान काम नहीं है, इसमें बहुत खतरा होता है। मेरे पिता मेरे कार्यों से खुश हो गए।''

'पिता ने कहा- ये महिलाओं का नहीं, पुरुषों का काम है'
पार्वती ने 14 साल की छोटी उम्र में अपने पिता और गुरु परिक्षित चंद्र बरुआ से हाथियों को संभालने का बारीकियां सीखी थीं। उन्होंने बचपन में अपने पिता से पूछा कि क्या मैं भी आपकी तरह हाथियों को संभालने का काम कर सकती हूं तो उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि यह काम पुरुषों के लिए है। लेकिन पार्वती अपनी जिद पर कायम रहीं और पिता के साथ रहते हुए हाथियों को संभालने, उन्हें प्रशिक्षण देने और बीमार होने पर जड़ी बूटियों से उनका इलाज करने की कला सीखी। 

बड़ी बहन को भी मिल चुका है पद्मश्री
पार्वती बरुआ को लोग 'हाथी की रानी' के नाम से भी बुलाते हैं। महिलाओं से जुड़ी तमाम रूढ़ियों को तोड़कर वह देश की पहली महावत बनीं। उन्होंने करीब 4 दशकों से अधिक समय तक मानव और हाथियों के संघर्ष को हल करने के लिए कार्य किया। खास बात है कि पार्वती की बड़ी बहन प्रतिमा पांडे बरुआ को भी पद्मश्री पुरस्कार मिल चुका है। उन्हें यह अवॉर्ड असमिया लोक संगीत गोलपारिया में उत्कृष्ट योगदान के लिए मिला था।

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