Supreme Court Grants Abortion: सुप्रीम कोर्ट ने 14 साल की रेप विक्टिम को गर्भपात कराने की अनुमति दी है। लड़की 30 हफ्ते की गर्भवती है। शीर्ष अदालत ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को पलटते हुए इसे असाधारण मामला बताया और मुंबई के लोकमान्य तिलक अस्पताल को तत्काल अबॉर्शन के लिए इंतजाम करने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने 19 अप्रैल को इस प्रकरण की अर्जेंट सुनवाई की थी। तब लड़की का मेडिकल कराने का आदेश दिया गया था। आज, सोमवार (22 अप्रैल) की सुबह अस्पताल ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट दाखिल की है।
भारतीय कानून के अनुसार गर्भावस्था के 24 सप्ताह से अधिक समय तक गर्भपात कराने के लिए अदालत की अनुमति की आवश्यकता होती है।
जीवन के खतरा, मगर इससे अधिक नहीं
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि इस फेज में अबॉर्शन कराने में जान को कुछ जोखिम है। लेकिन हेल्थ एक्सपर्ट्स ने राय दी है कि जीवन के लिए खतरा पूर्ण अवधि के प्रसव के जोखिम से ज्यादा नहीं है। सीजेआई ने कहा कि हम मेडिकल टर्मिनेशन की अनुमति दे रहे हैं, क्योंकि रेप विक्टिम की उम्र 14 साल है और यह एक असाधारण मामला है।
हाईकोर्ट ने कर दिया था मना
दरअसल, 4 अप्रैल को बॉम्बे हाई कोर्ट ने अबॉर्शन कराने की परमीशन देने से इंकार कर दिया था। इस पर नाबालिग की मां ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। सीजेआई और जस्टिस जेबी पारदीवाला अदालत ने पिछले शुक्रवार को तत्काल सुनवाई की। अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट ने जिस मेडिकल रिपोर्ट पर भरोसा किया, वह लड़की की शारीरिक और मानसिक स्थिति का आकलन करने में फेल रही। इसके बाद महाराष्ट्र के एक अस्पताल में नए सिरे से जांच का आदेश दिया।
सायन अस्पताल के मेडिकल बोर्ड ने गर्भपात के पक्ष में अपनी राय दी। इसके आधार पर अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 को लागू करके गर्भपात की अनुमति दी।
क्या है अबॉर्शन का नियम?
अबॉर्शन के लिए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट है। इसके तहत शादीशुदा महिला, रेप विक्टिम, दिव्यांग महिला और नाबालिग लड़की को डॉक्टर की राय से 20 सप्ताह तक और कुछ मामलों में 24 सप्ताह तक अबॉर्शन कराने की परमीशन है। 24 हफ्ते से अधिक की प्रेग्नेंसी पर मेडिकल बोर्ड की सलाह पर कोर्ट से इजाजत लेनी पड़ती है। एमटीपी एक्ट 1971 में बना था। 2020 में इसमें बदलाव किया गया।