Jhansi Hospital Negligence: (झांसी अग्निकांड) झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज में शुक्रवार देर रात हुए अग्निकांड ने पूरे इलाके को हिला दिया। चिल्ड्रन वार्ड (NICU) में लगी आग ने 10 मासूम बच्चों की जान ले ली। करीब 39 बच्चों को समय पर बचा लिया गया, लेकिन सवाल यह है कि यह हादसा क्यों हुआ? अस्पताल में फायर अलार्म क्यों नहीं बजे और सुरक्षित निकासी का प्रबंध क्यों नहीं था? घटना ने व्यवस्थागत खामियों को उजागर कर दिया है। जानिए लापरवाही की पूरी दास्तान।
फायर अलार्म बजा नहीं और एग्जिट गेट बस एक
झांसी अग्निकांड में फायर अलार्म सिस्टम ने काम नहीं किया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, फायर अलार्म का मेंटेनेंस लंबे समय से नहीं हुआ था। इसके अलावा, वार्ड में एक ही एग्जिट गेट होने के कारण धुआं भर गया, जिससे अंदर फंसे बच्चों को समय पर बाहर नहीं निकाला जा सका। एग्जिट गेट नहीं होने की वजह से आखिरकार बच्चों को खिड़की के रास्ते निकालना पड़ा।
यहां देखें वीडियो कैसे बच्चों को खिड़की से निकाला गया:
परिजनों का आरोप: स्टाफ ने नहीं दिखाई तत्परता
झांसी अग्निकांड के दौरान अस्पताल स्टाफ के रवैये पर भी सवाल उठे हैं। एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि मेडिकल स्टाफ ने आग लगने के बाद अपनी जान बचाने के लिए बाहर की तरफ दौड़ लगाई, जबकि अंदर बच्चे फंसे हुए थे। अगर स्टाफ ने तत्परता से काम किया होता तो शायद कुछ और बच्चों को बचाया जा सकता था।
सरकार का रुख और जांच के आदेश
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने झांसी अग्निकांड पर शोक व्यक्त किया और घायलों को हर संभव मदद देने का निर्देश दिया। स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक ने अस्पताल का दौरा कर पीड़ित परिवारों से मुलाकात की। सरकार ने घटना की जांच के आदेश दिए हैं, ताकि दोषियों को सजा मिल सके और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।
चश्मदीदों ने बताई घटना की भयावहता
हादसे के समय वार्ड में मौजूद परिजनों ने बच्चों को बचाने की हर संभव कोशिश की। एक पिता ने बताया, 'हमने वार्ड में धुआं देखा और तुरंत बच्चों को निकालने की कोशिश की। लेकिन गेट छोटा होने के कारण सभी बच्चों को निकालना मुश्किल हो गया।' फायर ब्रिगेड की देर से पहुंचने पर भी उन्होंने नाराजगी जताई।
इस हादसे उठ रहे हैं कई सवाल
झांसी अग्निकांड केवल एक दुर्घटना नहीं बल्कि व्यवस्थागत खामियों की कहानी है। फायर अलार्म का न बजना, एग्जिट गेट की कमी, और स्टाफ का रवैया, यह सब बड़ी लापरवाहियों की तरफ इशारा करता है। ऐसे में सवाल उठ रहे है कि क्या अब यह सुनिश्चित होगा कि सभी अस्पतालों में सुरक्षा मानकों का पालन हो? या फिर यह हादसा भी अन्य घटनाओं की तरह फाइलों में दफन हो जाएगा?