Supreme Court Bribe For Vote Case Verdict: सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 7 जजों वाली संविधान पीठ ने सोमवार को ऐतिहासिक फैसला दिया है। सांसदों और विधायकों को वोट के बदले रिश्वत लेने के मामले में मुकदमें में मिली राहत छिन सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संसद में सांसदों और विधानसभाओं में विधायकों को संसदीय विशेषाधिकार के तहत रिश्वत के मामलों में मुकदमे से छूट नहीं है। 

इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में नरसिम्हा राव के फैसले को पलट दिया है। 1998 में 5 जजों की संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से फैसला दिया था। कहा था कि नोट के बदले वोट मामले में जनप्रतिनिधियों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को पलटते हुए कहा कि अब सांसद या विधायक सदन में मतदान के लिए रिश्वत लेकर मुकदमे की कार्रवाई से बच नहीं सकते हैं। 

तो खत्म कर देती है ईमानदारी
चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 7 जजों की बेंच ने सहमति से यह फैसला दिया है। अहम फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा कि विधायिका के किसी सदस्य द्वारा किया गया भ्रष्टाचार या रिश्वतखोरी सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी खत्म कर देती है। 

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हमने विवाद के सभी पहलुओं पर स्वतंत्र रूप से फैसला लिया है। क्या सांसदों को नोट के बदले वोट देने के मामले में छूट मिलनी चाहिए? इस बात से हम सभी असहमत हैं। इसे बहुमत से खारिज करते हैं। 

वकील ने कहा- अब जनप्रतिनिधि नहीं कर सकते छूट का दावा
वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि आज सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ ने कहा कि अगर कोई सांसद राज्यसभा चुनाव में सवाल पूछने या वोट देने के लिए पैसे लेता है, तो वे अभियोजन से छूट का दावा नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वोट देने के लिए पैसे लेना या प्रश्न पूछना भारतीय संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को नष्ट कर देगा। 

शिबू सोरेन और उनकी बहू इस विवाद में अहम कड़ी
1993 से लेकर अब तक 30 साल चली अदालती कार्रवाई की एक कॉमन कड़ी झारखंड मुक्ति मोर्चा और शिबू सोरेन परिवार रहा। 1993 मामले में सीबीआई ने शिबू सोरेन को रिश्वतकांड का आरोपी माना था। जबकि सुप्रीम कोर्ट में हालिया सुनवाई उनकी बहूत सीता सोरेन से जुड़े घूसकांड को लेकर हुई। 

1991 में शिबू सोरेन ने किया था वोट
1991 के आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। नरसिम्हा राव की सरकार बनी। लेकिन जुलाई 1993 में मॉनसून सत्र के दौरान नरसिम्हा राव की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। आरोप है कि शिबू सोरेन और उनकी पार्टी के 4 सांसदों ने रिश्वत लेकर लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोटिंग की। सीबीआई ने जांच शुरू की। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मामले को रद्द कर दिया। 

2012 में सीता सोरेन पर लगा रिश्वत लेकर वोट देने का आरोप
इसके बाद 2012 में झारखंड में राज्यसभा चुनाव हुए। तब पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन जामा सीट से विधायक थीं। सीता पर आरोप लगा कि उन्होंने चुनाव में वोट के बदले रिश्वत ली। साता सोरेन पर केस दर्ज हुआ। उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। लेकिन उनकी अपील खारिज कर दी गई। इसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं। सीता सोरेन ने 1998 के फैसले का हवाला दिया। लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ अपने पुराने फैसले को पलटा, बल्कि राहत देने से भी इंकार कर दिया।