Neighbour First Policy:भारत अपने "नेबर फर्स्ट" नीति को तेजी के साथ आगे बढ़ा रहा है। मालदीव काे जरूरी सामानों की आपूर्ति करने के बाद अब भारत अब श्रीलंका को प्याज की आपूर्ति करने की योजना बना रहा है। इसके साथ ही करीबी सहयोगी संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) को 10,000 मीट्रिक टन प्याज सप्लाई करने को भी मंजूर दी गई है। अपने क्षेत्रीय संबंधों को मजबूत करने के लिए भारत यह कदम उठा रहा है। नेबर फर्स्ट नीति को ध्यान में रखते हुए ही मालदीव के साथ तनाव होने के बावजूद भी जरूरी चीजों के एक्सपोर्ट से बैन हटा लिया गया।
भारत ने कई चीजाें के एक्सपोर्ट पर लगाया है बैन
भारत ने इससे पहले 1 मार्च को भी यूएई को 14,400 मिट्रिक टन प्याज की आपूर्ति करने को मंजूरी दी थी। बता दें कि देश में प्याज, चीनी, बासमती चावल आदि की कीमत ज्यादा ना हो इसलिए सरकार ने इनके एक्सपोर्ट पर फिलहाल रोक लगा रखी है। हालांकि, इसके बावजूद भारत यह ध्यान रख रहा है कि इसके पड़ोसियों को इन जरूरी चीजों की कमी का सामना नहीं करना पड़े। नेबर फर्स्ट नीति को ध्यान में रखते हुए ही मालदीव के साथ तनाव होने के बावजूद भी जरूरी चीजों के एक्सपोर्ट से बैन हटा लिया गया।
भारत प्याज का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक
अगर सिर्फ प्याज की बात करें तो भारत इसका दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। हालांकि भारत अपनी घरेलू मांग को पूरा करने और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के बीच दुविधा का सामना कर रहा है। 31 मार्च, 2024 तक प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध के बावजूद, भारत ने बांग्लादेश, श्रीलंका, मॉरीशस, बहरीन, भूटान और नेपाल सहित कई देशों को सीमित निर्यात की अनुमति दी है। यह फैसला घरेलू आपूर्ति बनाए रखने और प्याज की बढ़ती कीमतों को रोकने के सरकार की कोशिशों के बीच आया है। जबकि हाल ही में रिजर्व बैंक ने आशंका जताई है कि आने वाले समय में सब्जियों की कीमत में बढोतरी देखने को मिल सकती है।
भारत चाहता तो दे सकता था मालदीव काे झटका
भारत 21 अप्रैल को मालदीव में होने वाले मजलिस चुनाव से पहले मुइज्जू को जरूरी सामान की आपूर्ति रोक कर तगड़ा झटका दे सकता था। इसके बावजूद इंडिया ने ऐसा नहीं किया। मालदीव के लिए जारी एक्सपोर्ट नोटिफिकेशन के अंतिम पैराग्राफ में इसका साफ तौर पर उल्लेख किया गया है। इसमें कहा गया है कि सभी आवश्यक वस्तुओं की एक्सपोर्ट पर किसी भी मौजूदा प्रतिबंध से छूट दी जाएगी। उइसका मतलब है कि आने वाले समय में उत्पादन में कमी के कारण अगर भारत एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध लगाता भी है तो मालदीव को आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति जारी रहेगी।
मालदीव को नहीं मिली है किसी भी देश से मदद
मालदीव का जरूरी चीजों की आपूर्ति के लिए भारत के सामने मदद की अपील करने से यह साफ हो गया है कि धन जुटाने के लिए तुर्की, चीन और संयुक्त अरब अमीरात में मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू का मिशन विफल हो गया है। किसी भी देश ने मालदीव को कोई अनुदान देने का वादा नहीं किया है। मुइज्जू की अदूरदर्शिता के कारण, 17 नवंबर, 2023 को मालदीव के राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद मालदीव के सलाफी नेता अपनी पहली विदेश यात्रा पर तुर्की गए थे, जिसके बाद सऊदी अरब को मालदीव में कोई दिलचस्पी नहीं है। मुइज्जू भारत विरोधी अभियान में शामिल हो कर सत्ता में आए थे।
सिर्फ राजनीतिक नहीं है भारत का फैसला
आवश्यक वस्तुओं के जारी रखने का भारत का फैसला सिर्फ राजनीतिक नहीं है। इसके जरिए मालदीव की जनता तक पहुंचने की कोशिश है। भारत ने यह संकेत देने की कोशिश है कि चाहे मालदीव की सत्ता में कोई भी आए, भारत मालदीव के साथ खड़ा है। मालदीव की अर्थव्यवस्था अभी भी ठीक नहीं है। मुइज्जू के सत्ता में आने के बाद बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को पुनर्जीवित किया गया है।
मालदीव ने ले रखा है भारत से मोटा कर्ज
2026 में सॉवरेन बाॅन्डस के मद में मिले कर्ज के तौर पर लगभग एक अरब अमेरिकी डॉलर का बकाया है। मालदीव को एसबीआई के ब्याज के रूप में मई महीने के लिए 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर और सितंबर महीने के लिए 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान करना है। इसे भारत के बहुराष्ट्रीय बैंक द्वारा खरीदे गए ट्रेजरी बिलों के मद में यह रकम चुकानी है।
मालदीव जाने वाले भारतीय पर्यटक घटे
मालदीव के राष्ट्रपति मुइज्जू द्वारा अपनाई गई भारत विरोधी नीतियों के कारण, वहां पर जाने वाले और मोटी रकम खर्च करने वाले भारतीय पर्यटकों की संख्या कम हो गई है। फिलहाल यह द्वीप राष्ट्र कम खर्च करने वाले चीनी पर्यटकों से भर गया है। भले ही मजलिस चुनाव के नतीजे कुछ भी हों, मुइज्जू की सरकार को कोई खतरा नहीं है, लेकिन मोदी सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि मालदीव की जनता को अपने सरकार की नीतियों के कारण परेशानी नहीं उठानी पड़े। इस पूरे मामले के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुइज्जू की चीन समर्थक होने की हकीकत सामने आ गई है। साथ ही अपने ही देश में विरोधों का सामना करना पड़ रहा है।