One Nation One Election Challenges:केंद्र सरकार ने 'वन नेशन वन इलेक्शन' (One Nation One Election) के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इसका उद्देश्य एक साथ लोकसभा, राज्य विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव कराना है। यह प्रस्ताव लंबे समय से बीजेपी (BJP) के चुनावी सुधारों का हिस्सा रहा है। अब, सरकार इस पर देशव्यापी सहमति बनाने के लिए कदम उठाएगी ताकि इसे चरणबद्ध तरीके से लागू किया जा सके।
समिति की सिफारिशें और रणनीति
कैबिनेट ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व वाली उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को मंजूर किया है। इस समिति ने एक साथ चुनाव कराने की सलाह दी है। सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि एक कार्यान्वयन समूह गठित किया जाएगा जो इन सिफारिशों को आगे बढ़ाएगा। अगले कुछ महीनों में देशभर में इसके विभिन्न पहलुओं पर चर्चा होगी।
दो चरणों में लागू होगी योजना
रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने मीडिया से बातचीत के दौरान बताया कि 'वन नेशन वन इलेक्शन' योजना को दो चरणों में लागू किया जाएगा। पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को साथ में आयोजित किया जाएगा। इसके बाद, 100 दिनों के भीतर दूसरे चरण में स्थानीय निकायों के चुनाव कराए जाएंगे। इससे चुनाव प्रक्रिया को एक साथ कराने पर काम शुरू होगा।
संविधान में 18 बदलाव करने की सिफारिश
समिति ने 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की है, जिनमें से अधिकतर को राज्य विधानसभाओं की मंजूरी की जरूरत नहीं है। हालांकि, कुछ संशोधन, जैसे एकल मतदाता सूची (Single Electoral Roll) और एकल मतदाता पहचान पत्र (Single Voter ID Card), को आधे से अधिक राज्यों की मंजूरी चाहिए। इसके लिए संविधान संशोधन विधेयकों को संसद में पारित करना होगा।
लॉ कमीशन जल्द जारी कर सकता है रिपोर्ट
एक साथ चुनाव कराने की मांग बीजेपी के घोषणापत्र का हिस्सा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस विचार के बड़े समर्थक हैं। साथ ही, कानून आयोग भी जल्द ही एक रिपोर्ट जारी कर सकता है, जिसमें इस प्रस्ताव की विस्तृत जानकारी होगी। इससे चुनावी खर्च कम होगा। ऐसा हुआ तो विकास से जुड़े काम पर ज्यादा रकम खर्च की जा सकेगी।
जानें, लागू करने में क्या होंगी चुनौतियां?
'वन नेशन वन इलेक्शन' को लागू करने के लिए कई चुनौतियां भी होंगी। सबसे पहले तो संविधान में बदलाव करना होगा। दूसरा यह कि इस पर सभी राज्य सरकारों की सहमति लेनी होगी। तीसरी चुनौती यह होगी कि अगर सभी संविधान संशोधन और राज्यों की सहमति मिल भी गई तो इतने बड़े पैमाने पर चुनाव के आयोजन का मैनेजमेंट भी चुनौतिपूर्ण होगा। साथ ही, पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने से प्रशासनिक व्यवस्था और चुनाव आयोग पर भी बड़ा भार पड़ेगा।
राष्ट्रीय स्तर पर लोगों की राय लेगी सरकार
सरकार का मानना है कि इस मुद्दे पर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा और सहमति जरूरी है। अगले कुछ महीनों में इस पर विस्तार से विचार-विमर्श होगा ताकि सभी पक्षों की राय ली जा सके और इसे सफलतापूर्वक लागू किया जा सके। विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्र सरकार का यह कदम देश में चुनाव प्रक्रिया को आसान बनाने की दिशा में एक बड़ा सुधार साबित हो सकता है।