स्वामी प्रसाद मौर्य ने SP महासचिव पद छोड़ा: अखिलेश यादव को इस्तीफा भेजा, लिखा- कुछ छुटभईये और बड़े नेताओं ने मेरे बयानों को निजी बताया

Swami Prasad Maurya Resign
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Swami Prasad Maurya Resign: स्वामी प्रसाद मौर्य पहले बहुजन समाज पार्टी में मायावती के साथ थे, लेकिन 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। 

Swami Prasad Maurya Resign: उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (SP) के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) ने मंगलवार को पद से इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया। उन्होंने पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को एक पत्र भेजकर अपनी नाराजगी जाहिर की है। हालांकि, वह सपा के एमएलसी बने रहेंगे। उनके खिलाफ पिछले कुछ दिनों से पार्टी के अंदर आवाजें उठ रही थीं। अपनी चिट्ठी में मौर्य ने लिखा है कि वह पद के बिना भी पार्टी को मजबूत करने के लिए कार्य करते रहेंगे। उन्होंने सपा के कुछ नेताओं पर निशाना साधा है। महासचिव पर रहते हुए अपने कामकाज में बाधा डालने का भी जिक्र किया है। बता दें कि स्वामी प्रसाद पहले बहुजन समाज पार्टी में मायावती के साथ थे, लेकिन 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए।

मौर्य ने अपने इस्तीफे में क्या लिखा?

स्वामी प्रसाद मौर्य ने चिट्ठी में लिखा- मैं जबसे समाजवादी पार्टी में शामिल हुआ, लगातार जनाधार बढ़ाने की कोशिश की। मैंने नारा दिया था "पच्चासी तो हमारा है, 15 में भी बंटवारा है"। हमारे महापुरुषों ने भी इसी तरह की लाइन खींची थी। भारतीय संविधान निर्माता बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर ने "बहुजन हिताय बहुजन सुखाय" की बात की तो डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कहा कि "सोशलिस्टो ने बांधी गांठ, पिछड़ा पावै सौ में साठ", शहीद जगदेव बाबू कुशवाहा व मा. रामस्वरूप वर्मा जी ने कहा था "सौ में नब्बे शोषित हैं, नब्बे भाग हमारा है", इसी प्रकार सामाजिक परिवर्तन के महानायक काशीराम साहब का भी वही था नारा "85 बनाम 15 का"। लेकिन पार्टी द्वारा लगातार इस नारे को निष्प्रभावी करने और 2022 के विधानसभा चुनाव में सैकड़ों प्रत्याशियों का पर्चा व सिंबल दाखिल होने के बाद अचानक प्रत्याशीयों के बदलने के बावजूद भी सपा का जनाधार बढ़ाने में सफल रहे, उसी का परिणाम था कि सपा के पास जहां मात्र 45 विधायक थे वहीं पर विधानसभा चुनाव 2022 के बाद यह संख्या 110 विधायकों की हो गई थी।

रथयात्रा का सुझाव दिया, लेकिन अमल नहीं हुआ
फिर आपने बिना किसी मांग के मुझे विधान परिषद् भेजा और राष्ट्रीय महासचिव बनाया। पार्टी को मजबूती देने के लिए पिछले साल आपके सामने एक सुझाव रखा था कि जातिवार जनगणना कराने, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ों के आरक्षण को बचाने, बेरोजगारी व बढ़ी हुई महंगाई, किसानों की समस्याओं व लाभकारी मूल्य दिलाने, लोकतंत्र व संविधान को बचाने, देश की राष्ट्रीय संपत्तियों को निजी हाथ में बेचे जाने के विरोध में प्रदेश व्यापी भ्रमण कार्यक्रम हेतु रथ यात्रा निकालने का प्रस्ताव दिया था, जिस पर आपने कहा था "होली के बाद इस यात्रा को निकाला जाएगा" आश्वासन के बाद भी कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आया। फिर मैंने पार्टी का जनाधार बढ़ाने का क्रम मैंने अपने तौर-तरीके से जारी रखा, इसी क्रम में मैंने आदिवासियों, दलितों व पिछड़ो को जो जाने-अनजाने भाजपा के मकड़जाल में फंसकर भाजपा मय हो गए थे उनके सम्मान व स्वाभिमान को जगाकर व सावधान कर वापस लाने की कोशिश की।

सपा के छुटभईये और बड़े नेताओं ने प्रयासों को कमतर आंका
मेरे इस प्रयास को पार्टी के कुछ छुटभईये और बड़े नेताओं ने "मौर्य जी का निजी बयान है" कहकर किनारा कर लिया। मैंने अन्यथा नहीं लिया। मैंने ढोंग-ढकोसला, पाखंड और आडंबर पर प्रहार किया तो भी यही लोग फिर इसी प्रकार की बात कहते नजर आए, हमें इसका भी मलाल नहीं, क्योंकि में तो भारतीय संविधान के निर्देश के क्रम में लोगों को वैज्ञानिक सोच के साथ खड़ा कर लोगों को सपा से जोड़ने की अभियान में लगा रहा, यहां तक कि इसी अभियान के दौरान, मुझे गोली मारने, हत्या कर देने, तलवार से सिर कलम करने, जीभ काटने, नाक-कान काटने, हाथ काटने आदि-आदि लगभग दो दर्जन धमकियों व हत्या के लिए 51 करोड़, 51 लाख, 21 लाख, 11 लाख, 10 लाख आदि रकम देने की सुपारी भी दी गई, अनेकों बार जानलेवा हमले भी हुए, यह बात दीगर है कि हर बार में बाल-बाल बच गया। उल्टे सत्ताधारियों द्वारा मेरे खिलाफ कई एफआईआर भी कराई गईं, लेकिन अपनी सुरक्षा की चिंता किए बगैर मैंने अभियान जारी रखा।

एक महासचिव का बयान निजी कैसे हो सकता है
स्वामी प्रयास मौर्य ने लिखा- हैरानी तो तब हुई जब पार्टी के सीनियर नेता चुप रहने के बजाय मौर्य जी का निजी बयान बताकर कार्यकर्ताओं के हौंसले को तोड़ने की कोशिश करने लगे, में नहीं समझ पाया एक राष्ट्रीय महासचिव मैं हूं, जिसका कोई भी बयान निजी बयान हो जाता है और पार्टी के कुछ राष्ट्रीय महासचिव और नेता ऐसे भी हैं जिनका हर बयान पार्टी का हो जाता है, एक ही स्तर के पदाधिकारियों में कुछ का निजी और कुछ का पार्टी का बयान कैसे हो जाता है, यह समझ के परे है। दूसरी बात ये है कि मेरे इस प्रयास से आदिवासियों, दलितों, पिछड़ो का रुझान समाजवादी पार्टी के तरफ बढ़ा है। बढ़ा हुआ जनाधार पार्टी का और जनाधार बढ़ाने का प्रयास और बयान पार्टी का न होकर निजी कैसे? यदि राष्ट्रीय महासचिव पद में भी भेदभाव है, तो मैं इस पद पर बने रहने का कोई औचित्य नहीं।

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