RSS Chief Mohan Bhagwat Ayodhya Visit: राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत अयोध्या पहुंच गए हैं। वे 22 जनवरी, सोमवार को रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होंगे। इससे पहले मोहन भागवत ने अपने एक मराठी लेख के जरिए अयोध्या विवाद को लेकर दशकों से चले आ रहे संघर्ष को समाप्त करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि राम मंदिर की कानूनी लड़ाई तुष्टिकरण की राजनीति के कारण लंबी चली। अब राम मंदिर को लेकर विवाद और कड़वाहट को पूरी तरह खत्म कर देना चाहिए।
भागवत ने आक्रमणकारियों के खिलाफ भारत के 1,500 वर्षों के लंबे संघर्ष का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इस्लाम के नाम पर जो आक्रमण हुए, उससे समाज में अलगाव बढ़ा। उन्होंने लोगों से भगवान राम के आचरण को अपने जीवन में उतारने की भी अपील की।
इस्लाम के नाम पर आक्रमण से समाज में अलगाव आया
मोहन भागवत ने कहा कि 1500 साल पहले शुरू हुए आक्रमणों का उद्देश्य लूटपाट करना था। हालांकि कभी-कभी अलेक्जेंडर के आक्रमण की तरह उपनिवेशीकरण के लिए होता था। लेकिन इस्लाम के नाम पर आक्रमण से समाज में अलगाव आया। अयोध्या में श्री राम मंदिर का विध्वंस भी इसी मंशा से किया गया था। आक्रमणकारियों की यह नीति सिर्फ अयोध्या या किसी एक मंदिर तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक युद्ध रणनीति थी।
भागवत ने 1857 के असफल स्वतंत्रता संग्राम और उसके बाद हिंदुओं और मुसलमानों को विभाजित करने के ब्रिटिश प्रयासों का जिक्र करते हुए भगवान राम के जन्मस्थान को नियंत्रित करने के लगातार प्रयासों को याद किया। उन्होंने आजादी के बाद की लंबी कानूनी लड़ाई और 1980 के दशक में गति पकड़ने वाले राम जन्मभूमि आंदोलन पर भी चर्चा की, जिसके कारण 2019 में हिंदू पक्ष के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया।
राम जन्मभूमि आंदोलन क्या था?
भागवत ने लिखा कि राम जन्मभूमि आंदोलन भारत में एक सामाजिक-राजनीतिक अभियान था, जो अयोध्या में विवादित स्थल पर केंद्रित था। अयोध्या भगवान राम का जन्मस्थान है। इस आंदोलन को 20वीं सदी के अंत में विशेषकर 1980 और 1990 के दशक के दौरान धार मिली। आंदोलन की पहली मांग जन्मस्थान पर भगवान राम का मंदिर बनाने की थी। लेकिन 16वीं शताब्दी में जन्मस्थान पर बाबरी मस्जिद को खड़ा कर दिया गया।
विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के गठन और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सक्रिय रूप से अभियान में भाग लेने से आंदोलन को गति मिली। 6 दिसंबर 1992 को यह आंदोलन अपने चरम पर पहुंच गया, जब कुछ राजनीतिक नेताओं सहित हिंदू कार्यकर्ताओं की एक बड़ी भीड़ ने बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया। इसके बाद राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मुद्दा राजनीति में एक केंद्र बिंदु बन गया। इस मुद्दे ने वर्षों तक चुनावों और सार्वजनिक चर्चा को प्रभावित किया।
जन्मस्थान के स्वामित्व को लेकर कानूनी लड़ाई कई दशकों तक जारी रही। 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण की अनुमति दी गई, साथ ही मस्जिद के निर्माण के लिए 5 एकड़ भूमि आवंटित करने का निर्देश दिया गया।