Supreme Court On Voter Turnout Data: सुप्रीम कोर्ट से NGO एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) को झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (20 मई) को एडीआर की उस याचिका पर तुरंत विचार करने से इंकार कर दिया, जिसमें मांग की गई थी कि चुनाव आयोग को बूथ वार वोटिंग प्रतिशत की सही संख्या प्रकाशित करने और अपनी वेबसाइट पर फॉर्म 17सी की प्रतियां अपलोड करने का निर्देश दिया जाए।
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की अवकाश पीठ ने कहा कि चुनाव प्रक्रिया के बीच में एक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। कल (25 मई) को छठे चरण का मतदान है। ऐसे में चुनाव आयोग को डेटा के लिए ज्यादा मैनपॉवर की जरूरत होगी, जो चुनाव के बीच संभव नहीं है। हमारा मानना है कि इस मामले की सुनवाई चुनाव के बाद होनी चाहिए।
राजनीतिक दलों ने उठाए थे सवाल
दरअसल, लोकसभा चुनाव के बीच कांग्रेस समेत कई राजनीतिक दलों ने वोटिंग के आंकड़ों में गड़बड़ी के आरोप लगाए हैं। राजनीतिक पार्टियों का दावा है कि मतदान के लिए प्रतिशत कुछ होता है और एक हफ्ते बाद वोटिंग प्रतिशत बदल जाता है। इसी को लेकर एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने याचिका दाखिल की थी। जिसमें लोकसभा चुनाव के प्रत्येक चरण के मतदान के समापन के 48 घंटे के भीतर मतदान केंद्र-वार मतदाता मतदान डेटा को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने पीठ से कहा कि मतदाताओं के मन में संदेह पैदा करने की कोशिश की जा रही है। याचिका केवल संदेह और आशंका पर आधारित है। चुनाव कराना एक कठिन काम है, इसमें ऐसे निहित स्वार्थों को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
11 और 14 दिन बाद जारी हुए थे फाइनल डेटा
याचिका के अनुसार, लोकसभा चुनाव के पहले दो चरणों के मतदान के आंकड़े मतदान के 11 और 14 दिनों के बाद प्रकाशित किए गए थे। याचिका में कहा गया है कि अंतिम मतदान प्रतिशत डेटा जारी करने में इस अत्यधिक देरी के साथ-साथ पांच प्रतिशत से अधिक के असामान्य रूप से उच्च संशोधन ने डेटा की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। लोगों के मन में संदेह बढ़ा गया है। यह भी कहा गया कि डेटा की आसान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए निर्वाचन क्षेत्र और मतदान केंद्र के अनुसार पूर्ण संख्या और प्रतिशत में मतदान के आंकड़ों का एक सारिणी बनाई जानी चाहिए।