Lok Sabha Speaker 2024: नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली तीसरी सरकार के गठन के बाद अब सभी की निगाहें इस बात पर हैं कि लोकसभा अध्यक्ष का पद किसे मिलेगा। पिछले दो कार्यकालों में, भाजपा ने चुनाव के बाद क्रमशः 10 और 7 दिनों में शपथ ली थी। इस बार, भाजपा बहुमत से थोड़ी दूर रही और सहयोगी दलों और खास तौर पर एन चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी (TDP) और नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (JDU) के साथ मंत्री पद को लेकर कई दौर की चर्चा करनी पड़ी। इसके बावजूद, भाजपा ने चार दिनों के भीतर 72 मंत्रियों की कैबिनेट का शपथ ग्रहण समारोह आयोजित कर लिया।
लोकसभा अध्यक्ष का सवाल
सबसे अहम सवाल यह है कि लोकसभा अध्यक्ष का पद किसे मिलेगा? कई रिपोर्ट्स के अनुसार, TDP और JDU, जो इस चुनाव में किंगमेकर के रूप में उभरे हैं, इस अहम पद पर नजर गड़ाए हुए हैं। हालांकि, भाजपा सूत्रों का कहना है कि पार्टी इस पद को किसी और को सौंपने की इच्छुक नहीं हैं।
लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव
संविधान के अनुसार, नई लोकसभा के पहली बैठक से ठीक पहले अध्यक्ष का पद रिक्त हो जाता है। राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रोटेम स्पीकर नए सांसदों को पद की शपथ दिलाते हैं। इसके बाद, लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव साधारण बहुमत से होता है। लोकसभा अध्यक्ष के रूप में चुने जाने के लिए कोई विशेष मानदंड नहीं है, लेकिन संविधान और संसदीय नियमों की समझ होना एक लाभकारी बात है। पिछली दो लोकसभाओं में, भाजपा की सुमित्रा महाजन और ओम बिरला अध्यक्ष थे।
माना जाता है एक पेचीदा पद
लोकसभा अध्यक्ष का पद बेहद महत्वपूर्ण और पेचीदा है। सदन को चलाने वाले व्यक्ति के रूप में, अध्यक्ष का पद गैर-पक्षपाती माना जाता है। हालांकि, इस पद पर बैठने वाले व्यक्ति ने किसी विशेष पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में चुनाव जीतने के बाद ही यह भूमिका संभाली है।
कांग्रेस के दिग्गज नेता एन. संजीव रेड्डी चौथी लोकसभा के स्पीकर चुने गए थे। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। पी.ए. संगमा, सोमनाथ चटर्जी और मीरा कुमार जैसे अन्य नेताओं ने औपचारिक रूप से पार्टी से इस्तीफा नहीं दिया, लेकिन उन्होंने कहा कि वे पूरे सदन के सदस्य हैं, किसी पार्टी के नहीं। सोमनाथ चटर्जी को 2008 में यूपीए सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के दौरान उनके गैर-पक्षपाती रुख के कारण सीपीएम ने निष्कासित कर दिया था।
स्पीकर का पद क्यों माना जाता है अहम
लोकसभा अध्यक्ष के पद को लेकर चल रही चर्चाएं और अटकलें इस बात की ओर इशारा करती हैं कि यह पद न केवल संवैधानिक नजरिए से, बल्कि राजनीतिक संतुलन बनाए रखने के लिए भी अहम है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा और उसके सहयोगी दल इस अहम पद पर किसे नियुक्त करते हैं। ऐसी चर्चाएं हैं कि इस पद पर किसी भी व्यक्ति को एनडीए के सभी सहयोगी दलों को विश्वास में लेकर ही नियुक्त की जाएगी। अब इस पर अंतिम फैसला कैबिनेट की मीटिंग में लिए जाने की संभावना है।