Lady Justice Statue: सुप्रीम कोर्ट में नई 'लेडी जस्टिस' प्रतिमा का अनावरण, 'अब कानून अंधा नहीं है' का संदेश
New Lady Justice Statue: सुप्रीम कोर्ट में नई लेडी जस्टिस प्रतिमा की आंखों पर बंधी पट्टी उतारी गई। इस बदलाव का मकसद औपनिवेशिक विरासत को पीछे छोड़ने की कोशिश।;

New Lady Justice Statue: सुप्रीम कोर्ट में नई 'लेडी जस्टिस' प्रतिमा का अनावरण किया गया है, जिसमें परंपरागत रूप से आंखों पर बंधी पट्टी को हटा दिया गया। इस बदलाव का मकसद औपनिवेशिक विरासत को पीछे छोड़ने की कोशिश के तौर पर माना जा रहा है। प्रतिमा के जरिए नए भारत में यह संदेश दिया जा रहा है कि अब कानून अंधा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में जजों की लाइब्रेरी में लगी 'लेडी जस्टिस' की नई प्रतिमा के हाथ में तलवार की जगह संविधान दिया गया है, जो यह दर्शाता है कि देश में न्याय संविधान के आधार पर होता है, न कि ताकत या हिंसा के बल पर।
'देश में कानून अब अंधा नहीं है'
जहां पहले 'लेडी जस्टिस' की प्रतिमा आंखों पर पट्टी बांधकर न्याय का प्रतीक मानी जाती थी, नई प्रतिमा में उसकी आंखें खुली हैं, जिससे यह संदेश दिया जा रहा है कि भारत का कानून देखता और समझता है और सभी के लिए समान है। पहले की प्रतिमाओं में 'लेडी जस्टिस' के हाथ में तराजू और तलवार होती थी, जिसमें तराजू न्याय की निष्पक्षता का प्रतीक था और तलवार कानून की शक्ति का। लेकिन नई प्रतिमा में तलवार को हटा कर संविधान को रखा गया है, जिससे यह दिखाया गया है कि भारत का कानून संविधान के अनुसार चलता है, न कि दंडात्मक शक्तियों के आधार पर।
💥💥 New Justice Statue In Supreme Court, A 'Law Is Not Blind' Message pic.twitter.com/is9T5yoiny
— CA Bimal Jain (@BimalGST) October 16, 2024
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की नई सोच
एक अंग्रेजी न्यूज वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक, सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने इस प्रतिमा के बदलाव का आदेश दिया था। उनका मानना है कि न्याय की आंखें खुली होनी चाहिए, ताकि सभी के साथ समानता का व्यवहार हो। उनका कहना है कि अदालतें संविधान के आधार पर न्याय करती हैं और तलवार का प्रतीक हिंसा का होता है, जिसे हटाकर संविधान का स्थान दिया गया है। इस नई प्रतिमा में तराजू को बनाए रखा गया है, ताकि यह दिखाया जा सके कि अदालतें फैसला करने से पहले दोनों पक्षों को बराबरी से सुनती और तौलती हैं।
लेडी जस्टिस का इतिहास और औपनिवेशिक विरासत
- प्राचीन यूनानी और रोमन प्रतीकों से उत्पन्न लेडी जस्टिस का इतिहास न्याय और नैतिकता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। प्राचीन यूनान में थीमिस देवी को न्याय की देवी के रूप में माना जाता था, जो तराजू और तलवार के साथ न्याय और नैतिकता का प्रतिनिधित्व करती थीं। इससे पहले मिस्र की देवी मात, सत्य और न्याय की देवी थीं, जो न्याय का संतुलन दिखाती थीं।
- लेडी जस्टिस की आधुनिक छवि को रोमन पौराणिक कथाओं की जस्टिटिया देवी से जोड़ा जाता है। मध्यकालीन और पुनर्जागरण के समय में यह आकृति कानूनी प्रतीक के रूप में उभरी, जो अदालतों और कानूनी प्रणालियों के साथ जुड़ी रही। न्याय की अंधी प्रतिमा के रूप में इसकी छवि अदालतों और कानूनी पुस्तकों में स्थान पाती गई, जो न्याय की निष्पक्षता और समानता को दर्शाती थी।
भारत में औपनिवेशिक प्रभाव
भारत में लेडी जस्टिस का प्रतीक औपनिवेशिक काल की देन है। ब्रिटिश शासन के दौरान, ब्रिटिशों ने अपने कानूनी ढांचे को लागू किया और भारतीय कानूनी प्रणालियों को धीरे-धीरे समाप्त कर दिया। इसी दौरान भारतीय अदालतों के बाहर लेडी जस्टिस की प्रतिमाएं लगाई गईं, जो न्याय की निष्पक्षता और शक्ति का प्रतीक थीं। हालांकि, भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने इस औपनिवेशिक विरासत से अलग होते हुए नई लेडी जस्टिस की प्रतिमा को स्थापित करने का आदेश दिया है, जो न्याय में भारत की नई सोच को दर्शाती है।